दिल्ली हाई कोर्ट ने गिद्धों की घटती संख्या को लेकर दायर याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र को और समय दिया

Delhi High Court gives more time to the Center to respond to the petition filed on the dwindling number of vultures
दिल्ली हाई कोर्ट ने गिद्धों की घटती संख्या को लेकर दायर याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र को और समय दिया
नई दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट ने गिद्धों की घटती संख्या को लेकर दायर याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र को और समय दिया

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को भारत में गिद्धों की घटती आबादी के मुद्दे को उठाने वाली याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मुद्दे पर अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले को अगली सुनवाई के लिए 25 जुलाई को सूचीबद्ध किया।

अदालत ने दिसंबर 2022 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) को भारत की घटती गिद्ध आबादी के लिए जिम्मेदार दवाओं को गैरकानूनी घोषित करके गिद्धों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।

इसने इस तथ्य पर गंभीरता से ध्यान दिया था कि पशु चिकित्सा में एनएसएआईडीएस (गैर-स्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी ड्रग्स) का उपयोग, जैसे डिक्लोफेनाक, एसीक्लोफेनाक, केटोप्रोफेन, निमेसुलाइड इत्यादि के कारण गिद्धों की संख्या में 97 प्रतिशत की कमी आई है। बंसल ने अदालत को सूचित किया था कि यहां तक कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने भी सार्वजनिक रूप से संकेत दिया था कि गिद्धों की आबादी तीन दशकों से अधिक समय में 40 मिलियन से घटकर केवल 19,000 रह गई है।

बंसल ने कहा- मंत्री के बयान से स्पष्ट है कि पिछले 30 वर्षों में लगभग 4 करोड़ गिद्धों की मृत्यु हुई है, जिसका अर्थ है कि लगभग 13 लाख गिद्धों ने हर साल अपनी जान गंवाई है, जिसका अर्थ है कि जहरीली दवाओं के कारण भारत में हर महीने लगभग 1 लाख गिद्धों की मृत्यु हो रही है।

उन्होंने दावा किया कि भारत सरकार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई समितियों में किए गए अपने स्वयं के बयानों की अनदेखी कर रही है और यह गिद्धों को नुकसान पहुंचाने वाली जहरीली दवाओं को गैरकानूनी नहीं बना रही है, जिन्हें इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा एक लुप्तप्राय प्रजाति माना जाता है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 में सूचीबद्ध हैं।

 

(आईएएनएस)

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Created On :   21 April 2023 8:30 PM IST

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