आजादी के आंदोलन में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका: प्रो. संजय द्विवेदी

Important role of journalists in freedom movement: Prof. Sanjay Dwivedi
आजादी के आंदोलन में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका: प्रो. संजय द्विवेदी
नई दिल्ली आजादी के आंदोलन में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका: प्रो. संजय द्विवेदी
हाईलाइट
  • छूटी हुई कड़ियों को जोड़ना आलोचना नहीं
  • प्रक्रिया है: प्रो. शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कहते हैं कि तथ्‍य अपरिवर्तनीय होते हैं, लेकिन व्‍याख्‍याओं में भिन्‍नता हो सकती है। जहां तक भारत के स्‍वाधीनता संग्राम के इतिहास की बात है, तो तथ्‍यों में भिन्‍नता है, जबकि व्‍याख्‍याएं अपरिवर्तनीय हैं। यही कारण है कि आज हमें कड़ियों को जोड़ना पड़ रहा है। कड़ियों को जोड़ना किसी तरह की आलोचना नहीं, अपितु तथ्यों को समग्रता में प्रस्तुत करना है।"" यह विचार जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित ने भारतीय जन संचार संस्‍थान (आईआईएमसी) और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के संयुक्त तत्वावधान में "भारतीय मीडिया एवं स्‍वतंत्रता आंदोलन" विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के उद्घाटन सत्र को प्रमुख वक्‍ता के तौर पर संबोधित करते हुए व्‍यक्‍त किए।

इस अवसर पर प्रो. पंडित ने कहा कि विविध भाषाओं में रचित होने के बावजूद भारतीय मीडिया एक है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने का दावा करता है, लेकिन आज वह भी एक उद्योग का रूप ले चुका है। आजादी के दौरान पत्रकारिता मिशन की भावना से की जाती थी, परन्तु आज मीडिया घराने का स्‍वामी होना कारोबार बन चुका है। उन्‍होंने कहा कि पत्रकारों को सतही जानकारी नहीं, अपितु गहन जानकारी होना आवश्‍यक है। उन्‍होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे भाषा को संचार के माध्‍यम की तरह ही लें, इसे विचारधारा न बनाएं। जेएनयू की कुलपति ने कहा कि आज प्रेस को आत्‍मसंयम, तथ्‍यों को सार्वजनिक करने से पूर्व उनकी विधिवत जांच करने और अपने सामाजिक उत्‍तरदायित्‍वों को समझने की जरूरत है।

आईसीएचआर के अध्‍यक्ष प्रो. रघुवेंद्र तंवर ने विशिष्‍ट अतिथि के तौर पर शुभारंभ सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि हम आख्‍यानों को परिवर्तित नहीं कर रहे, बल्कि अधूरी कड़ियों को जोड़ रहे हैं। इतिहास, बोध का मामला है, लेकिन मीडिया विशुद्ध, मासूम, सीधा-सरल वर्णन प्रदान करता है। प्रश्‍न सच्‍चाई बताने का है। इस देश के लाखों विद्यार्थियों को गलत इतिहास पढ़ाया गया है कि आजादी की लड़ाई की शुरुआत 20वीं सदी के प्रारंभ से हुई, जबकि यह  कई सौ साल का आंदोलन है। जिन रिपोर्टों, दस्‍तावेजों आदि के आधार पर इतिहास लेखन होता है, उन्‍हें किसी न किसी स्‍तर पर संपादित किया गया होता है। हम एक प्रकार से इतिहास के संपादित संस्‍करण को ही इतिहास समझ बैठते हैं।

इससे पूर्व, आईआईएमसी के महनिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने स्‍वागत भाषण में कहा कि स्‍वाधीनता की दास्‍तान को समग्रता के साथ प्रस्‍तुत नहीं किया गया है। अनेक स्‍थानों पर हुए जनांदोलनों, जिनमें बड़े नाम शामिल नहीं थे, उन्‍हें छोड़ दिया गया है। इतिहास की चेतना जागृत करने में, बोध जागृत करने में और आजादी के आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका बहुत खास है। आजादी की लड़ाई में मीडिया की भूमिका को रेखांकित करना जरूरी है। उन्‍होंने कहा कि हमें वैचारिक साम्राज्‍यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी। यह विचारों की घर वापसी का समय है, अपने भारतबोध पर, अपनी भारतीयता पर, अपनी जमीन और अपने पुरखों पर गर्व करने का समय है।

इससे पहले संगोष्ठी के संयोजक प्रो. प्रमोद कुमार ने विषय प्रवर्तन किया और जानकारी दी कि 300 प्रतिनिधियों ने संगोष्‍ठी के लिए पंजीकरण कराया है और 100 से अधिक शोधार्थी शोध पत्र प्रस्तुत कर रहे हैं। इस सत्र का संचालन आईआईएमसी में प्राध्‍यापक प्रो. संगीता प्रणवेंद्र ने किया और धन्‍यवाद ज्ञापन अपर महानिदेशक  आशीष गोयल ने किया।

इस अवसर पर स्वाधीनता संग्राम की गाथा को समग्रता के साथ दर्शाने वाली एक प्रदर्शनी भी लगाई गई। आईसीएचआर द्वारा निर्मित इस प्रदर्शनी में प्रख्‍यात स्वाधीनता सेनानियों और महत्वपूर्ण घटनाओं के अतिरिक्त अनेक गुमनाम शहीदों, स्‍थानीय विद्रोहों, भूमिगत संगठनों से संबंधित जानकारी और अनेक दुर्लभ चित्र भी प्रदर्शित किए गए हैं।

संगोष्‍ठी के प्रथम तकनीकी सत्र का विषय "लोक माध्‍यम और भारत में स्‍वाधीनता संग्राम" था। इस सत्र को महर्षि वाल्‍मीकि संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय, कैथल, हरियाणा के कुलपति  प्रो. रमेश चंद्र भारद्वाज और आईआईएमसी में सह प्राध्‍यापक डॉ. राकेश उपाध्‍याय ने संबोधित किया। सत्र का संचालन आईआईएमसी में सह प्राध्‍यापक डॉ. रचना शर्मा ने किया और धन्‍यवाद ज्ञापन सह प्राध्‍यापक डॉ. रिंकू पेगू ने किया।

दूसरे तकनीकी सत्र का विषय "औपनिवेशिक भारत में प्रतिबंधित प्रेस" था। इस सत्र में नेहरू स्‍मारक संग्रहालय एवं पुस्‍तकालय, नई दिल्‍ली में अनुसंधान एवं प्रकाशन विभाग के प्रमुख डॉ. नरेन्‍द्र शुक्‍ल,  भारती कॉलेज, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक अंशु यादव, आईआईएमसी के डीन अकादमिक प्रो. गोविंद सिंह ने अपने विचार व्‍यक्‍त किए। सत्र का संचालन आईआईएमसी में सह प्राध्‍यापक डॉ. राकेश उपाध्‍याय ने किया और धन्‍यवाद ज्ञापन सह प्राध्‍यापक डॉ. पवन कौंडल ने दिया।

तीसरे तकनीकी सत्र का विषय "ब्रिटिश काल के दौरान श्रव्य दृश्य मीडिया और राष्ट्रीय जागरण" था। इस सत्र को फिल्‍मकार एवं लेखक डॉ. राजीव श्रीवास्‍तव, भारतीय विज्ञापन मानक परिषद की मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी  मनीषा कपूर तथा वरिष्‍ठ पत्रकार एवं प्रसार भारती में परामर्शदाता श्री उमेश चतुर्वेदी ने सम्‍बोधित किया। सत्र का संचालन विज्ञापन एव जनसंपर्क विभाग की पाठ्यक्रम निदेशक प्रो. अनुभूति यादव ने किया और धन्‍यवाद ज्ञापन प्रकाशन विभाग के प्रमुख प्रो. वीरेंद्र कुमार भारती ने दिया।

Created On :   28 April 2022 4:39 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story