श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन: राम मंदिर के पहले पक्षकार गोापल विशारद की कहानी, जिन्होंने हिंदुओं की ओर से दायर किया पहला मुकदमा
- गोापल विशारद ने हिंदुओं की ओर से दायर किया पहला मुकदमा
- 22 जनवरी को रामलला के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा
- राम मंदिर को लेकर राममय हुआ देश का माहौल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन आज-कल की नहीं बल्कि आजादी से भी कई साल पहले से चली आ रही थी। जिसका अंत 26 जुलाई 2010 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ। जानकारी के मुताबिक, 1526 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण कथित रूप से श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के अवशेषों के ऊपर किया गया। वहीं साल 1853 में पहली बार इस जगह के पास सांप्रदायिक दंगे हुए। दोनों संप्रदाय के बीच इस विवाद को सुलझाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1859 में विवादित स्थल पर बाड़ लगाकर भीतरी हिस्सा मुसलमानों को और बाहरी हिस्सा हिंदुओं को पूजा-अर्चना के लिए दे दिया। हालांकि, हिंदू समाज इससे संतुष्ट नहीं थे, उनके मन में हमेशा से भव्य राम मंदिर बनाने की प्रबल इच्छा थी। इसी वजह से अपने हक में फैसला आने तक तमाम हिंदू संगठन राम जन्मभूमि स्थल के लिए संघर्ष करते रहे।
आजादी के बाद इस विवाद से संबंधित पहला मुकदमा 1950 में अदालत में दायर किया गया। इस मुकदमे को दायर करने वाले थे गोपाल सिंह विशारद। राम मंदिर बनाने से इतर उन्होंने विवादित स्थल पर रखी गई रामलला की मूर्ति तक निर्बाध्य पहुंचने के अधिकार के संबंध में मुकदमा दायर किया था। आपको बता दें कि, गोपाल सिंह ने हिंदू महासभा की ओर से 1949 में विवादित स्थान पर रखी गई मूर्तियों के दर्शन और व्यक्तिगत पूजन के अधिकार के लिए जिला अदालत में मुकदमा दर्ज कराया था।
आजादी के बाद पहला मुकदमा
14 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद राम जन्मभूमि स्थल पर विराजमान रामलला की मूर्ति का दर्शन करने जा रहे थे। इस बीच पुलिस ने उन्हें रामलला तक पहुंचने नहीं दिया और दूसरे दर्शनार्थियों को भी रोका जा रहा था। इस कारण से उन्होंने फैजाबाद के जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया और जन्मभूमि पर स्थापित मूर्तियों को नहीं हटाने की अर्जी दी थी। साथ ही उन्होंने दर्शन और व्यक्तिगत पूजन की अनुमति भी मांगी थी। 16 जनवरी 1950 को कोर्ट ने गोपाल सिंह के पक्ष में फैसला सुनाते हुए रामलला के दर्शन की अनुमति दे दी। वहीं 3 जनवरी 1951 को कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश की पुष्टि भी कर दी। हालांकि, 2019 में यह मुकदमा पूरी तरह खत्म हुआ जिसमें गोपाल सिंह को व्यक्तिगत पूजन का अधिकार दिया गया।
हिंदू महासभा से था नाता
गोपाल सिंह विशारद का परिवार मूल रूप से झांसी के थे, जो बाद में अयोध्या आकर बस गए। वह उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गोंडा जो अब बलरामपुर है, वहां के निवासी बन गए साथ ही हिंदू महासभा से भी जुड़े हुए थे। रामलला के दर्शन और व्यक्तिगत पूजन के अधिकार के लिए उन्होंने हिंदू महासभा की तरफ से ही मुकदमा दायर किया था। उस समय वह हिंदू महासभा, गोंडा के जिलाध्यक्ष थे। आजादी के बाद श्रीराम जन्मभूमि विवाद से जुड़ा पहला मुकदमा दायर करने वाले गोपाल सिंह थे। जिस वजह से उन्हें आंदोलन का नींव भी कहा जाता है। संकल्प बुकलेट में शामिल आंदोलन से जुड़े 21 महत्वपूर्ण चेहरों में गोपाल सिंह विशारद का नाम भी शामिल है।