जानिए मोदी कैबिनेट के जंबो एक्सपेंशन की वजह, क्या एक तीर से कई शिकार करने की है कोशिश?
जानिए मोदी कैबिनेट के जंबो एक्सपेंशन की वजह, क्या एक तीर से कई शिकार करने की है कोशिश?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले मोदी कैबिनेट का जंबो विस्तार हुआ है। मोदी के 8 साल के शासन में इस बार सबसे ज्यादा मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया गया। बुधवार को 15 कैबिनेट मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें से सात वो चेहरे हैं जिनका प्रमोशन हुआ है। 28 को राज्य मंत्री की शपथ दिलाई गई है। 12 मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई है। इसमें आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद, एनवायरनमेंट मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर, हेल्थ मिनिस्टर डॉ. हर्षवर्धन और एजुकेशन मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक समेत कई बड़े चेहरे शामिल है।
नियमों के मुताबिक, मोदी मंत्रिमंडल में अधिकतम 81 मंत्री रह सकते हैं। अभी मंत्रिमंडल में कुल 53 मंत्री थे। इस लिहाज से 28 मंत्रियों के शामिल होने की गुंजाइश थी। 12 मौजूदा मंत्रियों के इस्तीफे के बाद जिन 43 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई, उनमें कुछ मौजूदा राज्यमंत्री भी हैं, जिन्हें कैबिनेट में प्रमोट किया गया है। मोदी की इस जंबो कैबिनेट में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश की गई है। नए मंत्रियों में सबसे ज्यादा 7 उत्तर प्रदेश और फिर 5 गुजरात से हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी सरकार को आखिर इस जंबो कैबिनेट की जुरुरत क्यों पड़ी? क्या मोदी एक तीर से कई शिकार एक साथ करना चाह रहे हैं?
अगले साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है
जंबो कैबिनेट विस्तार की एक वजह अगले साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को माना जा रहा है। गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड विधानसभाओं का कार्यकाल मार्च 2022 में समाप्त होगा। वहीं, उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल अगले साल मई तक चलेगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में अपने साथी दलों को साधने के लिए अपना दल की अनुप्रिया पटेल को कैबिनेट में शामिल गया है। बीजेपी बखूबी जानती है कि उत्तरप्रदेश के चुनाव में दूसरे दलों की नजर छोटे दलों पर गड़ी हुई है।
ऐसे में उन्हें साथ बनाए रखने के लिए अनुप्रिया को टीम का हिस्सा बनाना जरूरी था। इसके अलावा ब्राह्मण वोटों को जोड़ने और दूसरे जातिगत समीकरण संभालने के लिए अजय कुमार मिश्रा, बीएल वर्मा, कौशल किशोर जैसे चेहरे चुने गए। उत्तरप्रदेश चुनाव में बुंदेलखंड भी अहम रोल अदा करता है। जिसके चलते मध्यप्रदेश के भी बुंदेलखंडी सांसद वीरेंद्र कुमार खटीक को मोदी कैबिनेट में जगह मिली है। ताकि बुंदेलखंड की अहमियत का मैसेज दिया जा सके। इसी तरह गुजरात और उत्तराखंड से भी सांसदों को मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया है।
2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी
मोदी सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में भी जुटी है। ऐसे में इस जंबो कैबिनेट विस्तार में सरकार की पीढ़ी परिवर्तन की रणनीति दिख रही है। इस कैबिनेट में उम्र, एक्सपीरिएंस और एजुकेशन तीनों पर फोकस किया गया है। नई कैबिनेट को अब तक की सबसे युवा टीम मोदी कहा जा रहा है, जिसकी एवरेज उम्र 58 साल है। मोदी कैबिनेट में वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और सिविल सर्वेंटों को शामिल किया गया है। मोदी की नई कैबिनेट में ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें पहले से केंद्र सरकार के साथ काम करने का अनुभव है। मुख्यमंत्री और पूर्व राज्य मंत्रियों को भी कैबिनेट में मौका दिया गया है। इससे साफ है कि मोदी सरकार यंग, एक्सपीरियंस्ड और हाईली एजुकेटड टीम के जरिए 2024 के चुनाव से पहले युवाओं को अपने पक्ष में लाना चाहती है।
छवि सुधारने की कवायद
मोदी मंत्रिमंडल के कैबिनेट विस्तार से पहले 12 मंत्रियों को उनके पद से छुट्टी दे दी गई। इससे कहा जा सकता है कि मोदी सरकार गवर्नेंस सुधारने के लिए बड़े और कड़े कदम उठाने की तैयारी में है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन लगातार विपक्ष के निशाने पर थे। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सिजन की कमी, इलाज में बेड नहीं मिलने, हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की लचर स्थिति के साथ ही कोरोना वैक्सीनेशन में धीमी रफ्तार को लेकर जनता को भी मोदी सरकार से नाराजगी थी। जानकारों का मानना है कि जनता के साथ ही विपक्ष को मजबूत संदेश देने के मकसद से डॉ. हर्षवर्धन से इस्तीफा लिया गया है। सरकार इसके जरिये यह संदेश देना चाहती है कि वह कोरोना महामारी के खिलाफ बिल्कुल भी ढिलाई बरतने के मूड में नहीं है। नई शिक्षा नीति का सरकार को उतना श्रेय नहीं मिला
श्रमिकों के पलायन, सुप्रीम कोर्ट की फटकार, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए राज्य मंत्री संतोष गंगवार पोर्टल नहीं बना पाए। इससे सरकार की छवि खराब हो रही थी। ऐसे में उन्हें पद से हटा दिया गया। महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद प्रकाश जावड़ेकर से भी इस्तीफा ले लिया गया है। जावड़ेकर मोदी मंत्रिमंडल में संसदीय कार्य मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, भारी उद्योग व सार्वजनिक उपक्रम मंत्री, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री और सूचना व प्रसारण मंत्री रहे हैं। वें सरकार के प्रवक्ता थे, लेकिन सरकार का पक्ष ठीक से नहीं रख पाए। पर्यावरण मिनिस्ट्री में भी उनकी लीडरशिप और कुछ फैसलों पर काफी सवाल उठे थे। उनके कई फैसले विवादास्पद रहे। किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी की सीट पर ज़्यादा असर ना पड़े, इसकी भी कोशिश इस जंबो कैबिनेट विस्तार में दिख रही है।