नाम बदलने का कारण: ममता कुलकर्णी ने संन्यास लेने के बाद बदला अपना नाम, जानें क्या जरूरी होता है संन्यास लेने के बाद अपना नाम बदलवाना?

ममता कुलकर्णी ने संन्यास लेने के बाद बदला अपना नाम, जानें क्या जरूरी होता है संन्यास लेने के बाद अपना नाम बदलवाना?
  • ममता कुलकर्णी ने बदला अपना नाम
  • संन्यास लेने के बाद नए नाम रखते हैं लोग
  • ये है इसका जवाब

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बॉलीवुड में एक समय की फेमस कलाकार ममता कुलकर्णी ने संन्यास ले लिया है। प्रयागराज में आयोजित हुए महाकुंभ में ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर भी बनाया गया था। लेकिन विवाद खड़े होने के बाद उनको उस पद से हटा दिया गया था। बॉलीवुड में काम कर चुकीं ममता कुलकर्णी ने संन्यास लेने के बाद अपना नाम भी बदल लिया है। संन्यास धारण करने के बाद अब उन्होंने अपना नाम श्रीयामाई ममता नंद गिरि रख लिया है। कई लोगों के मन में ये सवाल भी आता है कि, क्या संन्यास लेने के बाद नाम बदलना जरूरी होता है? या संन्यास लेने और नाम बदलने के कोई नियम होते हैं या नहीं? चलिए जानते हैं इससे संबंधित कई जरूरी बातें।

संन्यास के बाद नाम बदलना है जरूरी?

संन्यास का मतलब होता है सांसारिक बंधनों पीछे छोड़कर भगवान का निरंतर ध्यान करना। जीवन को शांतिपूर्ण तरीके से आध्यात्मिक बनाना होता है। शास्त्रों के मुताबिक देखें तो, संन्यास को जीवन की सर्वोच्च अवस्था माना गया है, इसलिए ही जब कोई भी संन्यास लेता है तो उसका नाम भी बदल जाता है। नाम बदलना इस बात की तरफ इशारा करता है कि, अब उस इंसान ने पुराने जो भी सांसारिक नाते रिश्ते हैं वो उसने तोड़ दिए हैं।

कई समय से चली आ रही है परंपरा

नया नाम नई दुनिया में नई पहचान दिलाता है। इसलिए ही ज्यादातर संन्यासी अपने वास्तविक नामों को बदल लेते हैं और अपने वास्तविक नामों से अलग हो जाते हैं। साधु-संन्यासियों में काफी पहले से ही ये परंपरा चली आ रही है, जिस वजह से ही ममता कुलकर्णी ने भी संन्यास लेने के बाद अपना नाम बदल लिया है।

क्या हैं अन्य वजहें?

सिर्फ सांसारिक बंधनों का त्याग करने से ही नाम नहीं बदला जाता है। नाम बदलने की कई और वजहें भी हैं। किसी भी संन्यासी का जब नाम बदला जाता है तो उसका नाम उसके नए अध्यात्म को समर्पित किया जाता है। उसके आध्यात्मिक लक्ष्य और दर्शन का प्रतीक माना जाता है। संन्यास लेने के बाद कोई खुद सेही अपना नाम नहीं बदल सकता है और ना ही कुछ भी नाम रख सकता है।

कौन देता है नाम?

गुरू से दीक्षा लेने के बाद गुरु की तरफ से ही नाम दिया जाता है। गुरु की तरफ से दिया गया यह नाम गुरु के प्रति समर्पण और आशीर्वाद का एक प्रतीक भी माना जाता है। बता दें, इसको लेकर किसी भी तरह का नियम या कानून नहीं है।

Created On :   3 Feb 2025 4:33 PM IST

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