पीएमएलए प्रावधानों को बरकरार रखने, समलैंगिक सेक्स को अपराध मुक्त करने जैसे फैसलों का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति खानविलकर हुए सेवानिवृत्त

Justice Khanwilkar, who was part of decisions like upholding PMLA provisions, criminalizing gay sex, retires
पीएमएलए प्रावधानों को बरकरार रखने, समलैंगिक सेक्स को अपराध मुक्त करने जैसे फैसलों का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति खानविलकर हुए सेवानिवृत्त
नई दिल्ली पीएमएलए प्रावधानों को बरकरार रखने, समलैंगिक सेक्स को अपराध मुक्त करने जैसे फैसलों का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति खानविलकर हुए सेवानिवृत्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आधार मामले से लेकर धन शोधन निवारण अधिनियम के कई प्रावधानों को बरकरार रखने और 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को एसआईटी की क्लीन चिट बरकरार रखने वाले फैसले देने वाली प्रमुख पीठों में शामिल रहे सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर शुक्रवार को रिटायर हो गए।

उन्होंने बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को उनके प्यार और स्नेह के लिए धन्यवाद दिया। सेरेमोनियल बेंच में प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना और दो अन्य जजों के साथ बैठे जस्टिस खानविलकर ने कहा, अपनी विदाई के शब्दों के रूप में आप सभी को आपके प्यार और स्नेह के लिए मैं केवल धन्यवाद कहना चाहूंगा। बहुत-बहुत धन्यवाद। ईश्वर आपका भला करे।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि न्यायमूर्ति खानविलकर को काम के प्रति समर्पित के रूप में जाना जाता है। सिंह ने कहा, जब कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्त होते हैं तो हमारे लिए यह हमेशा मुश्किल होता है। यह तब और मुश्किल होता है, जब कोई न्यायाधीश, जो हमारा हिस्सा रहे हैं, सेवानिवृत्त हो जाते हैं। वह हमारे एक सहयोगी के रूप में वहां रहे हैं। इस बार के सदस्य के रूप में, हमारे चैंबर उच्चतम न्यायालय में एक ही गलियारे में थे। हमने उन्हें उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनते देखा और फिर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में यहां वापस आए।

सिंह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने के लिए 65 वर्ष की आयु बहुत कम है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो कोविड के कारण मौजूद नहीं थे, वर्चुअल उपस्थित हुए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि अटॉर्नी जनरल भी कोविड-19 से ग्रस्त हैं, अन्यथा वह न्यायमूर्ति खानविलकर पर अपने विचार व्यक्त करते।

मेहता ने कहा, हम वास्तव में न्यायमूर्ति खानविलकर को याद करेंगे। हम उनके चेहरे की मुस्कान को याद रखेंगे। मेरी इस बात से सभी सहमत होंगे कि याचिका खारिज करते हुए भी चेहरे पर मुस्कान के साथ वह ऐसा करते थे और हमने कभी कटुता के साथ अदालत कक्ष नहीं छोड़ा। वर्चुअली पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा, न्यायमूर्ति खानविलकर को एक सहयोगी के रूप में लगभग चार दशकों से जानना एक सम्मान और खुशी की बात है.. मैं केवल एक ही बात कहूंगा कि कृपया इसे दूसरी पारी की शुरूआत मानें न कि सेवानिवृत्ति।

न्यायमूर्ति खानविलकर आधार मामले और 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य को विशेष जांच दल (एसआईटी) की क्लीन चिट को बरकरार रखने सहित कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं। वह उस पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने हाल ही में धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति की कुर्की और जब्ती से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारों को बरकरार रखा था।

वह उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने घोषणा की थी कि केंद्र सरकार की प्रमुख आधार योजना संवैधानिक रूप से वैध है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया - जिसमें बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में प्रवेश से जोड़ना आदि शामिल है।

वह उस बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने 2018 में, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को लेकर अपना फैसला सुनाया था। पीठ ने समलैंगिकों के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान ब्रिटिश युग के कानून के उस हिस्से को खारिज कर दिया था, जो सहमति से यौन संबंध को इस आधार पर अपराध मानता था कि यह समानता और गरिमा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

हाल ही में, न्यायमूर्ति खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2002 के गुजरात दंगों में मोदी और 63 अन्य को एसआईटी की क्लीन चिट को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने कहा कि 2002 के गुजरात दंगों की एसआईटी जांच से पता चला है कि ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली है, जिससे यह साबित हो सके कि राजनीतिक प्रतिष्ठान ने अन्य व्यक्तियों के साथ दंगा भड़काने की साजिश रची थी या जब दंगे भड़क रहे थे तो इसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था। इस साल अप्रैल में एफसीआरए संशोधन अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक फैसले में, न्यायमूर्ति खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि विदेशी दान प्राप्त करना पूर्ण या निहित अधिकार नहीं हो सकता है।

न्यायमूर्ति खानविलकर पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने केरल के सबरीमाला में अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया। वह एक संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने फैसला सुनाया था कि व्यभिचार अब भारत में अपराध नहीं है। न्यायमूर्ति खानविलकर को मई 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उनका जन्म 30 जुलाई, 1957 को पुणे में हुआ था और उन्होंने मुंबई के एक लॉ कॉलेज से एलएलबी किया था। उन्हें 4 अप्रैल, 2013 को हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और बाद में 24 नवंबर, 2013 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

 

आईएएनएस

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Created On :   29 July 2022 8:00 PM IST

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