जबलपुर: विद्यार्थी अब पढ़ेंगे रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई के शौर्य का इतिहास

विद्यार्थी अब पढ़ेंगे रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई के शौर्य का इतिहास
  • इसी सत्र से होगी शुरुआत, बीए सेकेंड ईयर में जोड़े दो नए पाठ
  • बीए सेकेंड ईयर में इतिहास विषय में छात्र मुगल-गोंड के संबंध में पढ़ेंगे।
  • बीए सेकेंड ईयर में दो नए पाठ जोड़े गए हैं। इसमें मप्र की रानियों का शौर्य और उनका बलिदान बताया गया है।

डिजिटल डेस्क,जबलपुर। कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र अब नए शिक्षा सत्र से रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई का इतिहास पढ़ेंगे। उच्च शिक्षा विभाग ने गोंड रानी दुर्गावती का इतिहास और रानी अवंती बाई को पाठ्यक्रम में शामिल किया है।

दोनों को बीए सेकेंड ईयर के पाठ्यक्रम में जोड़ा गया है। जुलाई से शुरू होने वाले सत्र से इन्हें कॉलेजों में पढ़ाया जाएगा। विभाग जनजातीय नायकों के साथ ही मप्र की उन शख्सियतों को पाठ्यक्रम में शामिल कर रहा है जो अब तक कोर्स का हिस्सा नहीं थे। बीए सेकेंड ईयर में इतिहास विषय में छात्र मुगल-गोंड के संबंध में पढ़ेंगे।

इसे रानी दुर्गावती के विशेष संदर्भ में शामिल किया गया है। इसमें बताया गया कि गोंड पाँच प्रमुख गोत्रों में विभाजित है। सामान्यतः गोंड नर्मदा नदी के दक्षिण में निवास करते हैं और इनके द्वारा स्थापित साम्राज्य गोंडवाना कहलाया।

इसका प्रसार मप्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा और कर्नाटक तक था। रानी दुर्गावती (1550-1564 ई.) के वीरतापूर्ण चरित्र को लंबे समय तक वैसा महत्व नहीं मिला, जैसा रानी लक्ष्मीबाई के अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष को मिला था।

ऐसी थी बलिदान की गाथा

पाठ में बताया गया है कि 1561 ई. में अकबर की सेना ने मालवा पर आक्रमण किया। अकबर ने अपनी नीति के मुताबिक बेवजह गोंडवाना पर आक्रमण की योजना बनाई। यह कहा गया कि रानी अपने विश्वस्त वजीर आधार सिंह और प्रिय सफेद हाथी को भेंट के रूप में मुगल दरबार में भेजें। यह माँग ठुकरा दी गई। बाद में अकबर ने आसफ खां को आक्रमण के लिए भेजा। इसके बाद रानी ने डटकर युद्ध किया और आत्मबलिदान किया।

बाद में वीर नारायण ने आसफ खां की सेना का सामना किया और अंत में पराजित हुआ और मारा गया। इसमें बताया गया कि रानी दुर्गावती और पुत्र वीर नारायण की मृत्यु के बाद रानी के देवर चंद्रशाह ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी।

अवंती बाई के संघर्ष की कहानी | इसी तरह हिंदी साहित्य में रानी अवंती बाई का अंग्रेजों से संघर्ष की गाथा पर प्रकाश डाला है। इसमें वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यास रामगढ़ की रानी की समीक्षा है। इसमें बताया गया है कि अवंती बाई लोधी ने अंतिम क्षण तक अंग्रेजों से युद्ध किया और अपनी पराजय निश्चित समझकर रानी दुर्गावती का अनुसरण कर स्वयं के पेट में तलवार भोंक ली।

बीए सेकेंड ईयर में दो नए पाठ जोड़े गए हैं। इसमें मप्र की रानियों का शौर्य और उनका बलिदान बताया गया है। इसके तहत रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई को शामिल किया गया है। नए सत्र से छात्र इन्हें पढ़ेंगे।

-डॉ. दीपेश मिश्रा, कुलसचिव रादुविवि

Created On :   18 May 2024 4:08 PM IST

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