छलक उठे हर आंख से आंसू... जब मरते हुए कह गई वह 'मैं जीना चाहती हूं'

छलक उठे हर आंख से आंसू... जब मरते हुए कह गई वह 'मैं जीना चाहती हूं'

Bhaskar Hindi
Update: 2019-12-07 06:36 GMT
छलक उठे हर आंख से आंसू... जब मरते हुए कह गई वह 'मैं जीना चाहती हूं'

डिजिटल डेस्क, मुम्बई। वो बहुत हिम्मत वाली थी, अपनी जिंदगी के लिए आखिरी सांस तक लड़ती रही। खुद से, दुनिया से, सिस्टम से, लेकिन किस्मत के आगे हार गई। 95 प्रतिशत जलने के बाद भी वह अपनी लड़खड़ाती जुबान से कहती रही, मैं जीना चाहती हूं... मुझे जलाने वालों को छोड़ना मत! लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उन्नाव रेप पीड़िता आखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। शुक्रवार रात 11:40 पर सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता ने आखिरी सांस ली और न चाहते हुए भी इस दुनिया को अलविदा कह गई। 

सफदरजंग अस्पताल के प्रवक्ता ने जैसे ही उन्नाव रेप पीड़िता के निधन की पुष्टि की, देश वासियों के आंखे भर आई। देश की एक और बेटी हैवानियत के चलते यह दुनिया छोड़ गई। सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल सुपरिडेंट डॉ. सुनील गुप्ता ने बताया था कि जब वो ज़िंदा थी, बात कर सकती थी। बार बार वह अपने भाई से कह रही थी कि उसे छोड़ना नहीं है। बार-बार रिपीट कर रही थी, "क्या मैं बच जाऊंगी? मैं मरना नहीं चाहती।"

भाई सिर्फ दिलासा देता रह गया और अपनी बहन को जाने से नहीं रोक पाया। भाई को दु:ख है कि वह अपनी राखी का कर्ज नहीं उतार पाया। पीड़िता की मौत के बाद भाई ने कहा कि बहन के शव को तो जलाया भी नहीं जा सकता, क्योंकि इसमें जलाने जैसा कुछ है ही नहीं। भाई ने कहा कि हम शव को अपने गांव ले जाएंगे और वहीं शव को दफना देंगे क्योंकि अब उसमें जलाने लायक कुछ भी बचा नहीं है।

इतना कुछ होने के बाद भी पीड़िता के पिता का कहना है कि रूलिंग पार्टी या प्रशासन की तरफ से कोई वरिष्ठ व्यक्ति हमसे मिलने नहीं आया। उन्होंने अपना गुस्सा जताते हुए कहा, या तो हैदराबाद की तरह उनका एनकाउंटर किया जाए या फिर उनको फांसी की सजा हो। उन्होंने आगे यह भी बताया कि रेप आरोपी जमानत मिलने के बाद मेरी बेटी और मेरे साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों को लगातार धमका रहे थे, लेकिन पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया।

आखिर कब तक निर्भया, दिशा और उन्नाव पीड़िता जैसी लड़कियों को देश के कमजोर और खोखले कानून व्यवस्था की खातिर अपनी जान देनी पड़ेगी। हाल ही में हैदराबाद में कानून के रखवालों ने एनकाउंटर कर रेप पीड़िता के आरोपियों को सजा दे दी, लेकिन आमजन में इस एनकाउंटर को लेकर खुशी के साथ आक्रोश इस बात का है, कि यह सजा कानून के रखवालों को क्यों देना पड़ी, बजाय कानून के। वहीं अब सवाल यह उठता है कि क्या निर्भया और उन्नाव पीड़िता केस में कानून के रखवालों को ही आगे आना पड़ेगा या फिर हमारी लचीली कानून व्यवस्था के चलते यह पीड़िताएं इंसाफ का इंतजार करती रहेंगी। फिलहाल हमारी लचीली न्याय व्यवस्था के चलते आज एक और निर्भया इस दुनिया को अलविदा कह गई। 

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