प्लास्टिक जैविक तरीके से राख में बदलती है, मेरे नवाचार से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी

Plastic turns into ash organically, my innovation will help in environmental protection: Nasir Akhtar
प्लास्टिक जैविक तरीके से राख में बदलती है, मेरे नवाचार से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी
नासिरा अख्तर प्लास्टिक जैविक तरीके से राख में बदलती है, मेरे नवाचार से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी
हाईलाइट
  • प्लास्टिक जैविक तरीके से राख में बदलती है
  • मेरे नवाचार से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी : नासिरा अख्तर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जब पूरी दुनियां प्लास्टिक वेस्ट से जंग हार चुकी थी, एक दसवीं पास महिला ने पर्यावरण संरक्षण का एक अनोखा तरीका निजात किया।

नारी को यूं ही शक्ति नहीं माना जाता। नसीरा अख्तर ने असंभव को सम्भव कर दिखाया है। दक्षिण कश्मीर में कनीपोरा कुलगाम की रहने वाली नसीरा अख्तर ने पूरी दुनिया के विज्ञानी और पर्यावरणविद को पीछे छोड़ते हुए प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट का एक जैविक और अनोखा तरीका निकाला है। इंडिया बुक आफ रिकार्डस, अनसंग इनोवेटर्स आफ कश्मीर और कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में उसकी कहानी प्रकाशित हो चुकी हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आईएएनएस से बातचीत में नासिरा से कहा अब ये पेटेंट उन्होंने एक निजी कंपनी को दुनिया की भलाई के लिए बेच दिया है और अब फिर से एक नई खोज में जुट गईं हैं।

सवाल- राष्ट्रपति से भी सम्मानित हुईं, आपका कैसा अनुभव रहा!

जवाब- जी मैं पहली बार दिल्ली आई हूँ। राष्ट्रपति के हाथों सम्मान मिला। राष्ट्रपति भवन और मंत्रालय की और से ये जश्न मनाया गया। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर देश की कुछ र्चुंनदा महिलाओं को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गर्व का अनुभव हो रहा है। मेरी तरह नवाचार करने वाली महिलाओं समेत, समाज सेवा, शिक्षा, विज्ञान अपनी प्रतिभा को साबित करने वाली अनेक महिलाओं को ये अवसर मिला।

सवाल- ये सब कैसे शुरू किया आपने! क्या, कोई शिक्षा ली इसके लिए?

जवाब- नहीं मैं कोई विज्ञानिक नहीं हूँ, न विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त की है। कुलगाम जो महिलाओं की साक्षरता के मामले में पिछड़ा जिला है जहां से मैं आती हूँ। मैं ज्यादा पढ़-लिख भी नहीं पाई, 10वीं पास हूँ। 21-22 साल पहले दिमाग चलाना शुरू किया। 14 साल पहले मैं कामयाब हो गई। करीब 20 साल की ये मेहनत है मेरी। अलग-अलग किस्म की चीजों को प्लास्टिक पर डाल जलाती थी। फिर एक दिन प्लास्टिक को जलाया तो देखा कि उसकी राख बन गई है।

मैं कश्मीर विश्विद्यालय गई वहां मैंने अपने फामूर्ले से प्लास्टिक जलाया। पूरा डेमोस्ट्रेशन दिया ऐसा एक बार नहीं हर बार लोग डैमो की मांग करते फिर उसकी जांच कराई जाती। लेकिन ये सही साबित हुआ। फिर अंत में मैंने इसे एक निजी कम्पनी को अपना पेटेंट बेचने का निर्णय लिया ताकि पूरी दुनिया इसका फायदा उठा सके। मैंने कम्पनी के साथ नॉनडिस्क्लोजर का एक एग्रीमेंट साइन किया है। कम्पनी इस पर काम कर रही हैं कम्पनी को जब स्टार्टअप मिलेगा तो वो इस पर काम करेगी।

सवाल- परिवार में कौन-कौन है आपके उनसे कितना सहयोग मिला?

जवाब- दो बेटियों हैं। पति तीन वर्ष पहले ही गुजर गए। वो भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। अपने ही गांव में एक दुकान चलाते थे। मुझे बहुत से सम्मान मिले हैं, कई किताबों में मेरा नाम आया है, लेकिन यह खुदा की देन है। प्लास्टिक का कचरा जब मैं अपने आंगन और गांव में देखती थी तो दिल दुखी होता था। राष्ट्रपति से सम्मान मिलने वाला यह पुरस्कार मेरा नहीं है, उन सभी महिलाओं का है,जो मुश्किल हालात में रहते हुए कुछ नया करना चाहती हैं।

सवाल- कुल मिलाकर अब तक का सफर कैसा रहा? कितनी मुश्किल आई ?

जवाब- ऐसा नहीं है कि खोज के लिए हरेक ने सहयोग व समर्थन दिया है, राह में कई मुश्किलें भी आई हैं। कश्मीर के हालात को सब जानते हैं, इसलिए इस बारे में ज्यादा न बोलना बेहतर है। जब मैंने सुना कि प्लास्टिक नष्ट नहीं हो सकता, तो मैंने उस पर काम किया। लेकिन जब कामयाबी मिली तो उस समय इंटरनेट का भी जमाना नहीं था कि मैं अपनी कामयाबी को साझा कर सकूं। अब एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहीं हूँ। कामयाबी मिलने पर उसे भी साझा करुंगी।

सवाल- कश्मीर में धारा 370 हटने के पहले कश्मीर बेहतर था या अब का कश्मीर?

जवाब- कश्मीर में लोग बहुत मुश्किल हालात में लोग जीते आये हैं। आज का कश्मीर काफी बेहतर है, आजाद है। अब कश्मीर की तरक्की के रास्ते खुल रहे हैं, कारखाने लगा सकते हैं, लोगों को रोजगार मिल सकता है। हमें नई पहचान मिल सकती है। अब कुछ सालों से मैं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भी काम कर रही हूँ।

आईएएनएस

Created On :   9 March 2022 12:00 PM IST

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