Jabalpur News: नए मरीजों को नहीं मिल रही ब्रैकी थेरेपी, कभी भी खत्म हो सकता है सोर्स

नए मरीजों को नहीं मिल रही ब्रैकी थेरेपी, कभी भी खत्म हो सकता है सोर्स
  • मेडिकल कॉलेज में उपचार के लिए आने वाले कैंसर मरीजों की बढ़ी परेशानी
  • पुराने मरीजों को ही दे रहे उपचार
  • सोर्स के खत्म होने से पहले ही नया सोर्स मंगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।

Jabalpur News: नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में कैंसर पीड़ित नए मरीजों को ब्रैकी थेरेपी के लिए पंजीकृत नहीं किया जा रहा है। जिसके चलते इन मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। मरीजों को या तो इंतजार करना पड़ रहा है या दूसरे शहरों का रुख करना पड़ रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उपचार में सहायक ब्रैकी थेरेपी का सोर्स कभी भी खत्म हो सकता है, इसलिए सोर्स की उपलब्धता को देखते हुए केवल पुराने मरीजों को ही थेरेपी दी जा रही है।

सोर्स खत्म होते ही वह भी बंद हो जाएगा। जिसके बाद पुराने मरीजाें के सामने भी समस्या खड़ी हो जाएगी। इधर पंजीयन के लिए पहुँचे मरीज के परिजनों ने बताया कि उन्हें कुछ समय बाद आने के लिए कहा है, अभी थेरेपी के लिए पंजीकरण नहीं हुआ।

बताया जाता है कि शासकीय स्तर पर ब्रैकी थेरेपी की सुविधा पूरे प्रदेश में केवल जबलपुर मेडिकल कॉलेज में ही उपलब्ध है, जिसके चलते बड़ी संख्या में मरीज यहाँ आते हैं। निजी या शासकीय, जबलपुर और इसके आस-पास के क्षेत्र में मरीजों के सामने केवल यही एक विकल्प है, ऐसे में अगर थेरेपी नहीं मिलती है तो मरीजों को भोपाल और इंदौर जैसे शहरों का रुख करना पड़ेगा।

क्या है ब्रैकी थेरेपी

ब्रैकी थेरेपी एक कैंसर से जुड़ा उपचार है जिसमें गोली, तार या कैप्सूल के अंदर सील की गई रेडियोधर्मी सामग्री को सुई या कैथेटर का उपयोग करके शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस स्रोत से निकलने वाला विकिरण आस-पास की कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुँचाता है।

बड़ी संख्या में आते हैं कैंसर पीड़ित

बता दें कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज स्थित स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में इलाज के लिए न सिर्फ महाकौशल, बल्कि विंध्य और बुदेलखंड के जिलों से भी बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। कैंसर जैसी पीड़ा को झेल रहे मरीजों का दर्द तब और बढ़ जाता है जब उनके हिस्से इंतजार आता है।

जानकारी के अनुसार वर्तमान में अस्पताल में 2 कोबाल्ट और एक ब्रैकी थेरेपी मशीन हैं, लेकिन इनमें एक काेबाल्ट मशीन कंडम हो चुकी है। जो कोबाल्ट मशीन चालू है, वह भी दो दशक से ज्यादा पुरानी है। इसी के भरोसे मरीजों को सिकाई दी जा रही है। आधुनिक लीनियर एक्सीलेटर मशीन अब तक नहीं आ सकी है।

सोर्स के खत्म होने से पहले ही नया सोर्स मंगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। इस बार भी प्रक्रिया शुरू हो गई है। मरीजों को किसी तरह की असुविधा नहीं होगी।

डॉ. लक्ष्मी सिंगोतिया, अधीक्षक, कैंसर अस्पताल

Created On :   28 Nov 2024 6:53 PM IST

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