पुणे पोर्श कार कांड: सड़क हादसों में साल-दर-साल बढ़ रही नाबालिगों की भूमिका, कुल सड़क दुर्घटनाओं में करीब 10 फीसदी हिस्सेदारी, दोषी कौन सिस्टम या परिजन?
- भारत में नाबालिग ड्राइवरों की संख्या बढ़ी
- कुल दुर्घटनाओं में 10 फीसदी तक है हिस्सेदारी
- सख्त सिस्टम की कमी के साथ मां-बाप की अनदेखी भी जिम्मेदार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पुणे पोर्श कार कांड इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है। जिसमें एक 17 साल के नाबालिग ने 18-19 मई की रात पुणे में अपने दोस्तों के साथ पार्टी करके अपनी पोर्श कार से घर लौट रहा था। कार की स्पीड करीब 200 किलोमीटर प्रति घंटा थी। इस बीच रास्ते में दो बाइक सवार इस तेज रफ्तार कार की चपेट में आ गए और उनकी मौत हो गई।
मामला पुलिस तक पहुंचा और घटना के करीब 14 घंटे के भीतर ही नाबालिग को जमानत मिल गई। नाबालिग को जमानत देने के लिए कोर्ट ने उसके सामने कुछ शर्तें रखीं। जैसे कि कोर्ट ने उसे 15 दिनों तक ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने और सड़क दुर्घटनाओं को लेकर 300 शब्दों में निबंध लिखने का निर्देश दिया था। हालांकि पुलिस ने अपनी जांच में यह भी पाया कि नाबालिग आरोपी नशे में तेज कार चला रहा था। अब इस मामले में आगे क्या होगा, आरोपी पर क्या एक्शन लिया जाएगा ये देखने वाली बात होगी।
पुणे की यह घटना बता रही है कि देश में हो रही सड़क दुर्घटनाओं में नाबालिगों की भूमिका लगातार बढ़ रही है। पुणे ही नहीं देश के कई हिस्सों में हर दिन-हर हफ्ते ऐसी दुर्घटनाएं हो रही हैं। ये हालात तब हैं जब कानून में किसी भी नाबालिग से एक्सीडेंट होने पर उसके माता-पिता मामला दर्ज करने और उन पर दंडात्मक कार्रवाई करने का प्रावधान है।
नाबालिगों के कारण हो रहीं 9.6 फीसदी मौतें
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, सड़क दुर्घटनाएं 2020 में 3,68,828 से बढ़कर 2021 में 4,22,659 हो गई हैं। जिनमें नाबालिग ड्राइवर जिनकी उम्र 18 साल से कम हैं, उनकी वजह से हुई हैं। बात करें राजधानी दिल्ली की यहां बीते कुछ सालों में कम उम्र में गाड़ी चलाने वालों के आंकडों में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है।
वहीं, पीआईबी की रिपोर्ट के मुताबिक बिना लाइसेंस वाले और 17 साल से कम उम्र में गाड़ी चलाने वालों की वजह से साल 2012 से लेकर 2014 तक देश में हजारों दुर्घटनाएं हुई हैं। बात करें बिना लाइसेंस वालों से होने वाली दुर्घटनाओं के बारे में तो साल 2012 में यह आंकड़ा 25463, 2013 में 37176 और साल 2014 में 39314 था। वहीं 17 साल से कम उम्र के लोगों की वजह से साल 2012, 2013 और 2014 में क्रमश: 20110, 21496 और 19187 दुर्घटनाएं हुई हैं।
साल दर साल बढ़ रहे मामले
रिपोर्ट्स के मुताबिक कम उम्र में गाड़ी चलाने वालों के आंकड़े साल-दर-साल बढ़ रहे हैं। 2013 में जहां कम उम्र के ड्राइवरों की औसत आयु जहां 15 से 16 साल के बीच वो साल बीते 5 सालों में 10 से 11 साल तक आ गई। कई जगहों पर पुलिस द्वारा 10 साल तक के बच्चों को वाहन चलाते पकड़ा गया है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर दिन करीब 40 बच्चे सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। एक्सपर्ट्स इसके पीछे कम आयु वाले ड्राइवरों को जिम्मेदार मानते हैं।
इन आंकडों की पुष्टि इस बात से हो जाती है कि साल 2020 में जब कोरोना महामारी के चलते देश में कई बार लॉकडाउन लगाया था तो उस दौरान भी कम उम्र में गाड़ी चलाने वाले नाबालिगों के चालान ट्रैफिक पुलिस ने काटे थे। गुड़गांव ट्रैफिक पुलिस के मुताबिक 2020 में 2019 के मुकाबले 5 गुना चालान काटे गए थे, जिनमें अधिकतर नाबालिग ड्राइवर थे। दरअसल, लॉकडाउन में सड़क पर ट्रैफिक न होने की बात कहते हुए नाबालिगों के परिजनों ने ही उन्हें गाड़ी सीखने के लिए प्रोत्साहित किया, वो भी तब जब 18 साल से कम का होने की वजह से उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।
दोषी कौन, मां-बाप या सिस्टम?
भारत में बिना लाइसेंस वाहन चलाना एक अपराध है। लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने यह नियम बनाया तो है लेकिन सिस्टम की सख्ती न होने के चलते लोग आज धड़ल्ले से यह नियम तोड़ते नजर आ रहे हैं। वहीं कम ड्राइविंग के खिलाफ कड़े कानून होने का पता रहने के बावजूद भी मां-बाप इसके परिणाम को दरकिनार कर देते हैं। निसान इंडिया और सेव लाइफ फाउंडेशन की के द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर के 96.4% नाबालिगों ने माना है कि उनके माता-पिता जानकारी में है कि वो वाहन चला रहे हैं। इसके अलावा, दिल्ली-एनसीआर के 70.4% नाबालिगों बताया कि उनके माता-पिता ने उन्हें खुद गाड़ी चलाने की अनुमति दी है। वहीं कुछ परिजनों का कहना है कि उनके मना करने के बावजूद बच्चें अनुपस्थिति में कार की चाबियाँ लेकर बाहर निकल जाते हैं।
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में कम उम्र में गाड़ी चलाने के मामले बढ़ गए हैं। लगभग 90% किशोर हल्के या भारी टू-व्हीलर वाहन चलाते समय हेलमेट नहीं पहनते हैं, जो कि सड़क दुर्घटनाओं का एक मुख्य कारण है। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के एक अधिकारी ने द संडे गार्जियन को बताया, "माता-पिता भी ऐसी दुर्घटनाओं के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं।"