राष्ट्रपति ने जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों का मुद्दा उठाया, बोलीं- गरीबों के लिए कुछ करने की जरूरत

नई दिल्ली राष्ट्रपति ने जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों का मुद्दा उठाया, बोलीं- गरीबों के लिए कुछ करने की जरूरत

Bhaskar Hindi
Update: 2022-11-26 18:00 GMT
राष्ट्रपति ने जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों का मुद्दा उठाया, बोलीं- गरीबों के लिए कुछ करने की जरूरत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का मुद्दा उठाया और इस बात पर जोर दिया कि जेलों में बंद गरीब लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में अपने समापन भाषण में राष्ट्रपति ने कहा, मैं एक बहुत छोटे से गांव से आती हूं। जहां मेरा जन्म हुआ वहां लोग तीन लोगों को भगवान मानते थे- शिक्षक, डॉक्टर और वकील। उन्होंने कहा कि अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए लोग अपना सारा पैसा और संपत्ति डॉक्टरों और वकीलों को देने को तैयार रहते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा, कहा जाता है कि जेलों में क्षमता से अधिक भीड़ हो रही है और अधिक जेलें स्थापित करने की आवश्यकता है। हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं? और जेलें बनाने की क्या जरूरत है? हमें उनकी संख्या कम करने की जरूरत है। छोटे-मोटे अपराधों के लिए कई सालों से कैद गरीब लोगों को मदद की जरूरत है। उन्होंने बताया कि किसी को थप्पड़ मारने या किसी अन्य छोटे अपराध के लिए भी जेल हो जाती है, जबकि ऐसे लोग हैं जो बहुत कुछ करते हैं, यहां तक कि दूसरों को मारते हैं, लेकिन खुले घूम रहे हैं।

इस कार्यक्रम में भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, कानून मंत्री किरेन रिजिजू, भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और बार के सदस्य शामिल थे। राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि जेलों में गरीब लोग हैं और उनके लिए कुछ करने की जरूरत है।

मुर्मू ने जेलों में भीड़ कम करने की सिफारिश करते हुए कहा, आपको इन लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। ये लोग जेल में कौन हैं? वह मौलिक अधिकारों या मौलिक कर्तव्यों को नहीं जानते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि जेलों में बंद अपने परिवार के सदस्यों को रिहा करवाने के लिए लोग कार्रवाई नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें अपनी संपत्ति बेचनी पड़ेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को देश और इसके लोगों के लिए एक सोच रखने की जरूरत है, यह कहते हुए कि जांच और संतुलन की जरूरत है, लेकिन कहीं न कहीं हमें एक साथ काम करने की जरूरत है। हमारा काम लोगों (जेलों में बंद विचाराधीन गरीब विचाराधीन कैदियों) के बारे में सोचना है। हम सभी को सोचना होगा और कोई रास्ता निकालना होगा..मैं यह सब आप पर छोड़ रही हूं।

(आईएएनएस)

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