श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन: राम को बनाया पक्षकार, जन्मभूमि के अदालती संघर्ष में जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल का अहम योगदान

  • 22 जनवरी को प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम
  • श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका
  • मंदिर आंदोलन के अदालती संघर्ष

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-12 11:11 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में कई लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राम मंदिर निर्माण के लिए संघर्षरत कुछ अहम चेहरों के योगदान को मंदिर ट्रस्ट ने 'संकल्प' बुकलेट के जरिए चिह्नित करने की कोशिश की है। 22 जनवरी को होने जा रहे प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए भेजे गए निमंत्रण पत्रों के साथ इन बुकलेट को भी वितरित किया गया है। इस बुकलेट में वर्णित 21 लोगों की सूची में एक नाम जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल का भी है। मंदिर आंदोलन के अदालती संघर्ष की बात करें तो इसमें देवकीनंदन जी का बहुत बड़ा योगदान रहा। उनके एक सुझाव ने केस जीतना और उसके बाद भूमि अधिग्रहण और मंदिर निर्माण कार्यों को सरल कर दिया। देवकीनंदन इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज थे जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद का पूरा जीवन मंदिर निर्माण के लिए हर संभव प्रयास करने में लगा दिया।

मुकदमे में रामलला को बनाया पक्षकार

जब मंदिर को लेकर फैजाबाद के सिविल कोर्ट में मुकदमा चल रहा था तो हिंदू पक्ष के पास सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मंदिर का पक्ष लेने वाला कोई नहीं था। क्योंकि, जो पक्षकार मुकदमा लड़ रहे थे उनका मंदिर से सीधे तौर पर कोई जुड़ाव नहीं था। ऐसे में जस्टिस देवकीनंदन ने ही वरिष्ठ अधिवक्ता अरूण गुप्ता को रामलला विराजमान को ही पक्षकार बनाने का आइडिया दिया। उनका मानना था कि जब रामलला खुद पक्षकार बन जाएंगे तो इस तरह की सारी समस्या खत्म हो जाएगी और ऐसा हीं हुआ।

दरअसल, सिविल कानून में प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति को जीवित व्यक्ति के समान दर्जा प्राप्त है और ईश्वर होने के कारण उनकी कभी मृत्यु भी नहीं हो सकती है। इस विषय पर देवकीनंदन अग्रवाल ने अशोक सिंघल से बातचीत की और सहमति मिलने पर 1 जुलाई 1989 को लखनऊ खंडपीठ ने रामलला को पक्षकार बनाने के लिए याचिका दायर की। कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया।

खुद आजीवन बने रहे रामसखा

कोर्ट ने विराजमान रामलला को पक्षकार बनाने की याचिका तो स्वीकार कर ली लेकिन, रामलला के बाल रूप में विराजमान होने के कारण उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक रामसखा की जरूरत हुई। इसके बाद देवकीनंदन ने खुद को रामसखा के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सिविल सूट नंबर पांच दाखिल किया,जिसके बाद उन्हें पक्षकार संख्या एक के तौर पर दर्ज किया गया। अदालती मुकदमे में यह एक निर्णायक फैसला साबित हुआ ,क्योंकि, फैसला आने के बाद बिना किसी बाधा के मंदिर के लिए भूमि अधिग्रहण और निर्माण कार्य हुआ। वहीं अगर कोई व्यक्ति या संस्था होती तो इन कार्यों में दिक्कत आ सकती थी। जब तक देवकीनंदन जीवित रहे वह रामसखा बने रहे और हिंदू पक्ष उनसे कानूनी सलाह लेता रहा। जज रहने के कारण उन्हें कानूनी जटिलताओं की अच्छी समझ थी, जिसके कारण मंदिर के लिए चल रहे मुकदमे में मंदिर के पक्षधरों को मदद मिली।

मां के कहने पर आंदोलन में योगदान

जस्टिस देवकीनंदन के निकट संबंधी अभय अग्रवाल ने बताया कि मां के कहने पर देवकीनंदन ने सेवानिवृत्ति के बाद मंदिर आंदोलन में योगदान देने का फैसला लिया। उन्होंने अयोध्या के सरयू नदी के तट पर मंदिर बनवाने के लिए हर संभव प्रयास करने की शपथ ली। मंदिर आंदोलन में सबसे अहम लोगों में से एक रहे अशोक सिंघल के साथ देवकीनंदन अग्रवाल की नजदीकियां थी। अशोक सिंघल मंदिर के संबंध में अक्सर देवकीनंदन से कानूनी सलाह लिया करते थे।

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