बंटे विपक्ष से तमिलनाडु में द्रमुक की राह आसान हुई
डिजिटल डेस्क, चेन्नई। तमिलनाडु में मुख्य विपक्ष के रूप में अन्नाद्रमुक को कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है जबकि सत्तारूढ़ द्रमुक बिना किसी रोकटोक के लगातार आगे बढ़ती जा रही है। साल 2019 के संसदीय चुनाव के बाद से सत्तारूढ़ द्रमुक लगातार सभी चुनावों को जीत रही है, चाहे वह ग्रामीण स्थानीय निकाय चुनाव हो, 2021 का विधानसभा चुनाव हो या 2022 का शहरी स्थानीय निकाय चुनाव हो। साल 2011 से 2021 तक सत्ता में रही अन्नाद्रमुक अब आपसी संघर्ष में घिरी है। अन्नाद्रमुक नेता जे जयललिता को राजनीतिक खेल में महारत हासिल थी और उसी की बदौलत पार्टी एक के बाद एक चुनाव जीतती जा रही थी।
दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के बाद, अन्नाद्रमुक में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। इस लड़ाई में एक पक्ष जयललिता की पूर्व सहयोगी वीके शशिकला का था, दूसरा जयललिता के परिवार का। शशिकला को पार्टी के अंतरिम महासचिव के रूप में घोषित किया गया था और वह मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने की राह पर थीं।
ओ पन्नीरसेल्वम ने शशिकला के इस कदम के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। वह जयललिता के स्मारक के पास धरने पर बैठ गए। फिर, मनी लॉन्ड्रिंग और आय से अधिक संपत्ति के मामले में, शशिकला को चार साल जेल की सजा सुनाई गई और अन्नाद्रमुक दो गुटों में विभाजित हो गई, एक ओ. पनीरसेल्वम के नेतृत्व में और दूसरा एडप्पादी के. पलानीस्वामी के नेतृत्व में। भाजपा की राजनीतिक सूझबूझ के कारण अन्नाद्रमुक के दो नेताओं के बीच मतभेद खत्म हुए और पलानीस्वामी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने।
अन्नाद्रमुक के सत्ता से बाहर होने के बाद ओ पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी के संयुक्त नेतृत्व वाली पार्टी में दरार और बढ़ गई। अब भाजपा दोनों नेताओं के बीच की खाई को और बढ़ाने की कोशिश कर रही है। पलानीस्वामी के करीबी पार्टी के संगठन सचिव और पूर्व मंत्री डी. जयकुमार ने खुले तौर पर कहा है कि भाजपा अन्नाद्रमुक को विभाजित करने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषक मयुलवाहन आर ने आईएएनएस को कहा, यह सत्तारूढ़ द्रमुक के लिए सबसे अच्छा समय है क्योंकि तमिलनाडु में विपक्ष पूरी तरह से विभाजित है। भाजपा राज्य में मुख्य ताकत के रूप में उभरने की कोशिश कर रही है और अन्नाद्रमुक को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। अगर अन्नाद्रमुक एक नेता के नेतृत्व में साथ नहीं रहती है, तो यह लगभग तय है कि तमिलनाडु में विपक्ष की कुर्सी भाजपा को मिल जाएगी।
अन्नाद्रमुक के विभाजित होने और राज्य में कोई मजबूत विपक्ष नहीं होने के कारण, सत्तारूढ़ द्रमुक के लिए आसानी हो गई है। अन्नाद्रमुक की एक अन्य सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) ने भी घोषणा की कि वह ग्रामीण स्थानीय निकाय चुनावों में और बाद में शहरी निकाय चुनावों में अपने दम पर चुनाव लड़ रही है।
आईएएनएस
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Created On :   3 July 2022 5:01 PM IST