बीजेपी के गढ़ सागर में बेरोजगारी और पलायन प्रमुख मुद्दा, एससी और ओबीसी वोटबैंक का बोलबाला

  • सागर में 8 विधानसभा सीट
  • 6 पर बीजेपी 2 पर कांग्रेस
  • बीजेपी कांग्रेस के बीच में रहती है टक्कर
  • बीएसपी का बढ़ रहा है वोट परसेंट

Bhaskar Hindi
Update: 2023-07-24 11:21 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में बीजेपी की शिवराज सरकार में सागर जिला सुर्खियों में बना ही रहता है। एक ही जिले से तीन मंत्री होने से बीजेपी नेताओं में यहां तनातनी बनी रही है। कुछ महीनों बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले है, चुनाव से पहले सागर जिले के बीजेपी नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई पार्टी दफ्तर से लेकर सीएम आवास तक पहुंच गई। हालांकि नेताओं के बीच तनातनी की खबरों से बीजेपी पार्टी नकारती रही है। जिले की 8 सीटों में से 6 पर बीजेपी और दो पर कांग्रेस का कब्जा है। सागर जिले की राजनीति में जातियों का दबदबा तो है, लेकिन चुनावी मौसम में उनके बंटने से बाहुल्य समुदायों के प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाते। जिले की सभी सीटों पर बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा, सिंचाई और कृषि प्रमुख मुद्दे है। सागर जिले में आठ विधानसभा सीटें है, जिनके नाम बीना, खुरई, सुरखी, देवरी, रहली,नरियावली, सागर, बांदा है।

बीना विधानसभा सीट

बुदेलखंड का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले बीना को बीजेपी का गढ़ माना जाता है, इस पर कांग्रेस ने नजर बनाकर रखी है। बीना के एक तरफ मालवा और दूसरी तरफ बुदेलखंड है। 2008 में हुए परिसीमन के बाद बीना सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बीना को जिला बनाने की मांग काफी बार उठ चुकी है, सीएम शिवराज सिंह चौहान भी कई मौकों पर बीना को जिला बनाने की घोषणा कर चुके है। लेकिन बीना आज तक जिला नहीं बन पाया है। बीना में रिफाइनरी और एनटीपीली पावरग्रिड होने के बावजूद स्थानीय लोगों को रोजगार की तलाश है,बीना में बेरोजागारी सबसे बड़ा मुद्दा है। बीना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या अन्य समुदायों से अधिक है। ठाकुर, यादव, लोधी और कुर्मी यहां चुनाव की दिशा तय करते है।

2018 में बीजेपी के महेश राय

213 में बीजेपी के महेश राय

2008 में बीजेपी के विनोद पंथी

2003 में सुशीला राकेश सिरोथिया

1998 में बीजेपी के सुधाकर बापट

1993 में कांग्रेस के प्रभु सिंह ठाकुर

1990 में बीजेपी के सुधाकर बापट

1985 में बीजेपी के सुधाकर बापट

1980 में कांग्रेस के अरविंद भाई

1977 में जेएनपी के भागीरथ बलगैया

खुरई विधानसभा सीट

2008 के चुनाव को छोड़ दिया जाए को 1990 से लेकर 2018 तक यहां से बीजेपी के भूपेंद्र सिंह चुनाव जीतते आ रहे है। खुरई सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। क्षेत्र में जातिगत समीकरण चुनाव में खासा असर डालते हैं। यहां जैन, यादव, दांगी ठाकुर के अलावा एससी वर्ग के मतदाता प्रत्याशी की हार जीत तय करते हैं।

2018 में बीजेपी के भूपेंद्र सिंह

2013 में बीजेपी से भूपेंद्र सिंह

2008 में कांग्रेस के अरूणोदय चौबे

2003 में बीजेपी के धर्मू राय

1998 में बीजेपी के धर्मू राय

1993 में बीजेपी के धर्मू राय

1990 में बीजेपी के धर्मू राय

1985 में कांग्रेस की मालती

1980 में कांग्रेस की हरिशंकर मंगल प्रसाद अहिरवार

1977 में जेएनपी से राम प्रसाद

सुरखी विधानसभा सीट

सुरखी विधानसभा का एक इतिहास है कि कोई भी एक व्यक्ति यहां से लगातार तीन बार विधायक नहीं बना है। सुरखी के नाम से एक और रिकॉर्ड है कि विधानसभा गठित होने के बाद से अब तक स्थानीय व्यक्ति विधायक नहीं बना है। सुरखी विधानसभा सीट पर 2011 की जनगणना के मुताबिक 21 फीसदी एससी मतदाता करीब 41 हजार , वहीं एसटी मतदाताओं की संख्या 6.19 फीसदी यानी 12 हजार के आस पास थी।

2020 उपचुनाव बीजेपी से गोविंद सिंह राजपूत

2018 में कांग्रेस से गोविंद सिंह राजपूत

2013 में बीजेपी से पारूल साहू केसरी

2008 में कांग्रेस से गोविंद सिंह राजपूत

2003 में कांग्रेस से गोविंद सिंह राजपूत

1998 में बीजेपी से भूपेंद्र सिंह

1993 में बीजेपी से भूपेंद्र सिंह

1990 में जेडी से लक्ष्मी नारायण यादव

1985 में कांग्रेस के विठ्ठल भाई

1980 में कांग्रेस से विठ्ठल भाई

1977 में जेएनपी से लक्ष्मीनारायण यादव

देवरी विधानसभा सीट

राजा चंदेल ने 17 वीं शताब्दी में इस शहर की स्थापना की थी। पहले इसे रामगढ़ या उजरगढ़ के नाम से जाना जाता था। बाद में इस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया , जिससे इसका नाम बदलकर देवरी कर दिया गया। जिसका अर्थ है भगवान का निवास। ऐतिहासिक क्षेत्रों में पंच महलों की राजधानी के रूप में ये प्रसिद्ध है। देवरी विधानसभा सीट पर आदिवासी और लोधी बाहुल्य है, दोनों ही समुदाय के वोटरों का दबदबा है। आदिवासी इलाके को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। देवरी विधानसभा क्षेत्र तीन इलाकों में बंटा हुआ है, जिनमें केसली क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है, वहीं देवरी , गौरझामर क्षेत्र में लोधी, यादव, और ब्राह्मण मतदाता प्रभावी है। देवरी सीट पर 2011 की जनगणना के मुताबिक 13.4 फीसदी एससी वोटर है, तब एससी मतदाताओं की संख्या करीब 27 हजार थी।वहीं एसटी मतदाताओं की संख्या करीब 48 हजार यानी करीब 24 फीसदी थी।

2018 में कांग्रेस से हर्ष यादव

2013 में कांग्रेस से हर्ष यादव

2008 में बीजेपी से डॉ भानु राणा

2003 में बीजेपी से रतन सिंह सिलारपुर

1998 में कांग्रेस से बृज बिहारी पाटेरिया

1993 में कांग्रेस से सुनील जैन

1990 में बीजेपी से परशुराम साहू

1985 में कांग्रेस से भागवत सिंह

1980 में कांग्रेस से उत्तम चंद

1977 में जेएनपी से परशुराम साहू

रहली विधानसभा सीट

रहली विधानसभा सीट पर बीजेपी का एकतरफा राज है, सीट पर शिवराज सरकार में शामिल मंत्री व वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव आठ बार से विधायक है। रहली सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। रहली सीट पर दस बार से ब्राह्मण समाज के विधायक के सिर पर जीत का सेहरा बंधा हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार रेहली विधानसभा सीट में अनुसूचित जनजाति वोटों की संख्या 19 परसेंट 42 हजार से अधिक है। जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की सख्या 10 परसेंट 22 हजार के करीब है। ओबीसी मतदाताओं में मुख्य रूप से कुर्मी मतदाता है, जिनकी संख्या 35 हजार से अधिक है। और ब्राह्मण मतदाता दस हजार के करीब है। रहली को लेकर साफ कहा जा सकता है कि पटेलों के गढ़़ में ब्राह्मण प्रत्याशी कांग्रेस और अन्य जातियों पर भारी रहा है। यहां कुर्मी पटेल मतदाता निर्णायक भूमिका में रहता है। रोजगार, किसानों को फसल के भुगतान में देरी,बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ साथ पलायन यहां की प्रमुख समस्या है।

2018 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

2013 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

2008 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

2003 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

1998 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

1993 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

1990 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

1985 में बीजेपी से गोपाल भार्गव

1980 में कांग्रेस से महादेव प्रसाद

1977 में कांग्रेस से महादेव प्रसाद

नरियावली विधानसभा सीट

नरियावली सीट सागर शहर से सटी हुई है। नरियावली सीट 1976 में हुए चुनाव परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। 2008 में फिर से परिसीमन हुआ, और सागर सैन्य छावनी के हिस्से को नरियावली विधानसभा में जोड़ गया। कभी कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली नरियावली सीट पर पिछले तीन विधानसभा चुनाव से बीजेपी का कब्जा है। विधानसभा क्षेत्र में सागर का औद्योगिक क्षेत्र सिदगुंवा भी आता है जहां पर कई बड़ी बड़ी फैक्ट्री संचालित होती है , इलाके में बड़ी संख्या में मजदूर वर्ग निवास करता है। बीजेपी विधायक प्रदीप लारिया ने सीट पर उस मिथक को तोड़ा जिसमें कहा जाता था कि कोई भी विधायक दोबारा नहीं चुना गया। विधायक लारिया ने तीन बार लगातार जीतकर नरियावली को बीजेपी का गढ़ बना दिया। नरियावली सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 2011 की जनगणना के मुताबिक सीट पर 26 फीसदी एससी मतदाताओं की संख्या करीब 57 हजार है। वहीं 5.69 फीसदी एसटी वर्ग के मतदाताओं की संख्या 13 हजार के आसपास है। वर्तमान समय में एससी मतदाताओं की संख्या 1 लाख के करीब होने का अनुमान है। यहां ओबीसी के 50 हजार मतदाता है, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। सीट पर बीजेपी का कब्जा है। सीट पर बीएसपी की बढ़ती सक्रियता चुनावी मुकाबले को रोचक बना देती है।

2018 में बीजेपी से प्रदीप लारिया

2013 में बीजेपी से प्रदीप लारिया

2008 में बीजेपी से प्रदीप लारिया

सागर विधानसभा सीट

सागर विधानसभा सीट पर पिछले तीन दशक से बीजेपी का कब्जा है। सागर को बीजेपी का अभेद किला कहा जाता है। 1993 से लेकर 2018 तक सागर सीट पर बीजेपी प्रत्याशी ही चुनाव जीतता आ रहा है। मध्यप्रदेश के भगवाकृत बुंदेलखंड में सागर निर्वाचन क्षेत्र अपने राजनीतिक भाग्य के लिए पिछले तीस सालों से जैन समुदाय के मतदाताओं पर ही निर्भर हैं। 1985 के बाद से यहां सिर्फ जैन समुदाय का विधायक बना है, इसके पीछे की वजह यहां जैन बाहुल्य संख्या में है। ज्यादातर जैन शहर वासी है,और मतदान से एक दो दिन पहले ही किस राजनीतिक दल को मतदान करना है, तय होता है। यहां जैनियों की संख्या 50 हजार से अधिक है। जैन समुदाय के राजनीतिक दबदबे के चलते दोनों प्रमुख दल जैन समुदाय के व्यक्ति को ही प्रत्याशी घोषित करते है। सागर में ब्राह्मण, जैन और अनुसूचित मतदाताओं सर्वाधिक है, इन वर्गों के मतदाता ही प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करते है। 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां एससी मतदाताओं की संख्या करीब 20 फीसदी 40 हजार से अधिक है। जैन समुदाय का बीजेपी के पक्ष में एकतरफा वोट पड़ने से सीट बीजेपी के खाते में बनी हुई है। बीजेपी से सीट को छीनने के लिए अन्य राजनीतिक पार्टियों ने जाति गणित बैठाना शुरू कर दिया है।

2018 में बीजेपी से शैलेंद्र जैन

2013 में बीजेपी से शैलेंद्र जैन

2008 में बीजेपी से शैलेंद्र जैन

2003 में बीजेपी से सुधा जैन

1998 में बीजेपी से सुधा जैन

1993 में बीजेपी से सुधा जैन

1990 में कांग्रेस से प्रकाश जैन

1985 में कांग्रेस से प्रकाश जैन

1980 में कांग्रेस से शिवकुमार ज्वालाप्रसाद

1977 में कांग्रेस से शिवकुमार ज्वालाप्रसाद

बांदा विधानसभा सीट

बांदा सीट पर लंबे समय तक बीजेपी का कब्जा रहा है। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है। बीएसपी त्रिकोणीय मुकाबला बना देती है। पिछले तीन चुनाव से बीएसपी ने इलाके में पैर जमाना शुरू कर दिया है। बीएसपी की बढ़त ने दोनों प्र्मुख दल बीजेपी और कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। इलाके में एससी,एसटी, लोधी, यादव और क्षत्रिय समुदाय के मतदाता प्रभावी भूमिका में होते है। 2011 की जनगणना के मुताबिक बांदा विधानसभा सीट पर अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या 47 हजार और अनुसूचित जनजाति वोटर्स की संख्या 25 हजार के आस पास है। एससी व एसटी दोनों वर्ग चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है।

2018 में कांग्रेस से तरवर सिंह लोधी

2013 में बीजेपी से हरवंश

2008 में कांग्रेस से नारायण प्रसाद

2003 में बीजेपी से हरनाम सिंह राठौर

1998 में बीजेपी से हरनाम सिंह राठौर

1993 में कांग्रेस से संतोष कुमार साहू

1990 में बीजेपी से हरनाम सिंह राठौर

1985 में बीजेपी से हरनाम सिंह राठौर

1980 में कांग्रेस से प्रेम नारायण गोरेलाल

1977 में जेएनपी से शिवराज सिंह

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