झारखंड की दलमा पहाड़ी पर जानवरों का शिकार करने हथियारों के साथ चढ़े तीन हजार लोग
जमशेदपुर झारखंड की दलमा पहाड़ी पर जानवरों का शिकार करने हथियारों के साथ चढ़े तीन हजार लोग
- जानवर को नुकसान न पहुंचाएं
डिजिटल डेस्क, जमशेदपुर। जमशेदपुर की दलमा पहाड़ी पर जंगली पशुओं का शिकार करने के लिए आदिवासी समाज के तीन हजार से ज्यादा लोगों ने परंपरागत हथियारों के साथ चढ़ाई की है। दरअसल यह आदिवासियों का वार्षिक पर्व है, जिसे सेंदरा विशु पर्व के नाम से जाना जाता है। इस बार यह पर्व 30 अप्रैल-एक मई को मनाया जा रहा है। वन विभाग ने लोगों से अपील की है कि वे इस पर्व को प्रतीकात्मक रूप से मनाएं। पहाड़ी और जंगल पर किसी जानवर को नुकसान न पहुंचाएं।
शिकार करने के लिए चढ़ाई करने वाले आदिवासियों को सेंदरा वीर कहा जाता है। वन विभाग का दावा है कि उन्होंने कई सेंदरा वीरों को वापस लौटा दिया है। विशु पर्व को देखते हुए डीएफओ, वन रक्षी पदाधिकारियों तथा वनपाल की टीमों का गठन किया गया है। सेंदरा वीरों को रोकने के लिए 11 स्थानों पर चेकनाका बनाये गये हैं। वहीं, वन विभाग ने दलमा पहाड़ी के चारों ओर मुख्य मार्ग पर 20 स्थानों पर बैरिकेड लगाये हैं।
इधर, आदिवासी सेंदरा वीरों ने दलमा के परंपरागत राजा राकेश हेंब्रम के नेतृत्व में दलमा देवी की पूजा-अर्चना की। वन देवी का आह्वान किया और बलि देकर सेंदरा यानी शिकार की अनुमति मांगी। इसके बाद 3000 से अधिक आदिवासी समुदाय के लोग हरवे हथियार के साथ दलमा जंगल चले गये।
हर साल सेंदरा वीरों को रोकने के लिए वन विभाग कवायद करता है इसके बाद भी आदिवासी समुदाय के लोग जंगल में घुसकर जानवरों का शिकार करते हैं। विशु शिकार को लेकर दलमा रेंज के डीएफओ अभिषेक कुमार सिंह, रेंज ऑफिसर दिनेश रंजन, मानगो रेंज ऑफिसर दिग्विजय सिंह और अन्य अधिकारी वनरक्षियों की टीम के साथ ड्यूटी पर तैनात हैं।
इस बीच आदिवासी समाज के कई प्रबुद्ध लोगों ने भी दलमा पहाड़ पर मनाए जाने वाले सेंदरा का स्वरूप बदलने की जरूरत पर जोर दिया है। चांडिल प्रखंड के पूर्व उप प्रमुख सह आसनबनी के ग्राम प्रधान प्रबोध उरांव ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति प्रेमी है। इसलिए जल, जंगल, जमीन, जीव-जंतु आदि का संरक्षण करना भी हमारा दायित्व है। जंगल व जीव-जंतु बचेंगे तो हमारा अस्तित्व बचेगा और हमारी परंपरा बचेगी। मौके पर आसनबनी पंचायत के पूर्व मुखिया गुरुचरण सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में दलमा पहाड़ में जीव-जंतुओं की संख्या काफी कम हो गई है। कई तो विलुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसे में सेंदरा के दौरान जानवरों का शिकार नहीं करना ही उचित है।
(आईएएनएस)
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