शांतनु को क्या मिला?: रतन टाटा की वसीयत में पालतु कुत्ते और शांतनु नायडू का जिक्र, टीटो के लिए मोटी रकम, शांतनु की कंपनी में शेयर्स और पढ़ाई का खर्च माफ

  • रतन टाटा की वसीयत का हुआ खुलासा
  • अपने पेट डॉग, घर वाले, रसोईए के अलावा कई और अहम लोगों का किया अपनी वसीयत में जिक्र
  • ऐसे हुई थी शांतनु नायडू और रतन टाटा की दोस्ती

Bhaskar Hindi
Update: 2024-10-26 08:39 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के रतन और टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा का कुछ दिन पहले ही देहांत हुआ है। जिसके बाद उनकी पहले ही लिखी गई वसीयत का खुलासा हुआ है। जिसमें उन्होंने ये सुनिश्चित किया है कि उनके करीबियों को उनके जाने के बाद कोई परेशानी ना उठानी पड़े। साथ ही उन्होंने ये भी पक्का किया है कि उनके जाने के बाद भी उनके पालतू कुत्ते टीटो का अच्छी तरह से ख्याल रखा जाए। इसके अलावा उन्होंने अपनी वसीयत में शांतनु नायडू का भी जिक्र किया है। उन्होंने नायडू के वेंचर गुडफेलोज में अपना शेयर छोड़ा है। साथ ही विदेश में शांतनु नायडू के एजुकेशन खर्च को भी भरा है। लेकिन कौन हैं शांतनु नायडू जिनके लिए रतन टाटा ने अपनी वसीयत में किया जिक्र। कैसे हुई थी दोनों की मुलाकात? चलिए जानते हैं दोनों के रिश्तों के बारे में।

कौन है शांतनु नायडू?

शांतनु नायडू का जन्म साल 1993 में पुणे में हुआ था। साल 2014 में सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की थी। जिसके बाद शांतनु ने साल 2016 में कॉर्नेल जॉनसन ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन से मास्टर्स किया था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने अपने करियर की शुरूआत टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर से की थी। शांतनु की लिंकडिन प्रोफाइल के मुताबिक, शांतनु साल 2017 से टाटा ट्रस्ट में काम कर रहे हैं। इसके बाद उन्होंने रतन टाटा के असिस्टेंट के तौर पर काम किया था।

खुद रतन टाटा ने दिया था असिस्टेंट बनने का ऑफर

शांतनु नायडू की प्रतिभा से रतन टाटा काफी ज्यादा इंप्रेस थे। जिसके बाद उन्होंने खुद रतन टाटा को फोन करके असिस्टेंट बनने का ऑफर दिया था। जिसे बाद साल 2022 से वो रतन टाटा के ऑफिस के जीएम के तौर पर काम कर रहे थे। शांतनु स्टार्टअप्स में इंवेस्ट करने के लिए भी रतन टाटा को सलाह देते थे।

कैसे हुई थी दोनों की मुलाकात?

शांतनु नायडू और रतन टाटा की मुलाकात एनिमल लवर होने की वजह से हुई थी। क्योंकि दोनों ही एनिमल लवर हैं। इन दोनों की मुलाकात साल 2014 में हुई थी जब शांतनु ने कुत्तों को एक्सिडेंट से बचाने के लिए रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाए थे। कुत्तों के गले में बांध रहे थे। उन कॉलर की वजह से अंधेरे में भी कुत्ते दिख जाते थे और लोग अपनी गाड़ी रोक देते थे या धीरे कर लेते थे। इस आइडिया से रतन टाटा बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने शांतनु को अपना असिस्टेंट बनने के लिए अप्रोच करा और दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। जब शांतनु रतन टाटा से पहली बार मिले थे तो वो केवल 20 साल के ही थे।

क्या करते हैं शांतनु नायडू?

शांतनु नायडू नौकरी करने के अलावा गुडफेलोज स्टार्टअप के मालिक भी हैं। जिसमें सीनियर सिटीजन को कंप्रिहेंसिव सपोर्ट मिलता है। इस कंपनी की वैल्यू करीब 5 करोड़ रुपये है। शांतनु नौकरी करने के अलावा एक फेमस बिजनेसमैन, जूनियर असिस्टेंट, डीजीएम, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, लेखक और इंटरप्रेन्योर हैं। साथ ही एनिमल लवर होने के चलते शांतनु ने 'मोटोपॉज' नाम की संस्था बनाई है जो सड़कों पर घूम रहे कुत्तों की मदद करती है। इनका बिजनेस करीब 17 शहरों में फैला हुआ है।

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