रामलला की प्रतिमा: बालक राम के नाम से जाने जाएंगे रामलला, डायनासोर के युग से भी पुराने काले पत्थर से बनी है प्रतिमा, एक हजार साल तक हवा पानी का नहीं होगा असर
- रामलला नहीं बालकराम के नाम से जानी जाएगी भगवान राम की मूर्ति
- डायनासोर के युग से भी पुराने काले पत्थर से तैयार की गई है प्रतिमा
- एक हजार साल तक हवा और पानी का नहीं होगा मूर्ति पर कोई असर
डिजिटल डेस्क, अयोध्या। सोमवार (23 जनवरी) का दिन भारतीय इतिहास में सुनहरे शब्दों में लिखा जा चुका है। प्राण प्रतिष्ठा के भव्य कार्यक्रम में अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों रामलला की दिव्य मूर्ति प्रतिष्ठित की गई है। प्राण प्रतिष्ठा के अगले दिन ही रामलला की इस दिव्य प्रतिमा को एक अलग नाम भी दिया गया है। राम मंदिर के गर्भ गृह में प्रतिष्ठित की गई भगवान राम की प्रतिमा को अब बालकराम के नाम से जाना जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अयोध्या के भव्य और दिव्य राम मंदिर में विराजमान रामलला की मूर्ति कितनी अनोखी है?
दरअसल, भगवान श्रीराम की मूर्ति जिस काले रंग के ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई है, वह बहुत खास प्रकार का है। बताया जा रहा है कि यह पत्थर ढाई अरब साल पुराना है और इसे कर्नाटक से लाया गया है। प्रभु श्री राम की मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा के बाद सोमवार को पेश किया गया। अयोध्या में रामलला के ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न होने के बाद अब आम भक्त जन भी श्री राम के दर्शन के लिए राममंदिर में उमड़ रहे हैं। सभी रामभक्तों के मन में रामलला की मूर्ति को लेकर कई तरह के सवाल हैं जैसे मूर्ति बनाने के लिए कौन सा पत्थर इस्तेमाल किया गया होगा, और इसकी क्या खासियत है। आइए बालक राम की मूर्ति की खासियत जानते हैं-
मूर्ति की खासियत
रामलला भव्य और दिव्य मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच और चौंड़ाई 4.24 फीट है। मूर्ति का वजन करीबन 200 किलोग्राम है। यह एक खास प्रकार के काले पत्थर से निर्मित है जो कर्नाटक से लाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स के डायरेक्टर एच एस वेंकटेश ने बताया है कि रामलला की मूर्ति बनाने में इस्तेमाल होने वाला पत्थर ढाई अरब वर्ष पुराना है।
मौसम की मार भी झेल सकता है पत्थर
वेंकटेश ने आगे कहा कि इस काले ग्रेनाइट पत्थर की खासियत यह है कि इस पत्थर पर मौसम का भी कोई असर नहीं होता। मौसम के बदलावों के बीच भी यह हजारों साल तक यह वैसा ही रहेगा जैसा आज है।
कैसे बना यह पत्थर?
ऐसा कहा जाता है कि जब धरती का निर्माण हो रहा था तब काफी बड़े पैमाने पर विस्फोट हुए थे। उन्हीं विस्फोट के परिणामस्वरूप जो लावा पिघला उससे ही इन ग्रेनाइट पत्थरों का निर्माण हुआ। यह ग्रेनाइट पत्थर बहुत ही ठोस होता है और इस पर मौसम के बदलावों का असर नहीं होता।
रामलला की मूर्ति के लिए कहां से लाए गए पत्थर?
रामलला की मूर्ति तैयार करने के लिए जिन श्रेष्ठ क्वालिटी के पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है उन्हें कर्नाटक के मैसुरू जिले के जयपुरा गांव से लाया गया। जयपुरा गांव की पहचान अपने उन्नत क्वॉलिटी के काले ग्रेनाइट पत्थरों की खदानों के रूप में होती है।
क्या है वैज्ञानिकों की राय?
रामलला की मूर्ति के पत्थर पर वैज्ञानिकों और एक्सपर्टस का मानना है कि यह पत्थर प्री-कैम्ब्रियन काल का है। यह काल चार अरब साल पहले शुरु हुआ था। ऐसा माना जा रहा है कि यह काल धरती के संपूर्ण इतिहास के लगभग बीच का है। डायनासोर का इतिहास भी दो अरब साल के आसपास ही पुराना माना जाता है। इस अनुसार ये पत्थर डायनासोर के युग से भी पुराने हैं। विज्ञान के अनुसार मानव जाति 1 करोड़ 40 लाख साल पहले अस्तित्व में आई। और वर्तमान में हम मानव के जिस स्वरूप को देख रहे हैं, एक वक्त उसकी पहचान होमो सैपियन से होती थी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि धरती पर जीवन की शुरुआत लगभग 4 अरब वर्ष पहले हुई होगी। इस प्रकार रामलला की मूर्ति का ग्रेनाइट पत्थर बहुत खास है। यह पत्थर धरती के जीवन पर अस्तित्व पाए जाने के दौर का है। इस पत्थर की खास बात है कि इस पर न तो पानी का कोई असर होगा और ना ही कार्बन का।