तवांग झड़प के बाद एक बार फिर उठी अहिर रेजिमेंट की मांग, 1962 के युद्ध में चीन की सेना की नाक में कर दिया था दम, 12 सौ चीनियों को मौत के घाट उतार हो गए थे शहीद

After the Tawang clash, the demand for Ahir regiment is rising once again, know history
तवांग झड़प के बाद एक बार फिर उठी अहिर रेजिमेंट की मांग, 1962 के युद्ध में चीन की सेना की नाक में कर दिया था दम, 12 सौ चीनियों को मौत के घाट उतार हो गए थे शहीद
अहिर रेजिमेंट तवांग झड़प के बाद एक बार फिर उठी अहिर रेजिमेंट की मांग, 1962 के युद्ध में चीन की सेना की नाक में कर दिया था दम, 12 सौ चीनियों को मौत के घाट उतार हो गए थे शहीद
हाईलाइट
  • अहिर रेजिमेंट को इसलिए किया जाता है याद

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। कुछ दिन पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत और चीन के बीच भिड़त हुई थी। जिसमें भारतीय सेनिकों ने बड़े बहादूरी के साथ चीनी सैनिकों को मार भगाया था। तकरीबन 300 से ज्यादा चीनी सैनिक भारतीय पोस्ट को कब्जा करने के इरादे से आए थे, लेकिन भारतीय जवानों ने चीन के मंसूबे पर पानी फेर दिया। जिसके बाद सरहद से लेकर संसद तक एलएसी पर सुरक्षा को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है। इस बीच एक बार फिर से अहीर रेजिमेंट की मांग उठने लगी है। बीते दिन आजमगढ़ से सांसद निरहुआ ने इसकी मांग उठाई है। बता दें कि इससे पहले यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा भी अहीर रेजिमेंट की मांग कर चुके हैं। यह वहीं रेजिमेंट है जिसने 1962 की जंग में 120 जवानों ने 3000 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। 

गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के लगभग 2 साल बाद तवांग सेक्टर में एक बार फिर से चीन ने नापाक हरकत दोहराई है। चीनी सैनिक पूरे साजों समान के साथ एक बार फिर से भारतीय पोस्ट पर कब्जा करने के इरादे से आया था। उस समय चीनी सैनिकों के हाथों में कंटीले डंडे और हथियारों मौजूद थे हालांकि भारतीय सुरक्षाबलों के सामने उनकी एक न चली और फिर चीन को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। 

अहीर सैनिकों को आज भी किया जाता है याद

यह घटना साल 1962 की है। तब भारत-चीन युद्ध समाप्त हो चुका था। स्थानीय गडरियों ने चुशूल से रिझांग ला के पास देखा कि बर्फ के बीच सैकड़ों  जवानों की लाशें पड़ी हुई है। जिसके बाद गडरियों ने इस बात की जानकारी सेना को दी। इसके बाद जब जवान रिझांग ला चौकी के पास पहुंचे तब वहां पर उन्होंने सैकड़ों की तदाद में जवानों की लाशों को देखा। तब पता चला कि ये सभी जवान 13 कुमाऊ रेजिमेंट के जवान थे, जो मेजर शैतान सिंह के अगुवाई में चौकी पर तैनात थे। यही नहीं रिझांग ला चौकी के पास 117 जवानों की लाशें थीं। इसमें से 114 सैनिक अहिर से थे। जिसके बाद मेजर शैतान सिंह के शौर्य और पराक्रम को देखते हुए उन्हें पहला सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया। 

जानें क्या हुआ उस दिन

18 नवंबर 1962 के रिझांग ला चौकी पर 120 भारतीय जवान मौजूद थे। तभी चीन के 3000 सैनिकों ने चौकी पर अचानक हमला बोल दिया। लेकिन भारतीय जवानों ने हार नहीं मानी और मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में भारतीय जवानों ने पूरी ताकत के साथ चीनी सैनिक पर हमला बोला था। इन सभी सैनिक ने अपने आखिरी सांस तक चीन का सामना किया। इस पूरे जंग में 114 भारतीय जवान शहीद हो गए लेकिन इससे पहले ये सभी बहादूर जवानों ने 1200 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिए थे। हालांकि 9 जवानों को चीन के सैनिकों ने बंदी भी बनाया था, लेकिन ये सभी सैनिक चीन के चंगुल से बच निकले।  

जानें कब शुरू हुई रेजिमेंट परंपरा

भारतीय सेना में रेजिमेंट को काफी खास माना जाता है। मालूम हो कि कई सारे रेजिमेंटों को मिलाकर सेना बनती है।अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत के दौरान रेजिमेंट परंपरा की शुरूआत की। अंग्रेज पहले समुद्री इलाकों तक ही सीमित थे इसलिए, उन्होंने सबसे मद्रास रेजिमेंट की शुरुआत की थी। जिसके बाद समय के साथ-साथ अलग-अलग रेजिमेंटों का उदय होता गया। 
 

Created On :   17 Dec 2022 6:02 PM IST

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