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हम कितना स्थान पाए हैं उसे हम व्यवस्थित और सुरक्षित रखें-आचार्य श्री विद्या सागर
डिजिटल डेस्क जबलपुर। हम कितना स्थान पाए हैं उसे हम व्यवस्थित और सुरक्षित रखें इसे ही अनुशासन कहते हैं। हमारे अंदर इतनी ऊर्जा भरी हुई है लेकिन हम उसका उपयोग करना नहीं चाहते या हमें इसका बोध नहीं है, मोक्ष मार्ग के लिए कुछ विशेष करने की आवश्यकता नहीं है इस बात के चिंतन की आवश्यकता है कि मोक्ष मार्ग के लिए हमने क्या किसी को कष्ट पहुंचाया या किसी को कष्ट दिया है जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी दूसरों को ना सही लेकिन अपने मन को आप स्वयं कष्ट देते हो और स्वयं कष्ट सहते हो। लोग पूजा के समय अर्घ चढ़ाते समय दूसरों से भी हाथ लगवा लेते हैं यदि इसी तरह मात्र हाथ लगवा लेने से भगवान के दर्शन और पुण्य प्राप्त हो जाएगा तो हर कोई मोक्ष मार्गी हो जाएगा। यह उद्बोधन आचार्य गुरुवर विद्या सागर जी महाराज ने व्यक्त किए।
श्री आचार्य ने कहा कि सांसारिक प्राणी अपने सिर पर हजारों तरह के कर्म- कर्ज लेकर रखा है देखो मेरे ऊपर कोई कर्ज नहीं है बस आपको मेरी तरह अपने सिर पर कोई कर्ज नहीं रखना है यही मुक्ति का मार्ग है। हम आपकी तरफ से भी प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि सभी जीव कर्ज मुक्त हो जाएं। जीवन का शासन और अनुशासन वही है जो आपको कर्जे से मुक्त कर देता है । जिसका भी सुख किसी पर अन्य पर आधारित है उसको कभी सुख मिल ही नहीं सकता सुख स्वयं अपने कर्मों से मिलता है ।आपको प्रगति तभी मिल सकती है जब हम अनुशासन में रहें और आज हम अनुशासन को भूले हुए हैं इसीलिए आज हमारी दशा खराब हो रही है। आचार्य श्री ने सड़कों पर चल रहे वाहनों का उदाहरण देते हुए बताया कि अनुशासन में चलने वाली गाडिय़ां अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेती है लेकिन अनुशासन भंग कर देने पर जाम में उलझ जाती है और यह भी नहीं पता चलता कि उनका लक्ष्य कब पूरा होगा और होगा भी नहीं। आचार्य श्री ने कहा कि भारत देश के संस्कार हैं कि यहां करपात्री यानी जो हाथ में भोजन करते हैं और पदयात्री जो पैदल बिना किसी साधन के चलते हैं उन्हें नमोस्तु किया जाता है।
आज आचार्य श्री ने किए केश लोंच दिगंबर जैन साधु प्रत्येक 2 से 4 माह के बीच अपने हाथ से अपने बालों को उखाड़ लेते हैं इसी कैश लोंच कहा जाता है।अपने हाथों से केशों को उखाड़कर दिगम्बर जैन संत इस बात का परिचय देते हैं कि जैन धर्म कहने का नहीं बल्कि सहने वालों का धर्म है। जैन धर्म में साधू संत कठिन से कठिन तपस्या को सहजता से सहन कर लेते हैं, नग्न रहते हैं, कैसा भी मौसम हो, पद विहार करते है, चाहे कितनी भी लंबी यात्रा क्यों ना हो। एक बार आहार ग्रहण करते हैं वो भी खड़े होकर। इन्हीं मूलगुणों में एक मूलगुण कठिन तपस्या है केशलोंच। शरीर की सुंदरता बालों से होती है। हाथों से बालों को निकालने पर शरीर की सुंदरता की इच्छा भी चली जाती है। इससे संयम का भी पालन होता है। जैन साधू जब केशलोंच करते हैं तो उनकी आत्मा की सुंदरता भी कई गुना बढ़ जाती है। यही वजह है कि जैन साधू अपने आत्म सौंदर्य को बढ़ाने के लिए कठिन से कठिन साधना करते हैं।जिस दिन जैन मुनि केशलोंच करते है उस दिन उपवास भी रखते है ताकि केशों के लुंचन से बालों में होने वाले जीवों का जो घात हुआ या जो उन्हें कष्ट हुआ उसका प्रयाश्चित हो सके। कई लोग कहते है कि क्या अपने बालों को हाथों से उखाडऩा शरीर को कष्ट देना नहीं है? श्री महावीर भगवान कहते हैं कि हाथों से बालों को उखाडऩा शरीर को कष्ट देना नहीं, बल्कि शरीर की उत्कृष्ट साधना शक्ति का परिक्षण है।
आचार्यश्री के केश लोंच के लिए भाव-
केशलोंच करने से क्लेश नहीं होता, उससे तो क्लेश को ही संक्लेश हो जाता है। केशलोंच में चार माह का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। उसके भीतर ही कर लेना चाहिए। केशलोंच में खून भी निकलता है,राख आदि की याचना भी होती है। अत: केशलोंच के बाद प्रतिक्रमण एवं प्रायश्चित्त स्वरूप उपवास किया जाता है। रतलाम से पधारे रवि मुठिया आचार्य श्री को शास्त्र भेंट किए आज आचार्य श्री का उपवास था आता आहार दान का सौभाग्य किसी को प्राप्त नहीं हुआ
Created On :   25 July 2021 7:03 PM IST