यहां पिंडदान से प्रेतयोनि में भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति
बिहार के गया में है प्रेतशिला पर्वत यहां पिंडदान से प्रेतयोनि में भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति
- बड़ी संख्या में पहुंच रहे श्रद्धालु
डिजिटल डेस्क, गया, अनिता पेद्दुलवार । पितृपक्ष में पिंडदान करने की परंपरा है। मान्यता है कि बिहार के गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि यहां पूरे साल पिंडदान किया जाता है। इन दिनों पितृपक्ष चल रहा है और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए बड़ी संख्या में दूर-दूर से लोग यहां आ रहे हैं। गया से लगभग 12 किलोमीटर दूर प्रेतशिला पर्वत है। इस पर्वत के शिखर पर स्थित प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध करने से अकाल मृत्यु के कारण प्रेतयोनि में भटकती आत्माओं को भी मुक्ति मिल जाती है।
प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है। इस स्थान पर लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की फोटो रखकर उनके नाम से पिंडदान करते हैं। गयाजी के पं. दयाशंकर त्रिवेदी ने बताया कि अकाल मौत से मरने वाले का प्रेतशिला की वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान करने का विशेष महत्व है। यहां पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण करते हैं। ऐसा होने के बाद पूर्वजों को कष्टदायी योनियों में जन्म लेने से मुक्ति मिल जाती है। इस पर्वत की ऊंचाई 876 फीट है। प्रेतशिला की वेदी पर पिंडदान करने के लिए लगभग 676 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। जो लोग किसी कारण पूरी सीढ़ी नहीं चढ़ पाते वे 21 सीढ़ी के बाद बने वृक्ष के पास पिंडदान कर सकते हैं।
धर्मशिला पर उड़ाते हैं सत्तू : प्रेतशिला पर्वत पर एक धर्मशिला है। यहां पिंडदानी ब्रह्मा जी के पद चिह्न पर पिंडदान करके धर्मशिला पर सत्तू उड़ाते हैं। प्रेतशिला में भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है। परिजन अकाल मृत्यु वाले की तस्वीर विष्णुजी के चरण में रखते हैं और उसके मोक्ष की कामना करते हैं। मंदिर के पुजारी 6 माह तक तस्वीर की पूजा करते हैं और फिर उस तस्वीर को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं। पितृ पक्ष के 15 दिन पितरों के मोक्ष के दिन माने जाते हैं। यही कारण है कि हर साल यहां तर्पण के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
सूर्यास्त के बाद नहीं रुकता कोई : कहा जाता है कि पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा है। रात्रि में 12 बजे के बाद प्रेत यहां आते हैं। पूरे विश्व में सबसे पवित्र जगह यही है इसलिए प्रेत यहां वास करते हैं। यहां शाम 6 बजे के बाद कोई भी नहीं रुकता है। पंडे भी 6 बजे के बाद अपना सामान समेटकर घर लौट जाते हैं। स्थानीय लोग मंदिर परिसर के आस-पास नहीं जाते। बताया जाता है कि सूर्यास्त के बाद आत्माएं यहां विशेष प्रकार की ध्वनि, छाया या फिर किसी और प्रकार से अपने होने का अहसास भी कराती हैं।
माता-पिता को खो चुके बालक ने किया पिंडदान : चार साल की उम्र में एक एक्सीडेंट में अपने माता-पिता को खो चुके बालक मयंक पदमवार (धमतरी, छत्तीसगढ़ निवासी) ने यहां पिंडदान किया। अपने जवान बेटे को खो चुके माता-पिता भी प्रेतशिला में पिंडदान करने पहुंचे। रामकुमार कश्यप और कौशल्या कश्यप (कानपुर, उत्तर प्रदेश निवासी) ने भी पिंडदान कराया।