क्या आप जन्म ले चुके हैं? ऐसे समझिए ब्रह्मांड के नियम
डिजिटल डेस्क, भोपाल। पिछले कुछ सौ वर्षो से विज्ञान कह रहा है कि करोड़ों साल पहले एक बड़ा धमाका (बिग-बैंग) हुआ, और ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। धमाका होने के लिए कुछ तो होना चाहिए जिसमें धमाका हुआ और ये ब्रह्मांड बन गया। यदि विज्ञान की भी मानें तो बिग-बैंग से पहले भी कुछ तो था, जिसमें धमाका हुआ और ये ब्रह्मांड बन गया। बड़ा-धमाका वो भी इतना व्यवस्थित की कई आकाषगंगाए व्यवस्थित ढंग से पूरी तरह से नियमों का पालन करते हुए अपने-अपने निर्धारित स्थान पर कार्य कर रही हैं। क्या ऐसा संभव है कि एक बिना सुनियोजित ढंग से केवल एक धमाके से सब कुछ इतना व्यवस्थित निर्माण हो जाए, जिसका वैज्ञानिक इतने संसाधनों के रहते हुए भी हजारों वर्षो में लगभग एक प्रतिषत हिस्सा भी न समझ पाए। धमाका हुआ होगा, लेकिन कोई व्यवस्थित धमाका, कोई सुनियोजित धमाका, सृष्टि में अनन्त आकाषगंगाओं का निर्माण करता धमाका, सौरमंडलों को अपने अपने स्थान पर रहते हुए प्रक्रिया को अंजाम देने हेतु धमाका, ग्रहों और तारों को सौरमंडलों के नियमों में रखने का संकल्प लिया हुआ धमाका, जल-अग्नि-वायु-भूमि और आकाष के संतुलन को सृजित करता हुआ धमाका, ताप और ठंडक को नियंत्रित करता हुआ धमाका, एक छोटे-से छोटे परमाणु को नियमों में बांधते हुए धमाका, एक बीज को वृक्ष बनने की क्षमता प्रदान करता हुआ धमाका, एक पानी की बूंद को महासागर बनाने का धमाका, एक आत्मा को इंसानी रूप देने वाला धमाका और एक इंसानी रूप वाली आत्मा को वापस भेजने वाले नियम बनाने वाला धमाका।
एक ऐसा धमाका जिसने अनंत ब्रह्मांड रच दिया, एक ऐसा धमाका जिसने आकाषगंगाएं रच दीं, एक ऐसा धमाका जिसने सौरमंडलों का रच दिया, पंचतत्वों को रच दिया, ताप को रच दिया, वहीं उस ताप को शीतलता की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया को रच दिया। ऐसी शीतलता को रच दिया जिसने ताप से संतुलन बनाकर जीवन का निर्माण कर दिया।
क्या ये बड़ा धमाका बिना किसी के किए हुए स्वयं हो गया, क्या इतना सुनियोजित धमाका जो ऐसे नियमों का पालन करने वाली सृष्टि का सृजन कर सकता है, ऐसे ही हो गया। कहा जाता है कि यदि ब्रह्मांड को जानना है तो उसके किसी छोटे से छोटे हिस्से को जान लो। क्योंकि प्रत्येक हिस्सा अपने पूर्ण को परिभाषित करता है।
अब हम वेदों की ओर देखते हैं। वेद कहते हैं कि सृष्टि से पहले ऊर्जा रूप में केवल परमब्रम्ह थे, पूर्ण-ब्रम्ह और उनके विचार मात्र से सारी सृष्टि रच गई। वेद पुनः आगे कहते हैं कि पूर्ण-ब्रम्ह ही वह अनंत शक्ति है जिससे सृष्टि का निर्माण हुआ। तो क्या वह धमाका उस विचार का प्रतिफल था, जिससे सृष्टि निर्माण हुआ। वेद ये भी कहते हैं कि पूर्णब्रम्ह से जिसका भी निर्माण हुआ वह भी पूर्ण था। गणित की दृष्टि से यह फिट नहीं बैठता, लेकिन वेद गणित की परवाह नहीं करते। सृष्टि गणित से नहीं चलती, इसके अपने नियम हैं। यहां पूर्ण से कुछ निकलने पर शेष जो रह जाता है, उस शेष में रत्ती-भर भी कमी नहीं आती। यहां तक कि जो पहले पूर्ण था वह पूर्ण रहता है, और उसमें से जो निकलता है वह भी पूर्ण ही होता है। अर्थात् पूर्ण से पूर्ण ही पृथक होता है। जिन नियमों पर आकाषगंगाए सृजित हुईं, जिन नियमों पर सौरमंडल सृजित हुए, जिन नियमों पर ग्रहों और तारों का निर्माण हुआ उन्हीं नियमों पर एक छोटे से परमाणु ने भी जन्म लिया है। एक बीज एक पौधा और फिर एक पेड़ बनने तक का सफर उसी नियम से तय करता है, जिस नियम से इंसान पैदा होने से बूढ़ा होने तक नियमों का पालन करता है।
वास्तव में परमब्रम्ह जो पूर्णब्रम्ह है और जो ऊर्जा रूप में है, वही ब्रह्मांड है। पहले एक अनंत ऊर्जा के रूप में स्थित और फिर स्वयं के विस्तार के रूप में विस्तारित होता हुआ। वह पराआदिषक्ति अर्थात् जिसका कोई प्रारंभ नहीं है जो आदि से भी आदि है, जो आदि से भी परे है, वह पराआदिषक्ति ही ब्रह्मांड के रूप में विस्तारित है। वैज्ञानिकों ने भी यह जाना है कि ब्रह्मांड में जो भी है वह ऊर्जा है, और जिसमें भी ऊर्जा है उसमें जीवन है। क्योंकि जीवन की परिभाषा भी वैज्ञानिकों ने परिवर्तित कर दी है। इससे यह भी पुष्टि होती है कि जो भी है वह ऊर्जा है और जो भी ऊर्जा है वह आदिषक्ति है, क्योंकि अनंतकाल से आदिषक्ति ही स्वयं को विस्तारित कर रही है। वैज्ञानिक भी अब मान चुके हैं कि ब्रह्मांड का लगातार विस्तार हो रहा है।
वेद कहते हैं कि सृष्टि परिवर्तन चाहती है, उसकी प्रकृति ही परिवर्तन की रही है। इस प्रकार ब्रह्मांड सृजित नहीं हो चुका बल्कि यह लगातार सृजन की ओर है, इसमें परिवर्तन लगातार हो रहे हैं। इससे यह भी प्रकट होता है कि जब ब्रह्मांड अभी भी विस्तारित है और सृजन की ओर अग्रसर है, वहीं जो पूर्ण से निकला है और वह भी पूर्ण है, तो जो सृजन है वह भी अभी विस्तारित है, उसका सृजन भी लगातार हो रहा है। यानि अभी कुछ भी पूरी तरह से जन्म नहीं ले चुका है, जन्म हो रहा है। उसी प्रकार कोई पूरी तरह से खत्म नहीं हो गया है, धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। जन्म लेने और खत्म होने का क्रम लगातार हो चल रहा है। जन्म हो रहा है और वह जन्म लेने वाला अपना समय पूर्ण करके खत्म हो रहा है। जन्म ले रहा है और कुछ समय में खत्म हो रहा है। यही नियम ब्रह्मांड में भी है और यही नियम प्रत्येक परमाणु यहॉं तक कि पेड़-पौधों और इंसानों में भी। बड़े-बड़े तारे जो सूर्य से भी बड़े हैं उनमें भी जन्म लेने और खत्म होने की प्रक्रिया जारी है, और उसी प्रकार पेड़-पौधे, पषु-पक्षी और इंसानों में भी।
जो परमाणु से बना है, उसमें नए परमाणुओं का सृजन हो रहा है और अपना समय पूरा कर चुके परमाणु समाप्त हो रहे हैं, यह लगातार जारी है। हमारा शरीर जो कोषिकाओं से बना है, उसमें नई कोषिकाएं जन्म ले रही हैं, और पुरानी कोषिकाएं जो अपना समय पूरा कर चुकी हैं वे खत्म हो रही हैं। वैज्ञानिकों ने भी यह जाना है कि हमारे शरीर की कोषिकाएं बदल रही हैं, अर्थात् पुरानी मर रही हैं, और नई जन्म ले रही हैं। इस प्रकार कुछ वर्षों में हमारा शरीर वह नहीं रह जाता है, जो कुछ वर्षों पहले था। कुछ समय बाद हम पूरी तरह से बदल चुके होते हैं। तो क्या हमारा शरीर पूरी तरह से जन्म ले चुका है, या जन्म ले रहा है? क्या हम अपने जीवन के अंत में मरेंगे या हम लगातार मर रहे हैं, यह विचारणीय है। क्योंकि हमारे शरीर में हर समय कोषिकाओं के जन्म और मृत्यु का दौर चल रहा है, इस प्रकार हम शरीर के रूप में प्रत्येक समय जन्म ले रहे हैं और मर भी रहे हैं। जीव का बचपन और वृद्धावस्था भी इसी का नतीजा है। बचपन में कोषिकाओं की जन्मदर अधिक होती है, और मृत्युदर कम। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है जन्मदर कम होने लगती है और मृत्युदर बढ़ने लगती है। जवानी में कोषिकाओं की जन्मदर और मृत्युदर समान होती है, और कुछ वर्ष स्थायित्व प्राप्त होते प्रतीत होता है, लेकिन उस समय भी पैदा होना और मरना जारी रहता है। जब कोषिकाओं की मृत्युदर, जीवनदर से अधिक होने लगती है तब वृद्धावस्था प्रारंभ हो जाती है। ऐसा नहीं है कि वृद्धावस्था में कोषिकाएं पैदा नहीं होती, हम वास्तव में उस समय भी पैदा होते हैं, लेकिन मर ज्यादा रहे होते हैं। और एक समय आता है जब कोषिकाओं का पैदा होना, उनके मरने से नगण्य हो जाता है, और हमारा वह शरीर काम करना बंद कर देता है। बिल्कुल यही नियम ब्रह्मांड के प्रत्येक पदार्थ के लिए है। हर समय परमाणु अपना समय पूरा करके समाप्त हो रहा है और नया परमाणु विस्तारित हो रहा है। सृष्टि विस्तारित है और अनंत भी।
ब्रह्मांड के अपने नियम हैं जिन्हें यदि हम समझ सके और उनका पालन कर सके, तो अनंत ब्रह्मांड हमारे साथ होगा, अन्यथा अनंत ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी रेगिस्तान में रेत के एक कण के बराबर है, तब अनंत ब्रह्मांड में हमारी क्या स्थिति है, यह हम स्वयं ही समझ सकते हैं।
लेखक- डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव
नोट- ये लेखक के अपने विचार हैं।
Created On :   3 Jun 2022 3:27 PM IST