छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023: दुर्ग जिले में स्थानीय समस्याओं पर लड़ा जाता है चुनाव
- दुर्ग जिले में 6 विधानसभा सीट
- 5 सामान्य 1 एससी आरक्षित
- निर्णायक भूमिका में होता है ओबीसी वोटर्स
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दुर्ग जिले में 6 विधानसभा सीट दुर्ग शहर, भिलाई नगर,वैशाली नगर, अहिवारा दुर्ग ग्रामीण, पाटन सीट शामिल है। दुर्ग जिले में ओबीसी समुदाय का दबदबा है, ओबीसी में भी साहू, कुर्मी,लोधी, यादव समाज का प्रभुत्व है। इन समुदायों के मतदाता ही निर्णायक भूमिका में होते है। कुछ क्षेत्रों में एससी और एसटी वोटर्स कू भूमिका काफी होती है। यहां आऱक्षित वर्ग के मतदाता चुनाव को किसी भी डायरेक्शन में मोड़ सकते है। हालांकि जिले में बीजेपी कांग्रेस में भी मुख्य मुकाबला होता है। बीएसपी और जोगी कांग्रेस यहां अधिक दमखम नहीं दिखा पाती। दुर्ग जिले की 6 विधानसभा सीटों में से पांच सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।
दुर्ग शहर विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से अरूण वोरा
2013 में कांग्रेस से अरूण वोरा
2008 में बीजेपी से हेमचंद यादव
दुर्ग शहर सीट को हाईप्रोफाइल सीट में गिना जाता है, इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा का दबदबा रहा है। उनके बेटे अरूण वोरा अभी इस सीट से विधायक है।दुर्ग शहर में सभी समाज के लोग रहते है, लेकिन पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है।ओबीसी वोटर्स ही यहां निर्णायक भूमिका में होता है। समस्याओं की बात की जाए तो पेयजल की समस्या , साफ सफाई यहां की प्रमुख समस्या है। विधानसभा क्षेत्र से निकलने वाली शिवनाथ नदी शहर के घरों से निकलने वाले दूषित जल से प्रदूषित हो रही है। इसके साथ ही ट्रैफिक अव्यवस्था बनी रहती है। यहां जाम की परेशानी बनी रहती है।
भिलाई नगर विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से देवेंद्र यादव
2013 में बीजेपी से प्रेम प्रकाश पांडे
2008 में कांग्रेस से बद्रुद्दीन कुरैशी
छत्तीसगढ़ की भिलाई नगर विधानसभा सीट को मिनी इंडिया के नाम से जाना जाता है। बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवार यहां से जीतते है। मुख्य मुकाबला भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता है। इस्पात नगरी से मशहूर भिलाई में हर जाति धर्म के लोग रहते है। पेयजल समस्या यहां की मुख्य समस्या बनी हहती बीएसपी के गढ़ में बीमारी और सुविघाओं की कमी दिखाई देते है।
वैशाली नगर विधानसभा सीट
2018 में बीजेपी से विद्या रतन भषीन
2013 में बीजेपी से विद्यारतन भषीन
2008 में बीजेपी सरोज पांडे
सामान्य सीट वैशाली नगर पर बीजेपी का कब्जा है, इस सीट को बीजेपी का अभेद किला माना जाता है। यहां हर जाति धर्म का मिला जिला रूप देखने को मिलता है।चुनाव में जातिगत समीकरण यहां कोई मायने नहीं रखता। विकास नाम मात्र का देखने को मिलता है। स्थानीय वासियों को प्रदूषण और साफ सफाई के अभाव में बीमारियों का दंश झेलना पड़ता है। यहां संघ की मजबूत पकड़ मानी जाती है, प्रत्याशियों की किस्मत भी संघ ही तय करता है। जब से सीट अस्तित्व में आई तब से सीट बीजेपी का गढ़ है। यहां शिक्षण संस्थानों की कमी है। शराब कारोबार यहां खूब फल फूल रहा है।
अहिवारा विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से गुरू रूद्र कुमार
2013 में बीजेपी से राजमहंत सांवला राम दाहरे
2008 में बीजेपी से दोमान लाल कोरसेवाडा
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अहिवारा विधानसभा 2008 में अस्तित्व में आई, इस विधानसभा क्षेत्र को पाटन से अलग कर और धमधा को मिलाकर बनाया गया था। अहिवारा सीट को दुर्ग जिले की सबसे बड़ी सीट माना जाता है। 2008, 2013 में बीजेपी और 2018 में कांग्रेस की यहां से जीत हुई थी। वैसे तो यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में होता है, लेकिन एससी आरक्षित सीट होने की वजह से यहां बीएसपी भी मजबूत स्थिति में नजर आती है। यहां 50 फीसदी के आस पास एससी मतदाता है, जो चुनाव में गेमचेंजर की भूमिका में होते है। इसके बाद ओबीसी वर्ग के वोटर्स है,जिनमें साहू, कुर्मी अपना प्रभाव रखते है। क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। प्रदूषण और बेरोजगारी यहां की प्रमुख समस्या है।
दुर्ग ग्रामीण विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से ताम्रध्वज साहू
2013 में बीजेपी से रमशीला साहू
दुर्ग विधानसभा सीट 2008 में अस्तित्व में आई थी।
दुर्ग विधानसभा सीट में ओबीसी मतदाताओं का दबदबा है, इनमें से भी साहू, कुर्मी समुदाय के वोटर्स अधिक है। वर्तमान विधायक के नेतृ्त्व में यहां विकास तो हुआ है, लेकिन फिर भी कई खामियां है। बेरोजगार, साफ सफाई, प्रदूषण, पेयजल की समस्या आज भी जिंदा है।
पाटन विधानसभा सीट
पाटन विधानसभा सीट सबसे अहम सीट मानी जाती है, सीट पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस से विधायक है। यदि बघेल को कांग्रेस उम्मीदवार घोषित करती है तो उनके सामने बीजेपी से सांसद विजय बघेल सामने होंगे। पाटन सीट की बात की जाए तो यहां से 2003 से 2018 तक तीन बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है।
सीट पर ओबीसी वोटर्स की तादाद करीब 50 फीसदी है, यहां प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला पिछड़ा वर्ग ही करता है। यहां की प्रमुख समस्याओं की बात की जाए तो क्रेशर खदान है, जिनमें होने वाले ब्लास्ट से घरों की दीवारों में दरार आ जाती है। सिंचााई के लिए पानी,प्रदूषण और बेरोजगारी प्रमुख समस्या है।
2018 में कांग्रेस से भूपेश बघेल
2013 में कांग्रेस से भूपेश बघेल
2008 में बीजेपी से विजय बघेल
2003 में कांग्रेस से भूपेश बघेल
छत्तीसगढ़ का सियासी सफर
1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ ने सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।
प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गद्दी संभाली थी। पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। 2018 में कांग्रेस की बंपर जीत से बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।