भास्कर एक्सक्लूसिव: रेस में क्यों पिछड़े प्रहलाद पटेल, पुरानी खता की मिली सजा? इन तीन वजहों से मोहन यादव पड़े भारी!
- मोहन यादव होंगे मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री
- राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा होंगे राज्य के अगले डिप्टी सीएम
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर बीजेपी ने मोहन यादव को मौका देकर हर किसी को चौंका दिया है। राज्य में सीएम की रेस में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के अलावा पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व केंद्रीय जल मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल का नाम सबसे ऊपर चल रहा था। लेकिन पार्टी ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि नरेंद्र तोमर और प्रहलाद पटेल के सामने राजनीतिक ओहदे में कहीं नहीं टिकने वाले मोहन यादव पर बीजेपी ने इतना बड़ा सियासी दांव क्यों खेला है? इसके अलावा नरेंद्र तोमर और प्रहलाद पटेल किस पैमाने में फिट नहीं बैठे जो बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में नहीं चुना।
तोमर का क्यों कटा मुख्यमंत्री पद से पत्ता?
बीजेपी ने नरेंद्र सिंह तोमर को राज्य में विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर जरूर चुना है। लेकिन उनके सियासी सफर के हिसाब से यह काफी कम माना जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर चुने जा सकते थे, लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान उनके बेटे का कथित भ्रष्टाचार वाले वीडियो वायरल होने के चलते उनकी सियासी सफर में गिरावट देखी गई है। विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के नेताओं ने इसे मुद्दा भी बनाया था। ऐसा माना जा रहा था कि दिमनी सीट से नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव हार जाएंगे। हालांकि, उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की और विधायक बने।
इसके अलावा तोमर ऊंची जाति से आते हैं। साथ ही, उनका प्रभाव पूरे मध्य प्रदेश में न होकर केवल ग्वालियर-चंबल रीजन तक ही माना जाता है। हाल ही में उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा दिया है।
प्रहलाद पटेल सीएम रेस में क्यों छूटे पीछे?
प्रहलाद पटेल का नाम भी इस पद के लिए तकरीबन तय माना जा रहा था। विधायक दल की बैठक से पहले उनके घर के आसपास सुरक्षा घेरा भी तगड़ा होता गया और समर्थकों की भारी भीड़ भी जमा होती चली गई। लेकिन जिस तेजी से उनका नाम सबसे आगे आ रहा था उसी तेजी से पीछे भी चला गया और उनके नाम के नारे मद्दे पड़ते चले गए। इसकी वजह उनकी एक बार की पार्टी से दूरी माना जा रहा है। उमा भारती ने बीजेपी से बगावत कर जब जनशक्ति पार्टी की स्थापना की थी। तब प्रहलाद पटेल ने उमा भारती का साथ देते हुए बीजेपी छोड़ दी थी और भारतीय जनशक्ति का हिस्सा बन गए थे। संभवतः उसी को देखते हुए बीजेपी ने प्रहलाद पटेल को ये मौका नहीं दिया। दूसरा कारण हो सका है कि जब बीजेपी ने किसी सांसद को इस पद पर मौका नहीं दिया तो ओबीसी फेस होने के बावजूद प्रहलाद पटेल को ये पद नहीं सौंपा।
मोहन यादव का क्यों चला सिक्का?
इन दोनों नेताओं के इतर मोहन यादव अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1982 में ABVP से की। साथ ही, वे साल 2013 के चुनाव में उज्जैन के दक्षिण सीट जीत हासिल करके पहली बार विधानसभा पहुंचे। इसके अलावा मोहन यादव शिवराज कैबिनेट में उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं। ऐसे में उनके पास राज्य की राजनीति में अच्छी खासी पकड़ है।
मोहन यादव के सीएम बनने की एक बड़ी वजह यह भी है कि वे किसी पार्टी के किसी गुट से ताल्लुक नहीं रखते हैं। साथ ही, वे न तो सिंधिया खेमे के समर्थक और न ही शिवराज के समर्थक रूप जाने जाते हैं। इसके अलावा मोहन यादव किसी खेमे के भी करीबी नहीं है। बीजेपी प्रदेश में एक ऐसे ही चेहरे की तलाश में थी। मोहन यादव ओबीसी समाज से आते हैं। उज्जैन क्षेत्र के जाने-माने नेता हैं। साथ ही, वे जेपी नड्डा के भी करीबी माने जाते हैं। संघ में भी उनकी जड़े बेहद गहरी बताई जाती हैं। ऐसे में बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाना बेहतर विकल्प समझा।