Bhaskar Special: Corona महामारी से 860 से ज्यादा पत्रकार अपनी जान गवां चुके, भारत चौथे नंबर पर 

COVID-19: Journalists Global Deaths Reach 860 
Bhaskar Special: Corona महामारी से 860 से ज्यादा पत्रकार अपनी जान गवां चुके, भारत चौथे नंबर पर 
Bhaskar Special: Corona महामारी से 860 से ज्यादा पत्रकार अपनी जान गवां चुके, भारत चौथे नंबर पर 

डिजिटल डेस्क (भोपाल)। दुनियाभर में कोविड महामारी से अब तक 860 से ज्यादा पत्रकार अपनी जान गवां चुके हैं। सबसे ज्यादा लैटिन अमेरिकी देशों से हैं फिर उसके बाद भारत चौथे नंबर पर है। हाल ही में ग्लोबल इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क (gijn) के रिपोर्टर रोवन फिलिप ने इस पर एक रिपोर्ट जारी की है। पिछले एक साल दुनियाभर के पत्रकारों ने अस्पतालों और पीड़ित लोगों के बीच पहुंचकर उनके इंटरव्यू और फिल्मांकन किया है, वे अपने काम के कारण खुद को जोखिम में डालकर यह सब कर रहे हैं। 

रोवन लिखते हैं कि हम पत्रकार हर दिन सैकड़ों हज़ारों शब्द लिखते हैं, अभी हमारे पास अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए शब्दावली की कमी है, लोकतंत्र की रक्षा के लिए, लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए जर्नलिस्ट जोखिए उठाते हैं, जो किसी अनोखे करिश्मे से कम नहीं है। फरवरी में ब्राज़ील के नेशनल फेडरेशन ऑफ़ जर्नलिस्ट के रिपोर्टर जडसन सिमोस कोरोना की वजह से हमारे बीच नहीं रहे। यह रिपोर्ट उन्हें श्रद्धांजलि है। वीडियो रिपोर्टर, सिमोस सिर्फ 39 साल के थे। पिछले एक साल में महामारी की चपेट में आने वाले दुनिया भर के पत्रकारों के लिए सैकड़ों स्मृतियां गूंजती हैं। 
 
पिछले एक साल में COVID-19 से कम से कम 861 पत्रकारों की मौत हुई है। यूरोप की एक संस्था Press Emblem Campaign (पीईसी) ने महामारी की शुरुआत से ही जान गंवाने वाले मीडिया के लोगों को ट्रैक करने शुरू कर दिया था।  PEC अब मीडिया एडवोकेशी ग्रुप समूहों में शामिल हो गया है और ब्राजील, पेरू और उरुग्वे से पीआईसी को पत्रकारों को टीका प्राथमिकता पहुंच सूची में शामिल करने के लिए बुलाया जा रहा है- जैसा कि मार्च की शुरुआत में जिम्बाब्वे में हुआ, जहां 2,000 से अधिक पत्रकारों का अब जल्दी टीकाकरण हो जाएगा। 

अब बात करते हैं मई 2020 की, जब कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर को अपनी गिरफ्त में ले लिया था और तबाही मचा रखी थीं।  इस दौरान जीआईजेएन ने पत्रकारों की मदद से बेहतर कोशिश की। हेल्थ पेशेवरों, पीड़ितों की देखभाल करने वालों और अन्य फ्रंट-लाइन कर्मचारियों की तरह, पत्रकारों को भी जोखिम का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे महामारी पर कहानियों के लिए रिपोर्टिंग करते रहे हैं। 

 5 मई तक, जिनेवा स्थित PEC संस्था ने जो प्रेस स्वतंत्रता और सुरक्षा पर केंद्रित थी, उसने 24 देशों में 64 पत्रकारों की मौतें दर्ज की थी। इसके बाद जब PEC संस्था ने 15 नवंबर को आंकड़े पेश किए तो 56 देशों के कम से कम 462 पत्रकारों की कोरोना से मौत हो चुकी थी और यह सात गुना से अधिक की वृद्धि थी। कोरोनावायरस संसाधन केंद्र के जॉन्स हॉपकिन्स के अनुसार, उसी समय की अवधि में दुनिया भर में महामारी से होने वाली कुल मौतों में भी पांच गुना वृद्धि हुई है।

पीईसी के महासचिव ब्लेक लेम्पेन ने GIJN को बताया कि अब तक महामारी के 12 महीनों में मार्च 2020 से मार्च 2021 तक  68 देशों में COVID-19 से कम से कम 861 पत्रकारों की मौत हो चुकी है। उन्होंने कहा कि पूरे वर्ष हर दूसरे दिन महामारी से पीड़ित पत्रकारों की मौत हुई है। PEC ने कोरोनोवायरस से पीड़ित या जान गवां चुके परिवारों और सहकर्मियों को अपनी संवेदना भेजता रहा है व हर मदद करने की कोशिश भी की है। लेम्पेन ने एक बयान में कह यह आवश्यक है कि पत्रकारों का टीकाकरण भी जल्दी होना चाहिए,  ताकि वे बिना किसी खतरे के क्षेत्र में अपना काम कर सकें।  

PEC के डेटाबेस के मुताबिक लैटिन अमेरिकी देशों में 458 पत्रकारों की मौत हुई है और यह कुल मौतों का आधा से अधिक है। एशिया में 151 पत्रकारों की मौत इस वायरस की चपेट में आने से हुई है, जबकि 147 मौतें यूरोप में दर्ज की गई थी। लेम्पेन ने कहा, 2021 में सबसे खराब रिकॉर्ड ब्राजील में था, जहां केवल दो महीनों में 50 मौतें हुईं। पेरू पूरे महामारी के दौरान मीडिया के लिए दुनिया भर में सबसे खराब स्थिति वाला देश है, यहां 108 मौतें हुई।

PEC डेटा में केवल वे पत्रकार शामिल हैं, जिनकी कोविड-19 की वजह से मृत्यु हो गई, जिनके मामलों को स्थानीय मीडिया में प्रकाशित किया गया था, पत्रकारिता संघों द्वारा पुष्टि की गई और PEC के संवाददाताओं ने खुद कुछ जानकारी जुटाई। इस रिपोर्ट की एक ओर हैरान करने वाली बात यह थी कि लेम्पेन ने इंटरव्यू में कहा कि इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में COVID-19 से मरने वाले अधिकांश पत्रकार 70 से अधिक उम्र वाले थे, लेकिन ब्राजील, भारत या दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों में अधिकांश की उम्र 50 या 60 थी। उन्होंने कहा कि संक्रमण की उत्पत्ति को जानना हमेशा कठिन होता है, लेकिन कई लोग काम दौरान ही इससे संक्रमित हुए हैं। 

 

 

Created On :   13 March 2021 10:19 AM IST

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