Corona Effect: ...तो क्या अगला विश्व युद्ध मास्क, सेनेटाइजर और मैकेनिकल वेंटिलेटर्स पर होगा?

Corona Effect: Will the next world war be on masks, sanitizers and mechanical ventilators
Corona Effect: ...तो क्या अगला विश्व युद्ध मास्क, सेनेटाइजर और मैकेनिकल वेंटिलेटर्स पर होगा?
Corona Effect: ...तो क्या अगला विश्व युद्ध मास्क, सेनेटाइजर और मैकेनिकल वेंटिलेटर्स पर होगा?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी का कहर पूरी ​दुनिया में जारी है। इस वायरस के कारण अब तक 1 लाख 35 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। वहीं 21 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। हर दिन हजारों की संख्या में लोग अस्पतालों में भर्ती किए जा रहे हैं। ऐसे में पूरी दुनिया में इस समय अगर किसी चीज की मांग है तो वो है मेडिकल इक्यूप्मेंट्स की। विश्वभर में इस समय स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जिस तरह की आपातकालीन स्थिति बन गई है, उसकी वजह से मास्क, रेस्पिरेटर्स, मैकेनिकल वेंटिलेटर्स की मांग बढ़ गई है और ये आसानी से मिल नहीं रहे हैं। ऐसे में कई देशों में इसको लेकर अब तनातनी देखने को मिल रही है। जिस तरह से कोरोना वायरस महामारी लगातार फैल रही है और लोगों के मारे जा मारे जा रहे हैं। उसे देखते हुए यदि भविष्य में मास्क, सेनेटाइजर और मैकेनिकल वेंटिलेटर्स​ को लेकर देश आपस में लड़ते दिखाई दें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए अगर कोई देश चीन से जरूरी चीजों की खरीदारी करता है और उसे मंगाने के लिए हवाई जहाज भेजना चाहता है तो उसे कुछ सवालों पर गौर करना होगा। जैसे कि प्लेन का रूट क्या हो, उसे कहां रुकना चाहिए, कहां नहीं...? ताकि वो जहाज मंजिल तक पहुंच जाए और रास्ते में किसी दूसरे देश की सरकार उसे जब्त न कर ले। मुमकिन है कि आपको लगे कि ये कैसी पहेली बुझाई जा रही है, लेकिन सच तो ये है कि दुनिया के कुछ देश इस सवाल का सामना कर रहे हैं।

फ्रांस में मास्क वॉर की हो रही बात
बीबीसी के अनुसार दुनिया में अब कारोबारी लड़ाई की तस्वीरें उभरती दिखाई दे रही हैं और कई देशों की सरकारें इसकी शिकायत कर रही हैं। भले ही इसमें कुछ भी गैर-कानूनी नहीं हो पर हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते। महामारी का सामना करने के लिए आम नागरिकों को जरूरी चीजों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। फ्रांस में "मास्क वॉर" के बारे में बात हो रही है।

अमेरीकी खरीदारों ने ज्यादा कीमत देकर खरीद लिए फ्रांस के मास्क
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि हाल ही में फ्रांस सिर्फ इसलिए मास्क नहीं खरीद पाया, क्योंकि अमरीका के कुछ खरीदारों ने ऊंची कीमत नकद में अदा कर ये मास्क खरीद लिए। फ्रांस की एक प्रांतीय सरकार के अध्यक्ष रेनॉड मुसेलियर ने पिछले दिनों बताया कि चीन की एक रनवे पर फ्रांस के लिए मास्क ले जा रहे जहाज का सामान अमरीकियों ने नकद में खरीद लिया। जिस प्लेन को फ्रांस आना था, अमरीका चला गया।

जर्मनी ने भी की अमेरीका की शिकायत
ऐसी ही शिकायत जर्मनी की तरफ से आई है। इस बार निशाने पर साफ तौर पर अमरीका की ट्रंप सरकार थी। जर्मनी के अधिकारियों ने आरोप लगाया कि बर्लिन पुलिस के लिए दो लाख मास्क की खेप ले जा रही शिपमेंट को अमेरीका ने थाईलैंड में जब्त कर लिया। 

""जर्मनी के इंटीरियर मिनिस्टर एंड्रियास गीजेल ने कहा कि हमें इसे नए जमाने की डकैती के रूप में देखते हैं। अटलांटिक सागर के दूसरी तरफ के दोस्तों के साथ ऐसा सलूक नहीं किया जाता। भले ही वैश्विक संकट का समय हो पर हम जंगलियों की तरह तो बर्ताव नहीं कर सकते हैं। अमेरीका की सरकार से हमारी अपील है कि वे अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों का पालन करें।""

पैसे चुकाने के बाद भी जर्मनी के सुर पड़े धीमें 
हालांकि अमेरीकी प्रशासन ने इन आरोपों से इनकार किया है कि वो देश के बाहर किसी तरह की कोई चीज जब्त कर रहे हैं। इसके बाद आखिरकार जर्मनी ने अपने सुर धीमे कर लिए। जिस मास्क के लिए उसने पैसा चुकाया था, वो बर्लिन नहीं पहुंचा। अगर फ्रांस और जर्मनी जैसे अमीर देशों का ये हाल है तो कमजोर देशों से क्या उम्मीद की जा सकती है।

दुनिया के 85 प्रतिशत अस्पतालों में मेडिकल इक्विमेंट्स् की कमी
स्पेन के बिजनेस स्कूल ईसेड के प्रोफेसर मैनेल पीयरो कहते हैं कि इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जबर्दस्त मांग और सीमित आपूर्ति से समस्या है। जो समस्या यूरोपीय देशों के साथ है, वो दूसरे देश भी झेल रहे हैं। दिक्कत ये है कि जो अतिरिक्त पैसा मांगा जा रहा है, वो देने के लिए नहीं है। मार्केट रिसर्च करने वाली हिंदुस्तानी फर्म "मेटिक्यूलस रिसर्च" ने बताया कि कोरोना वायरस की महामारी ने दुनिया भर में मांग बढ़ा दी है। दुनिया भर में 85 फीसदी अस्पतालों को सप्लाई की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

इस वायरस ने बाजार अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया
बीबीसी के अनुसार इस कोरोना वायरस महामारी ने भूमंडलीकरण और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है। फेस मास्क, गाउन जैसे पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) का उत्पादन करने वाले बड़े देशों ने अपने अस्पतालों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। इनमें भारत, तुर्की और अमेरीका जैसे देश शामिल हैं।

सबसे ऊंची कीमत लगाने वाले को मिलेगा सामान
इसके अलावा मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के दूसरे नियम भी चुनौती बनकर सामने आ रहे हैं। जैसे कि सामान उसी को मिलेगा जो सबसे ऊंची कीमत लगाए या फिर जो सबसे ज्यादा मात्रा में खरीदेगा, वो सामान ले जाएगा। ये नियम अमल में थे, हैं और रहेंगे। लेटिन अमेरीका में ताकतवर माने जाने वाले ब्राजील को भी समस्याएं आ रही हैं। कुछ दिनों पहले चीन में मेडिकल प्रोडक्ट्स का एक ऑर्डर ब्राजील ने गंवा दिया था। ब्राजीली अखबार "ओ ग्लोबो" के अनुसार चीनी विक्रेता ने ब्राजील, फ्रांस और कनाडा की जगह पर अमरीका को तरजीह दी।

फ्रांस ने रोकी पेरू की पीपीई किट्स की खेप
बीबीसी के अनुसार कोरोना वायरस की महामारी की मार झेल रहे स्पेन को हाल ही में तुर्की और यहां तक कि अपने फ्रांस जैसे यूरोपीय साझीदार देशों से बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। फ्रांस ने तो अपने यहां से गुजरने वाले पीपीई किट्स की खेप को रोक लिया था। इन हालात में पेरू जैसे देशों की दुविधा बढ़ गई है कि वो कैसे चीन से अपना सामान मंगाए। हालों कि पेरू के स्वास्थ्य मंत्री विक्टर जमोरा ने बताया कि स्पेन ने उन्हें भरोसा दिया है कि वे अपने यहां के एयरपोर्ट से पीपीई किट्स के जहाज जाने देंगे।

अमेरिका में हालात सबसे ज्यादा गंभीर
"मेटिक्यूलस रिसर्च" के अनुसार ये अनुमान लगाया गया है कि अमरीका जैसे विकसित देशों के पास केवल चार से साढ़े चार करोड़ मास्क का रिजर्व है। ये कुल मांग का एक से डेढ़ प्रतिशत के करीब बैठता है। यूरोप और विकासशील देशों में हालात बहुत ही खराब है। वहीं अमरीकी कंपनियों ने युद्ध स्तर पर काम करके अपना उत्पादन दोगुना कर लिया है। अमरीकी सरकार के सूत्र बताते हैं कि हमें उम्मीद है कि अप्रैल तक मांग दोगुनी हो जाएगी। आने वाले दिनों में अमरीका को एक लाख वेंटिलेटर्स की जरूरत पड़ेगी। आखिरकार धरती पर जितनी भी कंपनियां प्रोडक्शन में लगी हैं, वो इस मांग को पूरा नहीं कर पाएंगी।

अमेरिका की धोंस
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार रेसपिरेटर्स जैसे उपकरण कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लोग इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब उन्हें अस्पतालों में काम में लाया जा रहा है। पिछले दिनों इसका उत्पादन करने वाली अमरीकी कंपनी "3M" रेसपिरेटर्स का निर्यात कनाडा और लेटिन अमरीका को न कर सके, इसके लिए ट्रंप प्रशासन ने कोरिया युद्ध के समय बनाए गए एक कानून का सहारा लिया। ""एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि हमें मास्क की जरूरत है। हम नहीं चाहते कि इसे दूसरे लोग हासिल कर लें। अगर लोग इसे हमें नहीं देंगे जिसकी हमारे लोगों को जरूरत है तो हम उनसे सख्ती से निपटेंगे।""

ऑटोमोबाइल कंपनी वेंटिलेटर और टेक्सटाइल कंपनियां बना रहीं मास्क
बीबीसी के अनुसार ऑटोमोबाइल कंपनी सिएट ने स्पेन में गाड़ियों का उत्पादन बंद कर दिया है और अब वो अस्पतालों के लिए वेंटिलेटर्स का निर्माण कर रही है। कुछ देशों में तो टेक्सटाइल कंपनियां मास्क बना रही हैं। विक्टर जमोरा कहते हैं कि कारोबारी पैमाने पर देखें तो मेरे लिए इस महामारी ने आर्थिक भूमंडलीकरण की अवधारणा को खत्म कर दिया है और हम संरक्षणवाद पर वापस लौट आए हैं।

""कोरोना वायरस की महामारी के संकट के दौरान दुनिया के देशों के बीच भरोसा कमजोर हुआ है। प्रोफेसर मैनेल पीयरो के शब्दों में कहें तो कोरोना ने सरकारों और बाजार अर्थव्यवस्था का सबसे घिनौना चेहरा हमारे सामने लाकर रख दिया है।""

Created On :   16 April 2020 7:04 PM IST

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