ओमप्रकाश राजभर पूर्वाचंल का वो चेहरा जो बनना चाहता है किंग मेकर, क्या चुनाव में दिखेगा असर!

राजभर करेंगे 'राजतिलक'  ओमप्रकाश राजभर पूर्वाचंल का वो चेहरा जो बनना चाहता है किंग मेकर, क्या चुनाव में दिखेगा असर!

Bhaskar Hindi
Update: 2021-07-29 08:05 GMT
 ओमप्रकाश राजभर पूर्वाचंल का वो चेहरा जो बनना चाहता है किंग मेकर, क्या चुनाव में दिखेगा असर!
हाईलाइट
  • क्या किंगमेकर बन सकेंगे राजभर?
  • यूपी में बढ़ रहा है ओमप्रकाश राजभर का कद

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। यूपी की राजनीति में ओमप्रकाश राजभर बहुत तेजी से बड़े नेता बन कर उभर रहे हैं। एक तरफ उनकी मुलाकात के चर्चे बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से होती है तो दूसरी तरफ वो सपा प्रमुख अखिलेश यादव को न्यौता देते दिखते हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता राजभर जिस तेजी से यूपी की सियासत में छा रहे हैं उसे देखते हुए माना जा रहा है कि वो आने वाले वक्त में यूपी के किंगमेकर भी बन सकते हैं। 

राजभर वोटों की ताकत

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर हैं। आपको बता दें कि इस दल का वोट बैंक पासी और राजभर समाज है। पूर्वांचल के 28 जिलों की 170 में से 40 सीटें ऐसी है जिन पर पासी और राजभर समाज की कुल आबादी 20 फीसदी से अधिक है। यह आंकड़ा सामान्य तौर पर कम दिखता है लेकिन राजनीति में यह आंकड़ा खेल बनाने और बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है। इसीलिए सुहेलदेव समाज पार्टी यानि की ओमप्रकाश राजभर को नजअंदाज करना बीजेपी के लिए खतरनाक साबित होगा। 

आपको बताते चलें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सुहेलदेव समाज पार्टी से गठबंधन कर मैदान में उतरी थी। उसका फायदा बीजेपी को मिला भी था और ये 20 फीसदी वोट कंसोलिडेट होकर के बीजेपी के पास गया था। बीजेपी के साथ चुनाव लड़कर राजभर की पार्टी का पहली बार खाता खुला था, और उनके 4 विधायक विधानसभा पहुंचे थे। राजभर को 2017 की जीत का इनाम भी मिला और उनको योगी सरकार में कैबिनेट पद दिया गया।

सरकार और योगी से हमेशा रहे नाराज

इस जीत ने सुभासपा को इतना उत्साहित कर दिया कि उसने भाजपा के सामने अपनी शर्तों का पिटारा खोल दिया। मंत्रिमंडल में ओम प्रकाश राजभर को जगह तो मिल गई पर पार्टी के लिए लखनऊ में कार्यालय, पार्टी नेताओं को मंत्री का दर्जा जैसी मांगें योगी सरकार ने पूरी नहीं की।

इसके साथ ही राजभर अपने दबदबे वाले जिलों खासकर बलिया, गाजीपुर, भदोही आदि में अपने हिसाब से प्रशासनिक अधिकारियों की तैनाती की भी मांग करने लगे, जिसको योगी सरकार ने पूरा नहीं किया। राजभर ने कई बार सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी सामने रखी। गाजीपुर के डीएम को हटाने के लिए तो राजभर को धरने पर बैठने पर पड़ा था। राजभर का भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकवा और शिकायतों का दौर पूरे एक वर्ष तक चलता रहा। 

भाजपा से अलग होने का कारण

ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा से पांच सीट मांगी थी लेकिन आखिर में वह घोसी और चंदौली की सीट मान गए थे। उन्होंने दोनों ही सीटों को अपनी पार्टी के सिंबल छड़ी पर लड़ने का मन बना लिया था, लेकिन भाजपा उन्हें एक सीट घोसी ही देने पर राजी थी। भाजपा ने सामने शर्त रखी कि वह घोसी सीट अपने सिंबल कमल के फूल पर देगी। कमल और छड़ी की लड़ाई ही दोनों के अलग होने का कारण बनी। भाजपा राजभर को अपने सिंबल पर इसलिए लड़ाना चाहती थी कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत न मिलने की स्थिति में वह इधर-उधर नहीं जा सकें।


 

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