समानता के सामाजिक समीकरण से दूर नेताओं के सियासी आंकड़ें
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 समानता के सामाजिक समीकरण से दूर नेताओं के सियासी आंकड़ें
- सपा के 85 से दलित गायब
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में वोटों को साधने भेदने के लिए बिना नियम कायदों के समीकरणों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। मायावती के सोशल इंजीनियरिंग में तरह तरह के समीकरण का यूज किया जा रहा है। हर पार्टी की तरफ से बोले जाने वाले समीकरणों के सवाल से समाज को समन्वय सहयोग संगठित करने की बजाय चुनाव में वोट बटोरने के लिए बनाया जा रहा है। बसपा के संस्थापक काशी राम ने बहुजन के लिए 85, 15 का आंकड़ा दिया था। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद योगी जी ने इसे 80 और 20 का समीकरण बनाया और अब उनकी कैबिनेट छोड़कर जाने वाले स्वामी ने वापस 85, 15का आंकड़ा बुलंद कर दिया है। जिसके बाद से एक बार फिर बहुजन और सर्वजन के समीकरण पर चर्चा चल पड़ी है।
इन समीकरणों में न केवल केमेस्ट्री की बेलेंसिंग की धज्जियां उड़ाई जा रही है बल्कि गणित के आंकड़ों से समानता में सामाजिक और धार्मिक खाई खींची जा रही है। 80-90 के दशक में बसपा संस्थापक काशीराम के द्वारा सत्ता के लिए पैदा किए राजनैतिक फॉर्मूले को चुनावों में तोड़ मरोड़कर अलग अलग अंदाज में चुनावी मंचों से बोला जा रहा है। कभी 85 का बहुजन लेकर चलने वाले काशीराम की बीएसपी सत्ता में आते ही बहुजन से सर्वजन हो गई। बीएसपी का एक समय का नारा हुआ करता था बहुजन हिताय बहुजन सुखाय, लेकिन मायावती ने देश की राजनीति की फिजा और वक्त के साथ न केवल नारा बदला बल्कि सत्ता पर काबिज होने के लिए पार्टी की विचारधारा को भी बदला, और अपनी सोशल इंजीनियरिंग से 2007 में देश के सबसे बड़े राज्य की कमाल संभालते हुए सभी को दिखा दिया की अकेले के दम पर हाथी गद्दी पर बैठ सकता है।
बसपा की ब्राह्मण दलित सोशल इंजीनियरिंग समय के साथ धूमिल होती चली गई। लेकिन समय बदला और सत्ता बदली, और सोशल इंजीनियरिंग के समीकरण संतुलन के आकंड़ें बदल गए, ना केवल आंकड़ें बदले दलों ने उनके सुर भी बदल गए। पिछले चुनावों में बीजेपी मुस्लिम प्रभाव वाली अधिकतर सीटों पर जीती थी ऐसे में अब सवाल उठता है कि योगी के इस 80 - 20 का मतलब क्या है?
वहीं समाचारों की सुर्खियों और प्रचार की मंचों से ये माना जा रहा है कि यूपी चुनावों में मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी में होने वाले है। हर छोटे दल से गठबंधन कर चुनावी मैदान में ताकत झोंकने वाली सपा किसान, मुसलमान और पिछड़ों के बलबूते पर बीजेपी को मात देने की कोशिश में जुटी है। लेकिन बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने 85, 15 का नारा देकर पूरा खेल बिगाड़ दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में लड़ाई "85 बनाम 15" की है। उन्होंने नया नारा दिया और कहा "85 तो हमारा है 15 में भी बंटवारा है। स्वामी के 85 और काशीराम के 85 में जमीन आसमान का अंतर है। काशीराम के 85 में दलित शामिल था जबकि स्वामी के 85 में दलित शामिल नहीं है। ये बात आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने सपा चीफ अखिलेश पर सामाजिक न्याय न समझने का आरोप लगाकर दी। हालांकि स्वामी के 85, 15 बयान को योगी के 80, 20 के कटाक्ष के रूप में माना जा रहा था स्वामी के नारे को योगी का जवाब माना जा रहा है। मिल हुए हैं.
यूपी के सीएम योगी आदित्याथ ने 80 बनाम 20 का इस्तेमाल किया, जिसका मतलब कई राजनीतिक पंडित धर्म की जनसंख्या से लगाने लगे, वहीं बुद्धजीवी सवाल दागते हुए बीजेपी की सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास रणनीति को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया। हालांकि योगी ने बड़ी चतुराई से 80 बनाम 20 के जरिए कुछ डिफरेंट रंग देने की कोशिश की लेकिन इसके पीछे की असलियत बीजेपी बता सकती है या बीजेपी के योगी। सरकारी न्यूज चैनल दूरदर्शन के कार्यक्रम में यूपी सीएम ने कहा कि यह चुनाव 80 बनाम 20 का होगा। इसे हिंदू-मुस्लिम आबादी से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा चल रही है कि बीजेपी यूपी चुनाव में ध्रुवीकरण का दांव खेलने पर फोकस कर रही है इसी साक्षात्कार में सीएम योगी ने आगे कहा कि 80 फीसदी सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़कर बीजेपी समर्थन में, 20 फीसदी विरोध के तौर पर दूसरी तरफ होगा विकास का नारा देने वाले योगी को आखिरकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की बात क्यों करनी पड़ रही है। जबकि योगी सरकार पर पूरे पांच कार्यकाल के दौरान ब्राह्मण शोषण का आरोप लगता रहा है। ऐसे में 80 का नारा योगी के लिए कितना सार्थक होगा ये चुनावी नतीजे ही बता सकेंगे।