लोकसभा चुनाव 2024: शिवसेना के अभेद किले पर नवनीत राणा ने कैसे किया कब्जा, जानिए अमरावती सीट का चुनावी इतिहास जहां से प्रतिभा पाटिल भी रह चुकीं सांसद
- महाराष्ट्र की सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है अमरावती सीट
- नवनीत राणा और शिवसेना में है सीधे टक्कर
- पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी रह चुकी हैं सांसद
डिजिटल डेस्क, अमरावती। अमरावती लोकसभा सीट का नाम महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में गिना जाता है। अमरावती जिला विदर्भ क्षेत्र में आता है। विदर्भ की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली अमरावती सीट से पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी चुनाव जीत चुकी हैं। आजादी के बाद कई वर्षों तक यहां कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व रहा। 90 के दशक में शिवसेना ने अमरावती में अपना दबदबा कायम किया। 25 सालों तक अमरावती पर शिवसेना का कब्जा रहा। साल 2019 में नवनीत राणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ कर शिवसेना के अभेद किले को धाराशाई किया। अमरावती सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। वर्तमान में नवनीत राणा यहां की सांसद हैं। आज हम बात करेंगे अमरावती लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास के बारे में।
अमरावती लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास
आजादी के 15 साल बाद अमरावती में साल 1962 में पहले आम चुनाव हुए। पहले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टो को जीत मिली और पंजाबराव शामराव देशमुख यहां के पहले सांसद बने। तीन साल बाद 1965 में ही उप-चुनाव हुए जिनमें एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी पंजाबराव देशमुख को विजय प्राप्त हुई। दो साल बाद 1967 में लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने अपनी जीत बरकरार रखी। इस बार के. जी. देशमुख निर्वाचित हुए। 1967 के बाद कांग्रेस ने लगातार 4 आम चुनाव साल 1971, 1977, 1980 और 1984 में जीत दर्ज की। इन चुनावों में के जी देशमुख 1971 में सांसद बने, 1977 में बी एन महादेव निर्वाचित हुए और 1980 व 1984 में उषा प्रकाश चौधरी सांसद बनीं। साल 1989 में सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी) ने दस्तक दी और इस चुनाव में पहली बार कांग्रेस को अमरावती सीट गंवानी पड़ी। 1991 में कांग्रेस ने वापसी की और प्रतिभा पाटिल सांसद बनीं। साल 1996 में शिवसेना की एंट्री हुई। इस बार अनंतराव गुढ़े महादेवप्पा निर्वाचित हुए। 1998 में आरपीआई (रिपब्लिकन पार्टी) को पहली बार जीत मिली और इस बार रामकृष्ण सूर्यभान गवई सांसद बने। 1999 में शिवसेना ने वापसी की और माहदेवप्पा दोबारा सांसद बने। शिवसेना ने लगातार अगले तीन आम चुनाव साल 2004, 2009 और 2014 में जीत दर्ज की। साल 2019 के आम चुनाव में नवनीत राणा ने निर्दलीय खड़े होकर शिवसेना को हरा दिया। वर्तमान में नवनीत राणा अमरावती से निर्दलीय सांसद हैं।
क्या रहा पिछले चुनाव का रिजल्ट?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने अदसुल आनंदराव विठोबा को अमरावती से चुनावी मैदान में उतारा था। वंचित बहुजन अघाड़ी ने गुणवंत देवपरे को, तो वहीं बहुजन समाज पार्टी ने अरुण मोतीरामजी वानखेड़े को मैदान में उतारा था। इन पार्टियों के अलावा अमरावती सीट से कुल 6 पार्टियों ने अपने कैंडीडेट चुनावी मैदान में उतारे थे। कुल 17 निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी चुनाव लड़ा था। चुनावी नतीजों में निर्दलीय खड़ी हुईं नवनीत राणा ने शिवसेना प्रत्याशी आनंदराव अडसूल विठोबा को मात्र 36 हजार 951 वोटों से हरा दिया। इस दौरान नवनीत राणा को कुल 5 लाख 10 हजार 947 वोट मिले। वहीं, शिवसेना को 4 लाख 70 हजार 549 वोट मिले। इसके अलावा वंचित बहुजन अघाड़ी को 64 हजार 585 वोट मिले, जबकि बहुजन समाज पार्टी को 12 हजार 232 वोट मिले।
प्रतिभा पाटिल ने जीता चुनाव
अमरावती सीट से साल 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने प्रतिभा पाटिल को टिकट दिया था। उनके सामने अमरावती सीट पर शिवसेना ने प्रकाश पाटिल भारसाकाले को चुनावी मैदान में उतारा था। चुनावी नतीजों में प्रतिभा पाटिल ने प्रकाश पाटिल को 55 हजार 481 वोटों से शिकस्त दी थी। आगे चलकर साल 2007 में प्रतिभा पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति भी बनीं। उनका कार्यकाल 2007 से 2012 तक रहा।
नवनीत राणा बनाम शिवसेना
अमरावती सीट के सियासी इतिहास में सबसे बड़ा उलटफेर साल 2019 के आम चुनाव में देखने को मिला। जब शिवसेना को निर्दलीय प्रत्याशी नवनीत राणा से हार का सामना करना पड़ा। नवनीत राणा और शिवसेना के बीच जंग की शुरुआत तो साल 2014 में ही हो गई थी। 2014 के चुनाव में नवनीत राणा ने राजनीति में अपना कदम रखा था। तब उन्हें एनसीपी ने अमरावती से चुनाव का टिकट दिया था। लेकिन तब नवनीत राणा चुनाव जीतने में विफल रहीं थीं। उन्हें शिवसेना प्रत्याशी आनंदराव अडसूल ने मात दी थी। 2019 के पहले अमरावती सीट पर शिवसेना का ऐसा बोलबाला था कि पिछले 25 सालों से उसने हार का मुंह नहीं देखा था। नवनीत राणा ने 2014 की हार के बावजूद राजनीति नहीं छोड़ी और वे अमरावती में सक्रिय राजनीति करती रहीं। साल 2019 के आम चुनाव में उन्हें एक बार फिर एनसीपी से चुनाव लड़ने का ऑफर आया। लेकिन इस बार नवनीत राणा ने अमरावती सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। नतीजा यह हुआ कि नवनीत राणा ने शिवसेना के मजबूत किले को गिरा दिया और वह चुनाव जीतने में सफल रहीं।