National Education Day 2024: 11 नवंबर को ही क्यों मनाया जाता है "राष्ट्रीय शिक्षा दिवस"? जानें इस खास दिन के पीछे का इतिहास और महत्व
- हर साल 11 नवंबर को मनाया जाता है "राष्ट्रीय शिक्षा दिवस"
- देश के पहले शिक्षा मंत्री थे मौलाना अबुल कलाम
- 1888 को सऊदी अरब में हुआ था कलाम का जन्म
डिजिटल डेस्क, भोपाल। आपको याद है, स्कूल के वो दिन जब हम अपनी नई किताबें और किताबों में घुसे हुए पेन लेकर क्लास में बैठते थे? ये वही शुरुआती दिन होते हैं जब हमें ये जानने को मिलता है कि, गणित का डर क्या होता है और कैसे एक स्टूडेंट सक्सेसफुल बनने का सपना देखता है। लेकिन, क्या आपको इस शिक्षा शब्द के पीछे का इतिहास पता है? आपको लगता होगा कि शिक्षा सिर्फ स्कूलों में ही होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। आज हम आपको "राष्ट्रीय शिक्षा दिवस" जो हर साल भारत में 11 नवंबर को मनाया जाता है, उसके बारे में बताते हैं। इस दिन को भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के योगदानों को याद करने के लिए मनाया जाता है।
इस दिन को मनाने का मतलब सिर्फ इतना नहीं कि हम मौलाना आजाद को याद करें, बल्कि ये भी है कि हम खुद से पूछें – क्या हम शिक्षा का असली मतलब समझते हैं? क्या हम इस "सीढ़ी" का सही इस्तेमाल कर रहे हैं? तो क्यों न इस "राष्ट्रीय शिक्षा दिवस" पर हम भी अपनी शुरुआती शिक्षा यात्रा से लेकर अपने सपनों तक की सीढ़ियों को एक बार फिर से याद करें। ये दिन हमें याद दिलाता है कि शिक्षा केवल एक डिग्री या प्रमाणपत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये हमारे समाज में समानता, उन्नति और सकारात्मक बदलाव का एक सशक्त माध्यम भी है। तो आइए "राष्ट्रीय शिक्षा दिवस" के अवसर पर हम भारत के लिए शिक्षा का महत्व और मौलाना अबुल कलाम आजाद का शिक्षा के प्रती योगदान के बारे में जानते हैं।
कौन थे मौलाना अबुल कलाम आजाद?
मौलाना अबुल कलाम आजाद का पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन है। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, विद्वान, लेखक और भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उनका जन्म 11 नवंबर 1888 को सऊदी अरब के मक्का में हुआ था। लेकिन बाद में वे भारत आ गए और यहीं पर अपना जीवन बिताया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलनों का भी समर्थन किया। मौलाना आजाद स्वतंत्रता के बाद देश के पहले शिक्षा मंत्री बनें और उनका "भारतीय शिक्षा प्रणाली" (Indian Education System) के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव था। उन्होंने हमारी शिक्षा व्यवस्था को एकदम तेजतर्रार बनाने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने IITs जैसी शानदार संस्थाओं की शुरुआत की ताकि हम डॉक्टर-इंजीनियर बनने के सपने से आगे भी कुछ बड़ा सोच सकें। उनकी वजह से ही आज हमारे पास उच्च शिक्षा के लिए कई रास्ते हैं, अब चाहे वो कला की पढ़ाई हो या फिर अंतरिक्ष में कुछ नया खोजने का सपना।
मौलाना अबुल कलाम आजाद के योगदान
मौलाना अबुल कलाम आजाद का मानना था कि एक मजबूत और आत्मनिर्भर समाज का निर्माण तभी संभव है जब देश का हर नागरिक शिक्षित हो। इसके लिए उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए। उनके प्रयासों के कारण ही आईआईटी (IIT),आईआईएम (IIM) और यूजीसी (UGC) जैसी उच्च शिक्षा संस्थाओं (Higher Education Institutions) की नींव रखी गई। उन्होंने 1920 में "जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय" की भी स्थपाना की। मौलाना आजाद एक महान विचारक भी थे। उन्होंने 'अल-हिलाल' और 'अल-बलाघ' नामक पत्रिकाओं की शुरूआत की। इन पत्रिकाओं के माध्यम से वे स्वतंत्रता और समाज में सुधार के विचारों का प्रचार करते थे। उनकी इसी उपलब्धियों के कारण ही हर साल उनकी जयंती को "राष्ट्रीय शिक्षा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। ताकि हम शिक्षा के महत्व और मौलाना आजाद के योगदान को याद कर सकें।
भारत की शिक्षा व्यवस्था का इतिहास
हमें भारत की शिक्षा व्यवस्था का इतिहास और वर्तमान दोनों के बारे में जानना बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। यहां की शिक्षा व्यवस्था का उद्देश्य केवल बच्चों को शिक्षित बनाना ही नहीं, बल्कि उन्हें एक काबिल और जिम्मेदार नागरिक बनाना भी है। प्राचीन काल में नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय भारत की शिक्षा का गौरव थे, जो दुनियाभर के छात्रों के आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। समय के साथ-साथ भारत में शिक्षा के तौर-तरीकों में बदलाव तो आया, लेकिन शिक्षा के प्रति सम्मान और इसके महत्व का भाव हमेशा बना रहा।
आज भारत में शिक्षा का क्षेत्र विविधतापूर्ण है। जिसमें हर राज्य की अपनी भाषा, अपने तौर-तरीके और अपनी प्राथमिकताएं हैं। लेकिन अभी भी यहां असमानता एक बड़ा पहलू बना हुआ है। शहरी क्षेत्रों के लोगों में जहां अच्छी शिक्षा मिलना आसान है वहीं, ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों के लोगों के लिए ये अब भी चुनौतीपूर्ण है। वहीं, सरकार ने शिक्षा में सुधार के लिए "नई शिक्षा नीति 2020" भी लागू की है। ये नीति बच्चों को व्यावहारिक और कौशल आधारित शिक्षा देने पर बल देती है। साथ ही, डिजिटल शिक्षा का भी भारत के शिक्षा व्यवस्था में बहुत प्रभाव पड़ा है।
जहां भारत में SWAYAM PRABHA, DIKSHA और SWAYAM जैसे प्लेटफार्मों ने लाखों छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से जोड़ने का काम किया। अब भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रगतियां तो की हैं, लेकिन अभी भी कुछ चुनौतियां हैं। भले ही आज डिजिटल युग के माध्यम से तकनीकी शिक्षा का महत्त्व बढ़ रहा है, लेकिन सभी बच्चों तक इसकी पहुंच नहीं है। ऐसे में कुल मिलाकर "भारतीय शिक्षा व्यवस्था" का उद्देश्य केवल ज्ञान देना ही नहीं, बल्कि बच्चों को एक बेहतर इंसान बनाना भी है। आज के समय में नई शिक्षा नीति, डिजिटल शिक्षा और समान अवसरों की भावना को बढ़ावा देते हुए हमें भारत को एक "ज्ञान आधारित राष्ट्र" बनने की दिशा की ओर कदम बढ़ाना होगा।
Created On :   9 Nov 2024 5:48 PM IST