मध्य प्रदेश की राजनीति में जातिवाद की एंट्री
एमपी में जातिवाद की राजनीति मध्य प्रदेश की राजनीति में जातिवाद की एंट्री
डिजिटल डेस्क, भोपाल । मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में से है जहां अब तक राजनीति में जातिवाद का जिक्र तक नहीं होता था। मगर आगामी विधानसभा चुनाव के पहले जातिवाद का रंग भी नजर आने लगा है। जातियों को खुश करने की कवायद भी तेज हो चली है। राज्य में समाज और जातियों के कल्याण की बातें तो खूब होती रही हैं, मगर उसे सियासी रंग देने की कोशिश कम हुई है, मगर बीते कुछ समय से राज्य में जाति और वर्ग के आधार पर सियासी दाव खूब चले जा रहे हैं। इस मामले में सत्ताधारी दल भाजपा हो या मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, दोनों ही वोट के लिए जातिवाद की पीठ पर हाथ रख रही हैं।
चुनाव में अभी सात माह से ज्यादा का वक्त नहीं बचा है मगर राजनीतिक तौर पर समाज, जातियों का लाभ लेने के लिए सियासी तौर पर कोशिशें शुरू हो गई हैं। भाजपा की बात करें तो सरकार विभिन्न समाजों के नाम पर बोर्ड और आयोगों का गठन कर चुकी है जिनमें रजक कल्याण बोर्ड, तेलघानी बोर्ड, स्वर्णकार कल्याण बोर्ड, विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड के अलावा बांस विकास प्राधिकरण, माटी कल्याण बोर्ड आदि का गठन और उसमें नियुक्तियां चर्चाओं में है।
एक तरफ जहां भाजपा सरकार में होने के कारण समाज और वर्गों को खुश करने के लिए बोर्ड, आयोग और प्राधिकरण में नियुक्ति कर रही हैं तो वहीं कांग्रेस ने भी सेन समाज से वादा किया है कि उनकी सरकार बनती है तो वह इस वर्ग के लिए आयोग का गठन करेंगे। इसके अलावा कमलनाथ ने भोजपुरी समाज, अग्रवाल समाज के युवक युवती परिचय सम्मेलन आदि ने भाग लिया और दोनों ही समाजों की खूब सराहना की। कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य में वोट हासिल करने के लिए सियासी दलों ने उस दिशा में कदम बढ़ा दिया है, जिससे राज्य की सियासत में जातिवाद का रंग भी गहराने की आशंका जोर पकड़ने लगी है।
आईएएनएस
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