Coronavirus Thoughts: “अपने हिस्से का दिया खुद ही जलाना होगा” - पंकज राय
“सिर्फ ख्वाहिशों से नहीं गिरते हैं
फूल झोली में….
कर्म की शाख को हिलाना होगा,और
कुछ नहीं होगा कोसने से अँधेरे को,
अपने हिस्से का दिया खुद ही जलाना होगा।“
डिजिटल डेस्क, भोपाल। एक साथ, एक समय पर, एक भावना के साथ, एक उद्देश्य के लिए , सकारात्मक ऊर्जा के साथ किए गए कार्य के सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा पूरे देश को एक सूत्र मंे पिरोने के लिए एवं एकता और अखंडता की भावना मजबूत करने हेतु जो प्रयास किए जा रहे हैं वह निश्चित तौर पर करुणा के खिलाफ जंग में लड़ने हेतु सही मार्ग प्रदर्शित करेगा।
"अपने हिस्से का दिया खुद ही जलाना होगा" के गूढ़ अर्थों में कई मायने हैं आइए समझने का प्रयास करें, क्योंकि अक्सर जब भी हम कोई कार्य करते हैं और हमें सफलता नहीं मिलती है तो हम कोई ना कोई कंधा ढूंढते हैं जिस पर असफलता का ठीकरा फोड़ा जा सके। आइए पूछते हैं स्वयं से कुछ सवाल?
- क्या आप स्वयं के द्वारा शुरू किए गए कार्यों की जिम्मेदारी स्वयं लेते हैं सफलता एवं असफलता दोनों ही परिस्थितियों में?
- आज आप अपने जीवन में जो कुछ भी है उसके लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते है अथवा अपनी गलतियों का दोषारोपण दूसरों पर करने की आदत है?
- क्या आपको दूसरों के द्वारा की गई मेहनत का श्रेय स्वयं लेने में आनंद आता है?
- क्या आप अपना कार्य पूरी लगन, मेहनत एवं दिल से करते हैं बिना श्रेय की परवाह किए?
आपके जीवन में शिकायतें ज्यादा है या होश पूर्वक प्रयास?
अक्सर ऐसा देखा जाता है जब भी किसी से उनका हालचाल पूछते हैं तो लोग अपने जीवन की शिकायतों की एक लंबी झड़ी लगा देते हैं। चाहे वेकिसी भी व्यवसाय अथवा नौकरी से जुड़े हुए हैं अक्सर शिकायतों की एक लंबी लिस्ट उनके साथ होती है। मूल रूप में कहीं ना कहीं हमारे जीवन में जो भी घटित होता है उसके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी स्वयं कीही भागीदारी होती है। हमारे जीवन में या आसपास कई घटनाएं ऐसी होती हैं जो हमारी इच्छा अनुसार नहीं होती और जब यह दायरा स्वयं, परिवार, समाज, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता है जिन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता, तो शिकायतों की लिस्ट और लंबी हो जाती है। उपनिषद के अनुसार समस्त जीवित प्राणी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति के ऊर्जा के मूल स्रोत से जुड़े हुए हैं। जीवन में कुछ भी अच्छा या बुरा जो भी घटित होता है बीज रूप में चेतन एवं अचेतन मन में, कभी ना कभी इसको विचार स्वरूप में आपने अपने भीतर बोया हुआ था। एक कहानी के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं।
बहुत समय पहले जब लोग वाकई बहुत ईमानदार हुआ करते थे एवं अपने घरों में ताले तक नहीं डाला करते थे। उस शहर में एक संत पुरुष रहा करते थे उनकी ख्याति दूर-दूर तक थी एवं उसके राजा भी बहुत न्यायप्रिय एवं कर्तव्यनिष्ठ थे। एक दिन एक व्यापारी ने शिकायत की, कि उसके घर से ढेर सारे पैसे, हीरे एवं जवाहरात एक चोर चुरा कर ले गया है। राजा के सिपाहियों ने चोर को पकड़कर राजा के समक्ष पेश किया। किंतु इस बार राजा ने फैसला सुनाने के लिए उन संत को आमंत्रित किया ,जिनके कारण उनके शहर में काफी शांति थी। संत के मना करने के बावजूद भी राजा ने उनसे बहुत आग्रह किया कि कृपया इस प्रकरण का फैसला आप ही सुनाएं। सब कुछ स्पष्ट था कि किस के घर चोरी हुई एवं किसने चोरी की ,सिर्फ फैसला सुनाया जाना बाकी था लेकिन जब फैसला सुनाया गया तो महल के लोगोंएवं प्रजा की आंखों में आंसू आ गए। संत ने कहा इस घटना के उपरांत यदि सजा का सबसे बड़ा कोई अधिकारी है तो वह मैं हू ,कृपया मुझे 1 वर्ष का कठोर कारावास दिया जाए। लेकिन राजा ने कहा इसमें आपका क्या योगदान है संत ने कहा कि मेरी उपस्थिति, मेरी ऊर्जा, मेरी संगति के पश्चात भी यदि इस शहर का कोई नागरिक चोरी करने पर मजबूर होता है तो उसका जिम्मेदार मैं हूं कि मैं उसका जीवन परिवर्तित नहीं कर पाया। दूसरी जिम्मेदारी इसके परिवार एवं माता-पिता की है जो इसे सही शिक्षा नहीं दे पाए। तीसरी जिम्मेदारी समाज के सभी लोगों की एवं इस व्यापारी की है जिसने अपनी जरूरत से बहुत ज्यादा धन संचय करके रखा है जिसके कारण असमानता एवं धनी एवं निर्धन के बीच बहुत बड़ी खाई निर्मित हो गई है। और राजन आप भी अप्रत्यक्ष रूप से इस चोरी के जिम्मेदार है। फैसला अद्भुत था लेकिन हम सभी को सोचने पर विवश करता है कि इस पूरी कड़ी में कहीं ना कहीं किसी ना किसी ने ज्यादा से ज्यादा पाने की होड़ , स्वयं के प्रति एवं दूसरों के प्रति बेईमानी एवं अपनी जिम्मेदारी से बचना एवं उसका दोषारोपण दूसरों पर करना ,इस तरह की परिस्थिति निर्मित कर देता है।
अपने हिस्से का दिया कैसे जलाएं?
- आप जैसे भी हैं, जिन भी परिस्थितियों में है इसकी जिम्मेदारी दूसरों पर डालने की बजाय स्वयं ले।
- आपके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी आप स्वयं ही जिम्मेदार है।
- जब आप स्वयं अपने जीवन की जिम्मेदारी लेते हैं तो जीवन को परिवर्तित करने की पूरी कमान आपके स्वयं के हाथों में आ जाती हैं एवं दृढ़ इच्छाशक्ति एवं कुशल पूर्वक प्रयास से यह संभव हो जाता है।
- अंधेरों को कोसने से तात्पर्य है कि जो कुछ आपके जीवन में है उसके लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराना परंतु आपके जीवन में रोशनी यदि कोई कर सकता है तो वह स्वयं आप।
- आपके शिक्षक, आपके गुरु, आपके बुजुर्ग, आपके मित्र एवं आपके परिजन आपको सिर्फ उनके अनुभव के अनुसार सही मार्ग पर चलने का रास्ता बता सकते हैं लेकिन वे आपके लिए चल नहीं सकते। होश पूर्वक तो आपको ही चलना होगा एवं मेहनत भी आपको ही करनी होगी।
आज इस कोरोना के संकट के समय जो भी नियम एवं आदेश इस परिस्थिति से निपटने के लिए दिए गए हैं हम सभी की जिम्मेदारी हैं की हर एक व्यक्ति यथासंभव इन नियमों का पालन करें, जो अपेक्षा हम दूसरों से रखते हैं सबसे पहले हम स्वयं उन्हें पूरा करें तो निश्चित रूप से एक संघर्षपूर्ण लड़ाई में हम सभी की जीत होगी।
धन्यवाद
पंकज राय
(अंतर्राष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर ,लेखकएवं मनोवैज्ञानिक )
M: +919407843111
Created On :   4 April 2020 2:34 PM IST
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