478 साल से चल रहे 'दंगल' में पहली बार लड़कियों ने सबको किया चित

a true Dangal in the Varanasi city of UP has been running for 478 years.
478 साल से चल रहे 'दंगल' में पहली बार लड़कियों ने सबको किया चित
478 साल से चल रहे 'दंगल' में पहली बार लड़कियों ने सबको किया चित

डिजिटल डेस्क, वाराणसी। भारतीय सिनेमा के इतिहास में आमिर खान स्टारर फिल्म "दंगल" ने एक बार फिर करोड़ों भारतीय लोगों को अपने सांस्कृतिक, परंपरागत खेल दंगल/कुश्ती के रोमांच से रूबरू कराया है। यह तो एक फिल्म थी, लेकिन हम आपको बता दें कि यूपी के वाराणसी शहर में एक सच्चा दंगल अखाड़ा गत 478 सालों से चलता आ रहा है। यह साल इस अखाड़े के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि 478 सालों में पहली बार इस अखाड़े में लड़कियों ने दांव आजमाए हैं।

लड़कियों ने दंगल में आजमाए दाव

अखाड़े को संचालित करने वाले संकटमोचन फाउंडेशन द्वारा कहा गया कि यह सब आमिर खान की फिल्म दंगल की ही प्रेरणा रही है कि इस बार लड़कियों को भी दंगल के इस अखाड़े में दांव आजमाने का मौका मिला है। यह दंगल फिल्म हरियाणा के फोगाट परिवार की सच्ची कहानी पर आधारित है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह फोगाट बहनों ने सफल होने से पहले और बाद में सामाजिक मुश्किलों का सामना किया है और अपनी सफलता का परचम लहराया है।

नागपंचमी पर होता है दंगल

वाराणसी के तुलसी दास घाट पर संचालित स्वामीनाथ अखाड़े में हर साल नागपंचमी पर दंगल आयोजित किया जाता है। इस बार दंगल में वाराणसी जिले समेत आसपास के जिलों से दर्जनों लड़कियों ने भाग लिया और अपना लाेहा मनवाया। फाउंडेशन के अनुसार हर एक मैच में तीन राउंड होते हैं और प्रत्येक हॉफ राउंड तक लड़कियां बाहर होती जाती हैं। फाइनल राउंड में 4 लड़कियों को विजेता घोषित कर दिया।

इस अखाड़े की नींव रखने का श्रेय महाकाव्य "रामचरितमानस" के रचयिता तुलसीदास जी को जाता है। तुलसीदास जी ने इस अखाड़े की नीव इसी जगह गंगा किनारे पर रखी थी। इस अखाड़े ने कल्लू पहलवान समेत कई बड़े पहलवानों को तैयार किया है।

कल्लू पहलवान की 10 वर्षीय पाेती पलक यादव ने बताया कि मेरे लिए ये बेहद खुशी का पल था। मुझे ऐसी जगह कुश्ती लड़ने का मौका मिला था, जहां सालों पहले मेरे दादा और उनके साथी दंगल लड़ा करते थे। पलक यूपी की उन लड़कियों में से हैं जिसने फ़िल्म ‘दंगल’ देखने के बाद कुश्ती को अपना करियर बनाने का फ़ैसला किया है। वाराणसी के संकटमोचन मंदिर के महंत और प्रोफ़ेसर डॉ. विशंभर नाथ मिश्रा को भी इस अखाड़े का श्रेय जाता है। उनका मानना था कि आदमी अगर कुछ ठान ले तो जो वो चाहता है वो करके दिखाता है।

डॉ. विशंबर नाथ मिश्रा के भाई और न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. विजय नाथ मिश्रा ने बताया कि वाराणसी में हमारा घर उस जगह स्थित है जहां रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था। इस प्राचीन अखाड़े को महिलाओं के लिए खोल कर हम उन्हें इस खेल में आने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।

Created On :   31 July 2017 5:59 PM IST

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