आरक्षण: नीतीश सरकार को पटना हाईकोर्ट से झटका, 65 फीसदी आरक्षण सीमा का आदेश रद्द

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-20 06:52 GMT

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार में बढ़ाई गई आरक्षण सीमा को लेकर नीतीश सरकार को झटका लगा है। हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा बढ़ाई गई आरक्षण सीमा के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने पिटीशनकर्ता गौरव कुमार और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर फैसला 11 मार्च को सुरक्षित रख लिया था जिस पर पटना हाईकोर्ट ने आज फैसला सुनाया है। नीतीश सरकार ने आरक्षण की सीमा जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी के तहत बढ़ाई थी। राज्य सरकार आर्थिक शैक्षणिक और जातिगत जनगणना के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाने के मूड़ में थी।  

आपको बता दें बिहार की नीतीश सरकार ने पिछले साल के अंत में आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फ़ीसदी किया था।  राज्य सरकार के इस फैसले को आज उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने राज्य सरकार द्वारा शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। 

आपको बता दें पिछले साल के अंत में महागठबंधन के साथ मिलकर बिहार की नीतीश सरकार ने विधानसभा के पटल पर राज्य के आर्थिक और शैक्षणिक आंकड़े रखे गए थे। सरकार ने यह भी बताया कि राज्य की सरकारी नौकरियों में किस वर्ग की कितनी हिस्सेदारी है। बिहार में सामान्य वर्ग की आबादी 15 फीसदी है और सबसे ज्यादा 6 लाख 41 हजार 281 लोगों के पास सरकारी नौकरियां हैं। नौकरी के मामले में दूसरे नंबर पर 63 फीसदी आबादी वाला पिछड़े वर्ग है। पिछड़ा वर्ग के पास कुल 6 लाख 21 हजार 481 नौकरियां हैं।

तीसरे नंबर पर 19 प्रतिशत वाली अनुसूचित जाति है। एससी वर्ग के पास 2 लाख 91 हजार 4 नौकरियां हैं। सबसे कम एक प्रतिशत से ज्यादा आबादी वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के पास सरकारी नौकरियां हैं। इस वर्ग के पास कुल 30 हजार 164 सरकारी नौकरियां हैं। अनुसचित जनजाति की आबादी 1.68% है।

किसे कितना आरक्षण?

फिलहाल, देश में 49.5% आरक्षण है।  ओबीसी को 27%, एससी को 15% और एसटी को 7.5% आरक्षण मिलता है। इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को भी 10% आरक्षण मिलता है।इस हिसाब से आरक्षण की सीमा 50 फीसदी के पार जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट नवंबर 2022 में ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सही ठहरा चुकी है। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि ये कोटा संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता। आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के आरक्षण को 50 फीसदी आरक्षण से अलग माना जाता है। 

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