आर्थिक रूप से मजबूत होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन केवल धन के लिए जीना उचित नहीं

द्रौपदी मुर्मू आर्थिक रूप से मजबूत होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन केवल धन के लिए जीना उचित नहीं

Bhaskar Hindi
Update: 2023-02-09 16:30 GMT
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का कहना है कि वर्तमान में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। लोग पैसे, शक्ति, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा के पीछे भाग रहे हैं। आर्थिक रूप से मजबूत होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन केवल धन के लिए जीना उचित नहीं है। आर्थिक प्रगति और समृद्धि हमें भौतिक सुख दे सकती है, लेकिन शाश्वत शांति नहीं। आध्यात्मिक जीवन दिव्य आनंद के द्वार खोलता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं ने भारतीय समाज में मूल्यों और नैतिकता को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

राष्ट्रपति गुरुवार को गुरुग्राम में ब्रह्माकुमारी के ओम शांति र्रिटीट केंद्र में मूल्य-निष्ठ समाज की नींव- महिलाएं की विषयवस्तु पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने पहुंची थीं। यहीं उन्होंने यह महत्वपूर्ण बातें कही। यहां उन्होंने अखिल भारतीय जागरूकता अभियान परिवार को सशक्त बनाना की शुरूआत की।

राष्ट्रपति ने परिवार में एक मां की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि एक मां का स्वभाव हमेशा समावेशी होता है। वह अपने बच्चों में कभी भेदभाव नहीं करती हैं, इसलिए प्रकृति को प्रकृति माता भी कहा जाता है। हम सभी जानते हैं कि मां परिवार में पहली गुरु होती हैं। वह न केवल बच्चे को परिवार के सदस्यों और पर्यावरण से परिचित कराती हैं, बल्कि बच्चे में प्रचलित मूल्यों को भी विकसित करती हैं। इसे देखते हुए माताओं को चाहिए कि वे अपने बच्चों को सही संस्कार दें।

बच्चों को उनके बचपन से ही करियर को लेकर जागरूक करने की जगह उन्हें एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करना चाहिए। एक मां अपने बच्चों को सिखा सकती हैं कि वे पैसे को अपनी एकमात्र प्राथमिकता न बनने दें। एक मां के प्रयास से एक परिवार आदर्श बन सकता है। अगर हर एक परिवार एक आदर्श परिवार बन जाए तो समाज का स्वरूप खुद ही बदल जाएगा। इससे हमारा समाज एक मूल्य आधारित समाज बन सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि आज के राष्ट्रीय सम्मेलन की विषयवस्तु मूल्य-निष्ठ समाज की नींव- महिलाएं काफी प्रासंगिक है। महिलाओं ने भारतीय समाज में मूल्यों और नैतिकता को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। उन्होंने इस पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि ब्रह्माकुमारी संस्था ने महिलाओं को केंद्र में रखकर भारतीय मूल्यों को फिर से जीवित करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि आज यह विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक संस्था है, जिसे महिलाएं संचालित करती हैं। इस संस्था की 46 हजार से अधिक बहनें लगभग 140 देशों में अध्यात्म की परंपरा और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ा रही हैं।

महिला सशक्तिकरण पर राष्ट्रपति ने कहा कि जब भी महिलाओं को समान अवसर मिले हैं, उन्होंने हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर और कभी-कभी उनसे बेहतर प्रदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। हालांकि, उनमें से कई शीर्ष स्थान तक पहुंचने में सक्षम नहीं हैं। यह पाया गया है कि निजी क्षेत्र में मध्य स्तर के प्रबंधन में एक निश्चित स्तर से ऊपर महिलाओं की भागीदारी में कमी आई है। इसके पीछे मुख्य कारण पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं। आम तौर पर कामकाजी महिलाओं को कार्यालय के साथ-साथ घर की भी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमें इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है कि बच्चों को पालना और घर चलाना केवल महिलाओं की जिम्मेदारी है। महिलाओं को परिवार से अधिक सहयोग मिलना चाहिए, जिससे वे बिना किसी बाधा के अपने करियर में सर्वोच्च पद पर पहुंच सकें। उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण से ही परिवार सशक्त होंगे और सशक्त परिवार ही सशक्त समाज व सशक्त राष्ट्र का निर्माण करेंगे।

(आईएएनएस)

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