भारत सरकार क्यों है समलैंगिक विवाह के खिलाफ? दुनिया के कई बड़े देश बना चुके हैं सेम सेक्स मैरिज एक्ट, भारत में क्यों अटकी मान्यता, जानिए क्या है वजह?

समलैंगिक विवाह पर पेंच भारत सरकार क्यों है समलैंगिक विवाह के खिलाफ? दुनिया के कई बड़े देश बना चुके हैं सेम सेक्स मैरिज एक्ट, भारत में क्यों अटकी मान्यता, जानिए क्या है वजह?

Bhaskar Hindi
Update: 2023-03-13 11:46 GMT
भारत सरकार क्यों है समलैंगिक विवाह के खिलाफ? दुनिया के कई बड़े देश बना चुके हैं सेम सेक्स मैरिज एक्ट, भारत में क्यों अटकी मान्यता, जानिए क्या है वजह?
हाईलाइट
  • दुनिया के 29 देशों में है सेम सेक्स मैरिज एक्ट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 18 मार्च को अहम सुनवाई होने वाली है। इसे  13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने 5 जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया है। जिसके बाद ये माना जा रहा है कि शीर्ष अदालत इस मामले पर कोई बड़ा फैसला सुना सकती है। लेकिन इन सबसे से इतर केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह को गैर परंपरावादी बता रही है। सरकार का कहना है कि इस समलैंगिक विवाह की वजह से समाज में समानता का अधिकार खो जाएगा सारी चीजे अलग-थलग पड़ जाएंगी। बता दें कि, दुनिया के ऐसे कई देश हैं जो इस समलैंगिक विवाह को मान्यता दे चुके हैं अगर भारत में भी ऐसा कुछ होता है तो वो भी उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जो समलैंगिक विवाह को मान्यता देते हैं।

दुनिया के 29 देशों में है सेम सेक्स मैरिज एक्ट

सेम सेक्स मैरिज के लिए भले ही भारत सरकार विरोध करे लेकिन दुनिया के करीब 29 देश ऐसे हैं, जिनमें सेम सेक्स मैरिज को लीगल माना गया है। जिनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, ताइवान, अर्जेंटीना, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका जैसे कई अहम देशों के नाम शामिल हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका की बात करें तो देश में सेम सेक्स मैरिज करने की  इजाजत तो थी, लेकिन बाइडन के आने के बाद साल 2022 में संसद में बिल पेश करके इसे कानूनी जामा पहनाने का काम किया गया। वहीं ऑस्ट्रेलिया में 2017, ताइवान में 2019 और अर्जेंटीना में 2010 में समलैंगिक विवाह करने की इजाजत मिली थी। 

सरकार क्यों है समलैंगिक विवाह के खिलाफ

गौरतलब है कि भारत में समलैंगिक विवाह का विरोध भारत सरकार हमेशा से करती आ रही है। केंद्र सरकार का कहना है कि इस विवाह से समाज में अस्थिरता फैलेगी। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा है कि कानून की एक संस्था के रूप में, विभिन्न विधायी अधिनियमों के तहत कई वैधानिक परिणाम हैं। इसलिए, ऐसे मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच केवल गोपनीयता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है। हलफनामे में केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि समलैंगिक विवाह से सामाजिक स्वीकार्य और जीवन के मूल्यों में संतुलन का सीधे तौर पर प्रभाव पड़ेगा।

6 जनवरी को लिया था अहम फैसला

बता दें कि, इस मामले में देश के अलग-अलग कोर्ट में याचिका लगाई गई थी। ताकि समलैंगिक विवाह को मान्यता मिल सके। इसी बात का ध्यान रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी को सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए अपने पास स्थानांतरित कर लिया था और अब इस पूरे मामले पर वो सुनवाई करके इस उलझन को सुलझाने का काम करने वाली है।

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