छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023: आदिवासी बाहुल्य सूरजपुर में चलता है कांग्रेस का जादू, एसटी कैंडिडेट के इर्द गिर्द घूमती है राजनीति

  • सूरजपुर में तीन विधानसभा सीट
  • एक एसटी आरक्षित दो सामान्य
  • 2018 में तीनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-09-30 10:01 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिला को सरगुजा से अलग होकर बनाया था। पहले यह दंदबुल्ला के नाम से प्रचलित था, बाद में सूर्यपुर कहा जाने लगा। कालातंर में धीरे धीरे इसे सूरजपुर के नाम से जाना जाने लगा। जिला जनजातीय बाहुल्य वाला इलाका है। सूरजपुर जिले में तीन विधानसभा सीट है। प्रेम नगर, भटगांव और प्रतापपुर। दो सीट प्रेमनगर , भटगांव सामान्य है, वहीं प्रतापपुर सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है। 2018 के विधानसभा चुनाव में तीनों ही सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। बीजेपी को इस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। आदिवासी बाहुल्य होने के कारण यहां बीएसपी और जीजीपी का भी वर्चस्व देखने को मिलता है, लेकिन अंतिम मुकाबला कांग्रेस बीजेपी के बीच ही होते हुए दिखाई देता है।

प्रतापपुर विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से डॉ प्रेमसाय सिंह टेकाम

2013 में बीजेपी से रामसेवक पैकरा

2008 में कांग्रेस से डॉ प्रेमसाय सिंह टेकाम

एसटी वर्ग के लिए आरक्षित इस विधानसभा क्षेत्र में 65 फीसदी के करीब मतदाता अनुसूचित जनजाति के है। इनमें भी गोंड समुदाय के मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। 20 से 25 फीसदी वोटर्स ओबीसी और सामान्य वर्ग के है। आदिवासी मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। बीजेपी ने 2023 चुनाव के लिए जातिगत कार्ड खेलते हुए पार्टी के तेजतर्रार नेता शकुंतला पोर्ते को प्रत्याशी बनाया है जो गोंड समुदाय से आती है और इनकी समाज में मजबूत पकड़ है। चुनावी मुद्दों की बात की जाए तो प्रतापपुर को अलग जिला बनाने की मांग कई दिनों से की जारी है। सड़क, शिक्षा , स्वास्थ्य के साथ बुनियादी सुविधाओं का यहां अभाव है। बिजली और बढ़ती महंगाई भी एक समस्या है। क्षेत्र में हाथियों के हमले की खबरे खूब सुनाई देती है।

प्रेम नगर विधानसभा सीट

प्रेम नगर विधानसभा सीट अनारक्षित है, सामान्य सीट होने के बावजूद बीजेपी ने यहां से आदिवासी नेता भूलन सिंह नेताम को प्रत्याशी घोषित किया है। आपको बता दें सामान्य सीट होने के बाद भी आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने यहां से सामान्य वर्ग के व्यक्ति को टिकट नहीं दिया है। जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां 40 फीसदी एसटी और 50 फीसदी के करीब ओबीसी आबादी है। जबकि 5 से 10 फीसदी के करीब सामान्य वर्ग के मतदाता है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इलाके में आज भी कई मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। भालू का प्रकाोप है।

2018 में कांग्रेस के खेलसाई सिंह

2013 में कांग्रेस के खेलसाई सिंह

2008 में बीजेपी से रेणुका सिंह

2003 में बीजेपी से रेणुका सिंह

भटगांव विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से पारसनाथ राजवाड़े

2013 में कांग्रेस से पारसनाथ राजवाड़े

2008 में बीजेपी से रविशंकर त्रिपाठी

भटगांव विधनसभा सीट सामान्य सीट है, अनारक्षित होने के बाद भी बीजेपी ने यहां से आदिवासी महिला को कैंडिडेट घोषित किया है। विधानसभा क्षेत्र में कोयला का खनन बड़ी तादाद में होता है। इस सीट पर पहली बार 2008 में चुनाव हुआ था। यहां बीएसपी और जीजीपी की भी ठीक ठाक स्थिति है। यहां राजवाड़े समुदाय का दबदबा है। जो चुनाव में निर्णायक भूमिका में होता है। इनकी तादाद 30 फीसदी के आस पास है। जबकि 50 फीसदी से अधिक की आबादी ओबीसी है। और 10 फीसदी के करीब सामान्य मतदाता है। क्षेत्र में जंगली इलाका बहुत है, जिसके चलते हाथियों के हमले करने का डर हमेशा बना रहता है। क्षेत्र में सड़क, शिक्षा , स्वास्थ्य से जुड़ी बेसिक सुविधाओं का अभाव है।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ।  शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ ने सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गद्दी संभाली थी। पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। 2018 में कांग्रेस की बंपर जीत से बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। 2008 में कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

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