रूपध्यान: जानें मेडिटेशन का सबसे असरदार तरीका
जैसे-जैसे आपका रूप ध्यान मेडिटेशन पक्का होता जायेगा, आपको मूर्ति या चित्र को देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
वेदों-शास्त्रों में बताया गया रूप ध्यान का यह तरीका जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने आसान भाषा में समझाया है।
इस आपाधापी भरी दुनिया में अधिकांश लोग तनाव से जूझ रहे हैं। किसी को परिवार की टेंशन है तो किसी को नौकरी की। अगर ये तनाव अधिक बढ़ जाये तो ये डिप्रेशन या अवसाद का रूप ले सकता है। इस तनाव रूपी महामारी से बचने का सबसे अच्छा उपाय है मेडिटेशन।
यही वजह है कि ध्यान या मेडिटेशन अब एक बहुत चर्चित शब्द बन चुका है। आजकल हमें ध्यान के कई प्रकार पढ़ने-सुनने में आते हैं जैसे माइंडफुलनेस मेडिटेशन, केंद्रित ध्यान, मंत्र ध्यान, विज़ुअलाइज़ेशन मेडिटेशन, गतिशील ध्यान, प्रोग्रेसिव रिलैक्सेशन आदि।
क्या मन के विचार रोके जा सकते हैं?
मेडिटेशन के इन सभी तरीकों का लक्ष्य एक ही है कि किस प्रकार मन-बुद्धि को एकाग्र किया जाये। कुछ लोग ध्यान के माध्यम से मन के विचार रोकने का भी प्रयास करते हैं पर इसका सफल होना बहुत कठिन है। उदाहरण के तौर पर, यदि आप साइकिल चला रहे हैं, और आप चाहें कि पैडल चलाये बिना ही साइकिल का संतुलन बना रहे तो यह साधारणतया असंभव ही कहा जायेगा। पर अगर आप उसी चलती साइकिल को हाथ से दिशा दे दें, तो आप चाहे उसे दाएँ मोड़ दें या बाएँ।
इसी प्रकार मन के विचार पूरी तरह रोक देना इतना कठिन है कि उसे असंभव ही कहा जा सकता है। इसके बजाय यदि हम अपने मन की दिशा भगवान या अन्य सकारात्मक चीज़ों की तरफ मोड़ दें, तो मन तनाव से छुटकारा पाकर शांति और आनंद का अनुभव तो करेगा ही, साथ ही हमारा आध्यात्मिक लाभ भी हो जायेगा।
वेदों-शास्त्रों में वर्णित रूप ध्यान मेडिटेशन का यह तरीका पाँचवें मूल जगद्गुरु, श्री कृपालु जी महाराज ने आसान भाषा में समझाया है। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के अनुसार मानसिक शांति और सुख का बस एक ही उपाय है, और वो है भगवान का ध्यान। भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि का स्मरण करने से उनमें मन का लगाव आसानी से हो जाता है और हमारा मन शांत हो जाता है।
कैसे करें रूप ध्यान मेडिटेशन?
हम अपना मन जिस वस्तु पर सबसे सरलता से टिका सकते हैं वो है रूप।
संसार में भी हम जब किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले उसका रूप हमारे मन में आ जाता है। उसके बाद ही हम उसका नाम, उसका व्यवहार वगैरह सोचते हैं। इसलिए भगवान के नाम, लीला, गुण आदि की सहायता लेते हुए, उनके सुन्दर रूप का ध्यान करके उनसे बड़ी आसानी से प्रेम बढ़ाया जा सकता है।
आप भगवान का ध्यान किसी भी रूप में कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि आपको किसी मंदिर के राधा-कृष्ण की छवि बहुत मनमोहक लगती है, तो आप उसे अच्छी तरह से देखें और फिर अपनी आँखें बंद करके उसी रूप का ध्यान करने का प्रयास करें। इसी तरह आप किसी चित्र के माध्यम से भी अपना ध्यान पक्का कर सकते हैं।
जैसे-जैसे आपका रूप ध्यान मेडिटेशन पक्का होता जायेगा, आपको मूर्ति या चित्र को देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। आप जब ही चाहें, आँखें बंद करके ही नहीं, आँखें खोले हुए भी राधा-कृष्ण की सुन्दर छवि का ध्यान कर सकते हैं। यदि आप श्री राधा या कृष्ण में से किसी एक का ध्यान करना चाहें तो वो भी कर सकते हैं। कुछ लोग अपने गुरु का भी रूप ध्यान करते हैं, वो भी वेदों-शास्त्रों के अनुसार उचित है।
ध्यान में करें मानसी सेवा
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपनी पुस्तक ‘प्रेम रस सिद्धांत’ में बताया है कि मन को राधा-कृष्ण के रूप ध्यान में मग्न करने के लिए आप ध्यान में ही उनकी अनेक प्रकार की सेवा कर सकते हैं। जैसे कि उनको भोग लगाना, शृंगार करना, स्नान कराना आदि। जो-जो व्यवहार आप संसार में अपने प्रिय के साथ करते हैं, वो सब आप मन से बनाये गए भगवान के रूप के साथ कर सकते हैं। इसे मानसी सेवा कहा जाता है। इसका फल ठीक वही मिलता है जो शरीर से मनयुक्त सेवा का मिलता है।
जब आपका यह रूप ध्यान मेडिटेशन दृढ़ हो जायेगा तो राधा-कृष्ण की उस छवि से आपको रस मिलने लगेगा, आनंद की अनुभूति होने लगेगी। बस फिर यह ध्यान इसी तरह बढ़ता जायेगा। मन सदा एक तीव्र सुख का अनुभव करेगा। चिंता-फ़िक्र, राग-द्वेष जो अभी आपके पीछे पड़े हुए हैं, वो सब आपको परेशान करना बंद कर देंगे और आप आनंद में डूबते चले जायेंगे।
यदि आप मेडिटेशन को अपनाना चाहते हैं तो आपके पास माइंडफुलनेस मेडिटेशन या केंद्रित ध्यान जैसे कई विकल्प हैं, पर अगर आप मेडिटेशन की किसी जाँची-परखी भारतीय विधि का अभ्यास करना चाहते हैं जिसका उल्लेख सनातन ग्रंथों में भी आता है तो रूप ध्यान के बारे में और अधिक जान कर उसको अपने जीवन में उतार सकते हैं।