2014 से 2021 के बीच बंगाल में देशद्रोह के केवल 12 मामले दर्ज हुए : रिपोर्ट
यह आंकड़ा इसी अवधि के दौरान पूरे देश में दायर किए गए कुल 475 देशद्रोह के मामलों का महज 2.5 प्रतिशत है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2021 तक केवल पांच लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, लेकिन एक भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया गया।
रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 2020 में पश्चिम बंगाल की तस्वीर खास तौर पर अच्छी रही। उस दौरान बंगाल में देशद्रोह के केवल दो मामले दर्ज किए गए, जो देश में दर्ज कुल 73 मामलों का महज 2.7 प्रतिशत था।असम, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में स्थिति विशेष रूप से बेहतर दिखाई दी। इन राज्यों में इसी अवधि के दौरान देशद्रोह के मामलों की संख्या काफी अधिक दर्ज की गई थी।हालांकि, ओडिशा, महाराष्ट्र, सिक्किम या त्रिपुरा जैसे राज्यों की तुलना में बंगाल के आंकड़े अधिक थे। इन चारों राज्यों में इकाई अंक में मामले दर्ज किए गए, जबकि इस अवधि के दौरान मेघायल में एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया।
हालांकि, साल 2015 में राज्य के लिए एक बुरा दौर आया, जब देशद्रोह संबंधी गिरफ्तारियों में पश्चिम बंगाल सभी राज्यों में सबसे ऊपर था। उस वर्ष, पश्चिम बंगाल में देशद्रोह और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में 53 गिरफ्तारियां हुई थीं, जो सभी देश के राज्यों में सबसे अधिक थीं। जबकि देशभर में इसी आरोप में 237 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
राज्य सरकार के अधिकारियों का मानना है कि 2015 में पश्चिम बंगाल में देशद्रोह की गिरफ्तारियों की संख्या में अचानक वृद्धि का एक बड़ा कारण रहा है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 2 अक्टूबर 2014 को पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्दवान जिले के खगरागढ़ में विस्फोट हुआ था, जिसकी जांच जारी है। यही कारण है कि साल 2015 में राज्य में देशद्रोह संबंधी गिरफ्तारियों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी हुई।तृणमूल कांग्रेस के विधायक तापस रॉय को लगता है कि देशद्रोह कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग उत्तर प्रदेश और असम जैसे भाजपा शासित राज्यों में हुआ है, जहां पुलिस ने अंधाधुंध तरीके से देशद्रोह के मामले दर्ज किए।
टीएमसी नेता ने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल में सरकार देशद्रोह कानूनों के दुरुपयोग के जरिए विपक्ष को चुप कराने में विश्वास नहीं करती है।पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सामिक भट्टाचार्य का कहना है कि यह आंकड़ा तो बस एक छोटा सा हिस्सा है। यह वास्तव में राज्य में कानून के दुरुपयोग की सही तस्वीर को नहीं दर्शाता है। पश्चिम बंगाल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां शांतिपूर्ण जनसभाएं और रैलियां करने की अनुमति लेने के लिए विपक्षी राजनीतिक दलों को हमेशा अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। आगे कहा कि पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार दो तरह के नियमों का पालन करती है, एक सत्तारूढ़ पार्टी के लिए और दूसरा विपक्षी दलों के लिए।
कलकत्ता हाईकोर्ट के वकील कौशिक गुप्ता का कहना है कि किसी व्यक्ति पर किसी भी केंद्रीय और राज्य सुरक्षा प्रवर्तन एजेंसी द्वारा देशद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।इसलिए यह हमेशा जरूरी नहीं है कि किसी विशेष वर्ष या समय अवधि में किसी विशेष राज्य में देशद्रोह के मामलों की संख्या केवल इसलिए बढ़ जाती है कि राज्य कानून प्रवर्तन एजेंसियां इसके प्रावधानों को अंधाधुंध रूप से लागू करती हैं। लेकिन निश्चित रूप से आम तौर पर ऐसे मामलों की संख्या उन राज्यों में औसत रूप से कम होती है जहां राज्य सरकार कानून के प्रावधानों को विवेकपूर्ण तरीके से लागू करती है।
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