महाराष्ट्र सियासी संकट की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के जज को क्यों याद आया बोम्मई केस? जानें क्या था पूरा मामला
- महाराष्ट्र सियासी संकट का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र सियासी संकट का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। जहां पर उद्धव ठाकरे की तरफ से कोर्ट में दलील दी जा रही है कि राज्यपाल की तरफ से कल फ्लोर टेस्ट के लिए सत्र बुलाना गलत है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दोनों पक्षों की तरफ से दलीलें दी जा रही है। इसी दौरान जज की तरफ से बोम्मई केस का भी जिक्र किया गया है। जिसको लेकर लोगों के मन में सवाल उठना शुरू हो गए हैं कि इस केस का जिक्र क्यों किया गया है। तो आइए जानते है कि क्या था बोम्मई केस?
क्या था बोम्मई केस?
बोम्मई केस की शुरुआत साल 1989 में हुई थी जिसका कारण भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 था। जिसके अनुसार अगर किसी राज्य की सरकार अगर अपना बहुमत खो देती है तो उस राज्य की सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा। कुछ ऐसा ही वाकया उस दौरान हुआ था जब बोम्मई ने सबसे पहले इस मामले का विरोध करते हुए पारित प्रस्ताव की प्रति तत्कालीन राज्यपाल को प्रस्तुत की थी लेकिन राज्यपाल ने उन्हें विधानसभा में बहुमत परीक्षण का अवसर नहीं दिया।
जिसके बाद बोम्मई ने राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ पहले हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में याचिका की, वहीं से बोम्मई केस की शुरुआत हुई। लगभग पांच सालों बाद 11 मार्च साल 1994 को सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायधीशों की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए, केस का फैसला बोम्मई के हक में सुनाया और संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार को मनमाने ढंग से बर्खास्त करने के नियम को समाप्त कर दिया। आज भी कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस. आर. बोम्मई को उनके बोम्मई केस के लिए याद किया जाता है।
कौन थे बोम्मई?
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस. आर. बोम्मई जो 13 अगस्त 1988 से 21 अप्रैल 1989 तक जनता दल सरकार की ओर से कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे, लेकिन 21 अप्रैल 1989 को बोम्मई की सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। गौरतलब है कि उस वक्त पार्टी के कई नेताओं ने दलबदल कर लिया था, जिसके कारण बोम्मई सरकार अल्पमत में आ गई थी और पार्टी को बर्खास्त कर दिया गया था।
Created On :   29 Jun 2022 7:33 PM IST