जानिए बालाघाट में कैसे बदलते है सियासी समीकरण और चुनावी नतीजे?

  • बालाघाट में 6 सीट
  • आदिवासी बाहुल्य जिला बालाघाट
  • बालाघाट के नाम के लिए कई कहानियां प्रचलित

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-26 07:45 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बालाघाट जिले में 6 विधानसभा सीट बैहर,लांजी,परसवाड़ा, बालाघाट, वारासिवनी और कटंगी आती है। बालाघाट जिले में अनुसूचित जनजाति मतदाताओं की संख्या अधिक है। इसलिए राजनीति का केंद्र यहां एससी वोटर्स, उनकी समस्या और उनके मुद्दे अहम होते है। 6 में से एक मात्र बैहर विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। बाकी 5 विधानसभा क्षेत्र लांजी, परसवाड़ा, बालाघाट,, वारासिवनी, औऱ कटंगी सामान्य सीट है। 2018 के चुनाव में बीजेपी ने यहां की 6 सीटों में से 2 और कांग्रेस ने 3 और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी।

बालाघाट जिले के मुख्यालय को मूल रूप से बुहा या बूढ़ा कहा जाता था। बाद में ये नाम चलन से दूर हो गए। धीरे धीरे इसका नाम बालाघाट हो गया। यहां कट पत्थर का एक सुंदर बौद्ध मंदिर सभ्यता के संकेत के रूप में मिला, जो ऐतिहासिक समय से पहले गायब हो गया। 1743 से 1751 के बीच के इतिहासकारों द्वाला बुद्ध नाम दिया गया। बालाघाट के नामांकन के लिए कई कहानियां समय समय पर बताई जाती रही हैं। जिला अपने प्राकृतिक सौंदर्य, खनिज जमा और जंगलों के साथ समृद्ध भी है।

बालाघाट जिला वर्तमान में लाल गलियारे का हिस्सा है। बालाघाट जिला का गठन भंडारा, मंडिया और सेनी जिलों के कुछ हिस्सों के समामेलन के दौरान 1867-1873 के दौरान हुआ था। इसका नाम “घाटों के ऊपर” दर्शाता है और इस तथ्य के कारण है कि जिला बनाने में सरकार का मूल उद्देश्य घाटों के ऊपर के इलाकों के उपनिवेश को प्रभावित करना था।

1845 में, डलहौजी ने गोद लेने की परंपरा शुरू की ,ब्रिटिशकाल में गोद लेने वाले राज्यों को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया था। इलाके में 12 घाट है, जिससे इसका नाम बारहघाट पड़ा। बाद में बाराघाट हुआ और धीरे धीरे ये बालाघाट हो गया। यहां 12 पहाड़ियों के सभी नामों में घाट शब्द होता है, जिसमें मासेन घाट, कंजई घाट, रणराम घाट, बस घाट , डोंगरी घाट, सेलन घाट, भिसाना घाट, सालेटेरी घाट, डोंगरिया घाट, कवारगढ़ घाट, अहमदपुर घाट, तेपागढ़ घाट हैं।

सियासी लड़ाई की बात की जाए को कांग्रेस और बीजेपी की लड़ाई के बीच गोंडवाना गणतंत्र पार्टी आकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना देती है। जीजीपी यहां हर चुनाव में अपनी छाप छोड़ती है। यहां सफलता की एक ही चाबी है आदिवासियों को साधना।

बैहर विधानसभा सीट

आदिवासी बाहुल्य बैहर विधानसभा क्षेत्र में 60 फीसदी बैगा जनजाति के लोग रहते है। बैहर विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है। पिछले दो चुनाव यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, उससे पहले बीजेपी ने लगातार दो चुनाव जीते थे।

2018 में कांग्रेस के संजय उइके

2013 में कांग्रेस के संजय उइके

2008 में बीजेपी से भगत सिंह नेताम

2003 में बीजेपी से भगत सिंह नेताम

1998 में कांग्रेस से गणपत सिंह उइके

1993 में कांग्रेस से गणपत सिंह उइके

1990 में बीजेपी से सुधंवा सिंह नेताम

1985 में कांग्रेस से गणपत सिंह उइके

1980 में कांग्रेस से गणपत सिंह उइके

1977 में जनता पार्टी से सुधंवा सिंह नेताम

1972 में जनसंघ से सुंधवा सिंह नेताम

लांजी विधानसभा सीट

लांजी सीट पर चुनाव में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में होता है, लेकिन पिछले चुनाव में निर्दलीय और बीएसपी प्रत्याशी ने यहां दोनों पार्टी की मुसीबत बढ़ा दी थी। 2018 ,2013 में कांग्रेस वहीं 2008 और 2003 में बीजेपी प्रत्याशी ने चुनाव में जीत हासिल की थी।

2018 में कांग्रेस से हिना कांवरे

2013 में कांग्रेस से हिना कांवरे

2008 में बीजेपी से रमेश भतेरे

2003 में बीजेपी से अजय विश्नोई

परसवाड़ा विधानसभा सीट

2018 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। सपा प्रत्याशी यहां दूसरे नंबर पर रहे थे।

2018 में बीजेपी से रामकिशोर कांवरे

2013 में कांग्रेस से मधु भगत

2008 में बीजेपी से रामकिशोर कांवरे

2003 में जीजीपी से डार्बो सिंह उइके

बालाघाट विधानसभा सीट

2018 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। सपा प्रत्याशी यहां दूसरे नंबर पर रहे थे। बालाघाट विधानसभा सीट पर गौरीशंकर बिसेन का दबदबा है।

2018 में बीजेपी से गौरीशंकर बिसेन

2013 में बीजेपी से गौरीशंकर बिसेन

2008 में बीजेपी से गौरीशंकर बिसेन

2003 में बीजेपी से गौरीशंकर बिसेन

1998 में कांग्रेस से अशोक सिंह

1993 में बीजेपी से गौरीशंकर बिसेन

1990 में कांग्रेस से राजेंद्र शुक्ला

1985 में बीजेपी से गौरीशंकर बिसेन

1980 में कांग्रेस से सुरेंद्र नाथ खरे

1977 में कांग्रेस से एमपी दुबे

वारासिवनी विधानसभा सीट

वारासिवनी में कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले को बीएसपी रोचक बना देती है। यहां चुनाव किस ओर करव़ट लेगा अंत तक स्पष्ट नहीं हो पाता। बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। वारासिवनी विधानसभा सीट पर बीएसपी तीसरे चौथे पर रहती है। और बीजेपी और कांग्रेस के मुकाबला को कड़ा बना देती है।

2018 के चुनाव में कांग्रेस के बागी प्रदीप जयसवाल ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते।

2018 में निर्दलीय प्रदीप जयसवाल

2013 में बीजेपी से डॉ योगेंद्र निर्मल

2008 में कांग्रेस से प्रदीप जयसवाल

2003 में कांग्रेस से प्रदीप जयसवाल

1998 में कांग्रेस से प्रदीप जयसवाल

1993 ओंकार सिंह जनता दल

1990 केडी देशमुख

1985 केडी देशमुख जेएनपी

1980 केडी देशमुख जेएनपी

1977 में जेएनपी से केडी देशमुख बाथू

कटंगी विधानसभा सीट

कटंगी विधानसभा सीट पर कांग्रेस बीजेपी के साथ साथ बीएसपी भी अपनी मजबूत स्थिति कर रही है। 2008 में बीएसपी यहां तीसरे नंबर पर वहीं 2013 के चुनाव में बसपा दूसरे नंबर पर रही थी। ऐसे में बीएसपी का बढ़ता जनाधार भविष्य में कांग्रेस और बीजेपी के लिए मुसीबत बन सकता है।

2018 में कांग्रेस से तमलाल सहारे

2013 में बीजेपी से केडी देशमुख

2008 में कांग्रेस से विश्वेश्वर भगत

2003 में जेडीयू से सरोज बच्चन नायक



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