जयंती विशेष: लाला लाजपत राय ने कुछ इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में दिया था योगदान

Birth Anniversary: Lala Lajpat Rais Contribution To Indian Freedom Movement
जयंती विशेष: लाला लाजपत राय ने कुछ इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में दिया था योगदान
जयंती विशेष: लाला लाजपत राय ने कुछ इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में दिया था योगदान
हाईलाइट
  • आंदोलन में मिला 'पंजाब केसरी' का नाम
  • लाजपत
  • दयानंद सरस्वती के प्रिय छात्र थे
  • लाजपत
  • लाठीचार्ज में बुरी तरह जख्मी हुए थे

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज सारा देश लाला लाजपत राय की जयंती मना रहा है। लाजपत, गरम दल के नेता के तौर पर जाने जाते हैं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 28 जनवरी, 1865 में पंजाब के फिरोजपुर के ढुडिके गांन में हुआ था। वे अपने बाल्यकाल से ही बहुत समझदार और कुशल थे। उनके पिता मुंशी राधाकृष्ण, पंजाब के रेवाड़ी के एक सरकरी स्कूल में शिक्षक थे और मां गुलाब देवी बड़ी ही सीधी और धार्मिक थी।

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शिक्षा
रेवाड़ी के जिस सरकारी स्कूल में पिता टीचर थे, लाला लाजपत राय ने उसी स्कूल से अपनी प्राथमिक शिक्षा ली। लाजपत ने 1880 में कलकत्ता यूनीवर्सिटी से और एक वर्ष में पंजाब यूनीवर्सिटी से एंट्रेंस एक्जाम पास किया। इसके बाद जब उन्होंने 1882 में FA की परीक्षा पास की तब उनका संपर्क आर्य समाज से हुआ और वे आगे चलकर इसके सदस्य भी बनें। लाजपत को आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रिय छात्रों में से एक थे। इसके बाद वह वकालत का अभ्यास करने के लिए 1886 में हिसार चले गए।

असहयोग आंदोलन का नेतृत्व
कुछ समय बाद लाजपत ने वकालत छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। आर्थिक रूप से अंग्रेजों से लड़ने के लिए उन्होंने 1894 में में लक्ष्मी बीमा कंपनी और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) की नींव रखी। 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, तब वे "पूर्ण स्वराज" के लिए अरबिंदो घोष, बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक के साथ मिले। ये सभी गरम दल के नेता रहे। वे 1917 में अमेरिका गए और 1920 में भारत लौटने के बाद 1921 में कांग्रेस पार्टी के विशेष सत्र का नेतृत्व किया और असहयोग आंदोलन की शुरूआत की।

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"पंजाब केसरी" की उपाधि
यह आंदोलन पंजाब में पूर्ण रूप से सफल रहा। इसी कारण उन्हें "पंजाब का शेर" कहा जाने लगा और "पंजाब केसरी" की उपाधि दी गई। इस आंदोलन के चलते लाजपत 1921 से 1923 तक जेल में रहे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में प्रभाव इतना तेज था कि देश के युवा उनसे प्रेरित हो रहे थे। लाजपत से प्रेरित होकर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और भी कई युवा अंग्रेजों से देश को आजादी दिलाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे।

साइमन कमीशन का विरोध
1928 में अंग्रेजों ने भारत में राजनीतिक स्थिति की रिपोर्ट तैयार करने के लिए साइमन कमीशन की स्थापना की। इसमें एक भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया। 1928 में ही लाजपत ने साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए विधानसभा प्रस्ताव पेश किया और जमकर विरोध किया। साथ ही एक अहिंसक मार्च का नेतृत्व भी किया। इस दौरान उन्होंने विरोध में अपने समर्थकों के साथ अंग्रेजों को काले झंडे दिखाते हुए "साइमन वापस जाओ" का नारा दिया।

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लाठीचार्ज के कारण मृत्यु
साइमन कमीशन के खिलाफ देशभर में आग भड़क चुकी थी। हर जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में लाजपत के नेतृत्व में किए जा रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया। बताया जाता है कि इस दिन लाजपत पर लाठीचार्ज नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से हमला किया गया था। वे बेहद बुरी तरह से जख्मी हो चुके थे। लाठीचार्ज के ठीक 18 दिन बाद 17 नवंबर 1928 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

सांडर्स हत्याकांड
इसके ठीक एक महीने बाद ब्रिटिश पुलिस अफसर जेपी सांडर्स की 17 दिसंबर को गोली मारकर हत्या कर दी गई। सांडर्स के आदेश से ही लाठीचार्ज किया गया था, जिस कारण लाजपत की मृत्यु हुई। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को असेंबली में बम फेंकने के आरोप में जेल भेजा गया। उन पर सांडर्स की हत्या का आरोप भी लगाया गया। हालांकि बताया जाता है कि सांडर्स हत्याकांड में उर्दू में की गई FIR में भगत सिंह नाम शामिल नहीं था, लेकिन इसके बावजूद भी उनके साथ सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।

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Created On :   28 Jan 2020 5:54 AM GMT

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