छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023: रायपुर की राजनीति में विकास, उद्योग और जातियों का मिला जुला नजारा
- रायपुर जिले में सात सीटें
- एक एससी और 6 सामान्य
- ओबीसी मतदाता सर्वाधिक
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रायपुर जिले में सात सीटें है। धरसींवा, रायपुर ग्रामीण,रायपुर पश्चिम, रायपुर उत्तर, रायपुर दक्षिण, आरंग और अभनपुर है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रायपुर दक्षिण सीट को छोड़कर 6 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं बीजेपी को एक मात्र सीट से संतुष्टि करनी पड़ी थी। सात में एक सीट आरंग अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जबकि 6 सीटें धरसींवा, रायपुर ग्रामीण, रायपुर पश्चिम, रायपुर उत्तर, रायपुर दक्षिण,अभनपुर सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित है। रायपुर की राजनीति में ज्यादातर मतदाता ओबीसी के साहू और अग्रवाल समाज का दखल अधिक है। कुछ सीटों पर सिंधी, सिख तो कुछ सीटों पर एससी मतदाताओं का प्रभुत्व है। ज्यादातर इलाके में सड़क औ साफ सफाई की समस्या बनी रहती है।
रायपुर उत्तर विधानसभा सीट
2008 में कांग्रेस से कुलदीप जुनेजा
2013 में बीजेपी से श्रीचंद सुंदरानी
2018 में कांग्रेस से कुलदीप जुनेजा
2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के 8 साल बाद 2008 में रायपुर उत्तर विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। ये असुरक्षित सीट है। अस्तित्व में आने के बाद ये चौथी बार विधानसभा चुनाव होगा। इस सीट पर अभी तक के चुनाव में दो बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी को कामयाबी मिली है। 2008 और 2018 में कांग्रेस और 2013 में कांग्रेस को जीत मिली थी। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होता आया है। इस सीट की खासियत है कि यहां किसी एक समाज का प्रभाव नहीं है। यहां सभी समाज के लोगों का समान रूप से असर देखने को मिलता है। हालांकि अभी तक चुनाव सिंधी और सिख समाज के उम्मीदवारों के बीच होता आया है। क्षेत्र में ट्रैफिक, सड़कों की जर्जर हालात और पानी की समस्या आम तौर पर देखने को मिल जाती है।
रायपुर ग्रामीण विधानसभा सीट
2008 में बीजेपी के नंदे साहू
2013 में कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा
2018 में कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा
रायपुर ग्रामीण विधानसभा सीट 2008 में अस्तित्व में आई थी। सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। हालांकि अस्तित्व में आने के बाद हुए चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। औद्योगिक क्षेत्र होने की वजह से यहां कई नेताओं की नजर है। मतदाता संख्या के लिहाज से यहां ओबीसी वर्ग वोटर्स की संख्या अन्य समुदाय से अधिक है। ओबीसी में भी साहू समाज का प्रभाव अधिक देखने को मिल जाता है। ओबीसी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक होने के बावजूद यहां से सामान्य वर्ग के सत्यनारायण शर्मा दो बार से चुनाव जीत रहे है। इससे ये कहा जा सकता है कि यहां जातीय असर दिखाई नहीं देता है। उद्योग की वजह से प्रदूषण की समस्या यहां खूब पैर पसार रही है।
रायपुर पश्चिम विधानसभा सीट
2008 में बीजेपी से राजेश मूणत
2013 में बीजेपी से राजेश मूणत
2018 में कांग्रेस से विकास उपाध्याय
बीजेपी का गढ़ माने जाने वाली रायपुर पश्चिम विधानसभा सीट पर 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क,और स्वच्छता यहां की प्रमुख समस्या है। यहां ओबीसी वर्ग की संख्या सर्वाधिक है। इसमें में भी साहू समाज का दबदबा है।
रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट
2008 में बीजेपी से बृजमोहन अग्रवाल
2013 में बीजेपी से बृजमोहन अग्रवाल
2018 में बीजेपी से बृजमोहन अग्रवाल
रायपुर दक्षिण सीट को बीजेपी का अभेद किला माना जाता है। यहां पिछले तीन चुनावों से बीजेपी के बृजमोहन अग्रवाल की एकतरफा जीत हो रही है। यहां न तो जातिगत समीकरण चलता है, ना ही विकास का दावा। यहां केवल और केवल बृजमोहन अग्रवाल के परिवार की रणनीति ही काम आती है। इलाके में ट्रैफिक की समस्या हमेशा बनी रहती है। क्षेत्र में तालाबों की संख्या काफी है, लेकिन विकास की आँधी में उन्हें खत्म किया जा रहा है।
धरसींवा विधानसभा सीट
2003 में बीजेपी से देव भाई पटेल
2008 में बीजेपी से देव भाई पटेल
2013 में बीजेपी से देव भाई पटेल
2018 में कांग्रेस से अनीता शर्मा
धरसींवा सीट पर ओबीसी वोटर्स की संख्या सर्वाधिक है। ओबीसी में भी साहू और कुर्मी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। जबकि देवांगन और सतनामी समुदाय के वोटर्स चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। राज्य गठन के बाद लगातार तीन चुनावों में यहां से बीजेपी के देवजीभाई पटेल लगातार तीन बार चुनाव जीते , लेकिन रमन सरकार में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। 2018 में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। और बीजेपी के अभेद किला माने जाने वाली इस सीट कब्जा कर लिया । इलाके में प्रदूषण और बेरोजगारी की समस्या अधिक है।
आरंग विधानसभा सीट
2003 में बीजेपी से संजय धीधी
2008 में कांग्रेस से गुरू रूद्र कुमार
2013 में बीजेपी से नवीन मार्कंडेय
2018 में कांग्रेस से डॉ शिवकुमार डहेरिया
आरंग विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां से हर बार विधायक बदलते रहते है। यहां लगातार एक पार्टी चुनाव नहीं जीती। विधानसभा क्षेत्र में एससी वर्ग के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। एससी वोटर्स 40 फीसदी है। साथ ही 20 फीसदी एसटी मतदाता, औऱ 30 फीसदी ओबीसी वोटर्स है। यहां अनुसूचित जाति निर्णायक भूमिका में होते है। समस्याओं की बात की जाए तो इलाका विकास में पिछड़ा हुआ है। पेयजल ,अच्छी शिक्षा और रोजगार -मुख्य समस्या है।
अभनपुर विधानसभा सीट
अभनपुर विधानसभा सीट
2003 में कांग्रेस से धनेंद्र साहू
2008 में बीजेपी से चंद्रशेखर साहू
2013 में कांग्रेस से धनेंद्र साहू
2018 में कांग्रेस से धनेंद्र साहू
अभनपुर विधानसभा सीट पर ओबीसी और एससी मतदाता सर्वाधिक है, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। यहां 50 फीसदी वोट साहू समाज का है। इसलिए पिछले चार दशक से साहू समाज का ही विधायक रहा है। 2008 में यहां से बीजेपी के चंद्रशेखर साहू ने चुनाव जीता था, वहीं 2003,2013 और 2018 में कांग्रेस के धनेंद्र साहू ने चुनाव जीता था। इससे पहले भी 1993 और 1998 में धीनेंद्र साहू यहां से चुनाव जीत चुके है। 1985 से अब तक यहां चंद्रशेखर साहू और धीनेंद्र साहू के बीच मुकाबला रहा है। चंद्रशेखर यहां से 1985 1990 और 2008 में विधायक निर्वाचित हुए । पिछले चार दशक से दोनों ही नेताओं ने क्षेत्र का नेतृत्व किया है। क्षेत्र में शिक्षित युवाओं के लिए बढ़ती बेरोजगारी,किसानों को खेती की सिंचाई के लिए पानी की कमी हमेशा चिंता का विषय बना हुआ है।
छत्तीसगढ़ का सियासी सफर
1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।
प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गग्गी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।
Created On :   16 Sept 2023 3:14 PM IST
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