मध्यप्रदेश का मिनी पंजाब कहा जाने वाला हरदा विकास और रोजगार में पिछड़ा

  • हरदा में हर जाति चाहती अपना प्रतिनिधित्व
  • निर्णायक भूमिका में रहता है ओबीसी और आदिवासी मतदाता
  • दोनों सीटों पर बीजेपी का दबदबा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-07-17 12:36 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हरदा जिला 1988 में अस्तित्व में आया था, इससे पहले हरदा होशंगाबाद जिले के अंतर्गत आता था। हरदा में जातिगत समीकरण चुनाव के दौरान ही दिखाई देते है। ओबीसी मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण दोनों प्रमुख दल इसी वर्ग को ज्यादा महत्व देती है। यहां हर समाज अपनी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व चाहती है। हरदा जिले में दो ही विधानसभा सीट है। जिनके नाम टिमरनी और हरदा है। टिमरनी एसटी वर्ग के लिए सुरक्षित है। जबकि हरदा विधानसभा में अनुसूचित जनजाति निर्णायक भूमिका में होता है। हालफिलहाल दोनों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।

टिमरनी विधानसभा

टिमरनी विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।

2018 में बीजेपी के संजय शाह

2013 में बीजेपी के संजय शाह

2008 में निर्दलीय संजय शाह

2003 में बीजेपी के मनोहर लाल

1998 में कांग्रेस के उत्तम सिंह

1993 में बीजेपी के मानाराम

1990 में बीजेपी के पीआर खुट

1985 में कांग्रेस के कहीप्रसाद बस्तवार

1980 में कांग्रेस के फूल सिंह

1977 में कांग्रेस के फूल सिंह

हरदा विधानसभा

हरदा विधानसभा सीट पर 2013 को छोड़ दिया जाए तो करीब दो दशक से सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है। 2013 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। हरदा विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटबेंक निर्णायक भूमिका में होता है। हरदा में विकास की जो रफ्तार होनी चाहिए थी, वह नहीं है। विकास के मामले में इलाका पिछड़ा हुआ है। नर्मदा किनारे बसा हरदा नर्मदापुरम से अलग होकर बना था, इसे मिनी पंजाब कहा जाता है। यहां गेहूं की बंपर पैदावार होती है। हरदा को भुआना क्षेत्र भी कहा जाता है।

2018 में बीजेपी के कमल पटेल

2013 में कांग्रेस के आर के डोंगे

2008 में बीजेपी के कमल पटेल

2003 में बीजेपी के कमल पटेल

1998 में बीजेपी के कमल पटेल

1993 में निर्दलीय कन्हैया लाल शर्मा

1990 में जेडी के अरूणा कुमार

1985 में कांग्रेस के विष्णु राजौरिया

1980 में कांग्रेस के कन्हैयालाल शर्मा

1977 में जेएनपी के बाबूलाल सिलापुरिया

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