प्रो. संजय द्विवेदी की उदार लोकतांत्रिक चेतना का प्रमाण ' न हन्यते' पुस्तक, आत्मीयता से ओत-प्रोत स्मृतियां - प्रो. कृपाशंकर चौबे
- टूटते परिवार समस्याओं और अशांति से घिरे समाज का चेहरा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आईआईएमसी महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी की उदार लोकतांत्रिक चेतना का प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘न हन्यते’ है। ‘न हन्यते" पुस्तक में दिवंगत हुए परिचितों, महापुरुषों के प्रति आत्मीयता से ओत-प्रोत संस्मरण और स्मृति लेख हैं। ये स्मृति लेख नई पीढ़ी के लिए दृष्टांत हैं कि अपने समय के आदरणीयों को श्रद्धांजलि देते समय कैसी उदारता अपेक्षित है।
एक साथ इतने विविध विचारधाराओं के लोगों के संपर्क में आना और अपने हृदय में उन्हें स्थान देना संजय द्विवेदी की संवेदनशीलता और उनके उदारमना व्यक्तित्व को दर्शाती है। उनके जैसा संवेदनशील लेखक ही कह सकता है कि मृत्यु के बाद भी अपने पितरों को स्मृतियों में रखकर उनका पूजन, अर्चन करने वाली प्रकृति जीवित माता-पिता के अपमान को क्या सह पाएगी? द्विवेदी का यह प्रश्न क्या चीख नहीं बन जाता? संजय द्विवेदी कहते हैं कि टूटते परिवारों, समस्याओं और अशांति से घिरे समाज का चेहरा हमें यह बताता है कि हमने अपने पारिवारिक मूल्यों के साथ खिलवाड़ किया है। अपनी परंपराओं का उल्लंघन किया है। मूल्यों को बिसराया है। इसके कुफल हम सभी को उठाने पड़ रहे हैं। आज फिर एक ऐसा समय आ रहा है जब हमें अपनी जड़ों की ओर झांकने की जरूरत है। बिखरे परिवारों और मनुष्यता को एक करने की जरूरत है।
भारतीय संस्कृति के उन उजले पन्नों को पढ़ने की जरूरत है जो हमें अपने बड़ों का आदर सिखाते हैं। जो पूरी प्रकृति से पूजा एवं सद्भावना का रिश्ता रखते हैं। जहां कलह, कलुष और अवसरवाद के बजाए प्रेम, सद्भावना और संस्कार हैं। पितृऋण-मातृऋण से मुक्ति इसी में है कि हम उन आदर्श परंपराओं का अनुगमन करें, उस रास्ते पर चलें जिन पर चलकर हमारे पुरखों ने इस देश को विश्वगुरु बनाया था। पूरी दुनिया हमें आशा के साथ देख रही है। हमारी परिवार नाम की संस्था, हमारे रिश्ते और उनकी सघनता-सब कुछ दुनिया के लिए आश्चर्यलोक ही हैं। हम उनसे न सीखें जो पश्चिमी भोगवाद में डूबे हैं, हमें पूरब के ज्ञान-अनुशासन के आधार पर एक नई दुनिया बनाने के लिए तैयार होना है। श्रवण कुमार, भगवान राम जैसी कथाएं हमें प्रेरित करती हैं, अपनों के लिए सब कुछ उत्सर्ग करने की प्रेरणा देती हैं। मां, मातृभूमि, पिता, पितृभूमि इसके प्रति हम अपना सर्वस्व अर्पित करने की मानसिकता बनाएं, यही इस समय का संदेश है।
इसी से प्रेरित होकर संजय द्विवेदी ने अपनी किताब "न हन्यते" को अपने समय के नायकों को याद करने का ही निमित्त बनाया है। यह एक परंपरा का पाठ है जिसमें हम अपने दिवंगत वरिष्ठों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं। इसमें श्रद्धेय व्यक्तियों का स्मरण है। उनके प्रदेय का रेखांकन है। "न हन्यते" एक तरह से वैचारिक पितृमोक्ष है। अपने वरिष्ठों के लिए शब्द सुमनों से श्रद्धा निवेदन करने का अवसर भी।
संजय द्विवेदी ने इस पुस्तक में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लंबे समय तक प्रवक्ता रहे माधव गोविंद वैद्य, राजनीतिक चिन्तक और पर्यावरणविद् अनिल माधव दवे, पत्रकारिता गुरु और अध्यात्मिक चिन्तक प्रो. कमल दीक्षित, मध्य प्रदेश के सृजनशील पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया, पत्रकारिता और जनसंचार शिक्षिका दविंदर कौर उप्पल, छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी, वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति-महानिदेशक राधेश्याम शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार श्याम लाल चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार और आचार्य नन्द किशोर त्रिखा, भारत-भारतीयता को समर्पित मुंबई के पत्रकार मुजफ्फर हुसैन, लम्बे समय तक तमिलनाडु की राजनीति के केंद्र में रहीं जयललिता, छत्तीसगढ़ के गांधी नाम से विख्यात संत पवन दीवान, छत्तीसगढ़ के प्रखर पत्रकार देवेन्द्र कर, जाने माने पत्रकार बसंत कुमार तिवारी, माओवादियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले "बस्तर के टाइगर" महेंद्र कर्मा, छत्तीसगढ़ के प्रमुख राजनेता नन्द कुमार पटेल और उनके सुपुत्र दिनेश पटेल, छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता लखी राम अग्रवाल, छत्तीसगढ़ में बस्तर की आवाज समझे जाने वाले बलिराम कश्यप, वरिष्ठ पत्रकार राम शंकर अग्निहोत्री को आत्मीयता से याद किया है। और तो और उतनी ही आत्मीयता से संजय द्विवेदी नक्सल नेता कानू सान्याल को याद करते हैं।
इस किताब के श्रद्धांजलि लेख दीर्घजीवी और पठनीय हैं। इनमें निबंध की बुनावट है और रेखाचित्र सी चुस्ती। अपनी सहजता में विशिष्ट इन स्मृति लेखों को संजय द्विवेदी ने इतनी जीवंतता से रचा है कि पिछली आधी शताब्दी का राजनीतिक तथा पत्रकारिता का परिदृश्य भी सजीव हो उठता है।
(लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष हैं।)
Created On :   13 Jun 2022 8:52 PM IST