हाईकोर्ट के फैसले पर रोक: यूपी के मदरसा एजुकेशन एक्ट रद्द करने वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
- इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर एससी ने लगाई रोक
- हाईकोर्ट ने मदरसा ऐक्ट को किया था निरस्त
- फैसले के खिलाफ एससी पहुंचे थे मदरसा संचालक
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट से जुड़े इलाहाबाद कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर आज सुनवाई की है। मदरसा संचालकों की तरफ से यह याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गई थी। मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले पर केंद्र सरकार और यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। तीन सदस्यीय पीठ में चीफ सीजेआई के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। आपको बता दें कि बीते दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मदरसा एक्ट 2004 को असंवैधानिक और सेकुलरिज्म के खिलाफ बताते हुए निरस्त कर दिया था।
मदरसा अजीजिया इजाजुतूल उलूम के मैनेजर अंजुम कादरी ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 22 मार्च 2024 को यूपी मदरसा ऐक्ट 2004 को निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट ने इस ऐक्ट को असंवैधानिक दिया था और धर्म निरपेक्षता के खिलाफ बताया था। मदरसा ऐक्ट निरस्त होने के बाद उत्तर प्रदेश की यूपी सरकार ने राज्य के करीब 16 हजार मदरसों की मान्यता खत्म कर दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद मदरसा संचालकों को राहत जरूर मिली है।
'पहली नजर में ठीक नहीं' - एससी
मदरसा संचालकों ने मदरसा एक्ट को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उनकी तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "मदरसा बोर्ड का उद्देश्य नियामक है। इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह कहना पहली नजर में ठीक नहीं है कि मदरसा एजुकेशन बोर्ड का गठन करना सेकुलरिज्म के खिलाफ है।" उच्चतम न्यायालय का मानना है कि एक्ट को खारिज करने के पीछे की वजह पहली नजर में ठीक नहीं है। बता दें कि पिछले सप्ताह ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मदरसे के छात्रों को आम स्कूलों में ट्रांसफर कर नामांकन करवाने का आदेश दिया था। इसके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा था कि धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड का गठन करने की शक्ति सरकार के पास नहीं है। हाईकोर्ट ने साफतौर पर कहा था कि सरकार स्कूली शिक्षा के लिए किसी ऐसे बोर्ड का गठन नहीं कर सकती है जिसके अंतर्गत सिर्फ किसी खास मजहब और उसके मूल्यों की शिक्षा दी जाती है।