टीआरएस ने आईआईटी में अंग्रेजी को हिंदी से बदलने के कदम का किया विरोध
तेलंगाना टीआरएस ने आईआईटी में अंग्रेजी को हिंदी से बदलने के कदम का किया विरोध
डिजिटल डेस्क, हैदराबाद। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने एक संसदीय समिति की इस सिफारिश का कड़ा विरोध किया है कि आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी होना चाहिए।
टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के टी. रामाराव ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी हिंदी थोपने के किसी भी कदम के खिलाफ है।उन्होंने कहा कि भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है और हिंदी कई आधिकारिक भाषाओं में से एक है।रामा राव ने ट्वीट किया, आईआईआईटी और केंद्र सरकार की भर्तियों में हिंदी को अनिवार्य करने के लिए, एनडीए सरकार संघीय भावना का उल्लंघन कर रही है, भारतीयों के पास भाषा का विकल्प होना चाहिए और हम हिंदी थोपने के लिए नहीं कहते हैं।
गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि हिंदी भाषी राज्यों में तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे आईआईटी में शिक्षा का माध्यम हिंदी और भारत के अन्य हिस्सों में उनकी संबंधित स्थानीय भाषा होनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि अंग्रेजी के इस्तेमाल को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए।
भर्ती परीक्षाओं में अनिवार्य अंग्रेजी भाषा के प्रश्न पत्र की समाप्ति और हिंदी भाषी राज्यों में हाईकोर्ट के आदेशों में हिंदी अनुवाद की पर्याप्त व्यवस्था समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में की गई 100 से अधिक सिफारिशों में से एक है।विधान परिषद के पूर्व सदस्य प्रोफेसर के. नागेश्वर ने भी कहा कि यह कदम संघवाद और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है।
नागेश्वर ने कहा, अमित शाह के नेतृत्व वाले पैनल ने आईआईटी में अनिवार्य हिंदी माध्यम और केंद्र सरकार की भर्ती में अंग्रेजी के बदले हिंदी में अनिवार्य परीक्षा की सिफारिश की। क्या हमें, जो तेलुगु और अन्य भारतीय भाषाएं बोलते हैं, इस हिंदी आधिपत्य का विरोध नहीं करना चाहिए? यह कदम संघवाद, राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है।
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