निर्भया केस: याचिका रद्द होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केंद्र, दिल्ली हाई कोर्ट ने दोषियों को दी है 7 दिन की मोहलत
निर्भया केस: याचिका रद्द होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केंद्र, दिल्ली हाई कोर्ट ने दोषियों को दी है 7 दिन की मोहलत
- अक्षय सिंह की सिर्फ दया याचिका राष्ट्रपति के पास विचाराधीन
- पवन गुप्ता के पास सुधारात्मक और दया याचिका का विकल्प
- मुकेश सिंह और विनय शर्मा के सभी विकल्प समाप्त
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। बुधवार को दिन में दिल्ली हाई कोर्ट ने जेल प्रशासन और केंद्रीय गृह मंत्रालय की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें दोषियों को अलग-अलग फांसी देने की बात कही गई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती है। ऐसा करना असंवैधानिक होगा। याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने दोषियों को अपने सभी कानूनी विकल्प 7 दिन के भीतर उपयोग करने का समय दिया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने रविवार को जस्टिस सुरेश कैत ने इस मामले की सुनवाई की थी। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाई कोर्ट में पक्ष रखा था। मेहता ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि मृत्युदंड के दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल पर विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं। दोषी न्यायिक मशीनरी से खेल रहे हैं और देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं।
हाईकोर्ट के फैसले का निर्भया की मां ने किया स्वागत
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर निर्भया की मां आशा देवी ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया मैं उसका स्वागत करती हूं। हाई कोर्ट के समय निर्धारित करने से पहले अपराधी इधर-उधर भाग रहे थे, पर अब नहीं भागेंगे। हाई कोर्ट ने उन्हें एक हफ्ते का समय दे दिया है। इसके बाद दोषियों को तुरंत फांसी दी जानी चाहिए।
आशा देवी 2012 गैंग रेप पीड़िता की मां: हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया मैं उसका स्वागत करती हूं। हाई कोर्ट के समय निर्धारित करने से पहले अपराधी इधर-उधर भाग रहे थे पर अब नहीं भागेगें। हाई कोर्ट ने उन्हें एक हफ्ते का समय दे दिया है। pic.twitter.com/jowXOX1yO1
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 5, 2020
दोषी अनुच्छेद 21 का सहारा ले रहे हैं
बुधवार को कोर्ट में जस्टिस कैत ने कहा कि सभी गुनहगार बर्बरता से दुष्कर्म और हत्या करने के दोषी पाए गए हैं। इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया था। ये बात विचार करने के लिए प्रासंगिक है कि क्या मौत की सजा के निष्पादन में देरी दोषियों की रणनीति के कारण हो रही है। जस्टिस कैत आगे बोले कि मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि सभी दोषियों ने पुनर्विचार याचिका दायर करने में 150 दिन से भी ज्यादा का समय लिया। अक्षय ने तो 900 दिन से भी ज्यादा समय के बाद अपनी पुनर्विचार याचिका दाखिल की। सभी दोषी अनुच्छेद 21 का सहारा ले रहे हैं जो उन्हें आखिरी सांस तक सुरक्षा प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट में भी दोषियों के भाग्य का फैसला उसी आदेश से किया गया है। मेरी राय है कि उनके सभी डेथ वारंट को एक साथ निष्पादित किया जाना चाहिए।
दोषियों को दिया सात दिन का समय
जस्टिस कैत ने कहा कि दोषियों ने सजा में देरी करने की रणनीति अपनाई है। इसलिए मैं सभी को 7 दिन के भीतर उनके कानूनी उपचार के लिए निर्देशित करता हूं, जिसके बाद अदालत को उम्मीद है कि अधिकारियों को कानून के अनुसार काम करना होगा। इसके बाद अदालत ने पटियाला हाउस कोर्ट के आदेश से अलग जाकर फैसला लेने से इनकार कर दिया।
एक फरवरी को दी जानी थी फांसी
दोषियों को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दी जाने वाली थी। मुकेश ने दिल्ली हाईकोर्ट में यह तर्क देते हुए एक आवेदन किया कि अन्य दोषियों ने अभी कानूनी उपाय नहीं अपनाए हैं और उन्हें अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती। मुकेश और विनय के सभी कानूनी हथकंडे समाप्त हो चुके हैं। हालांकि अक्षय की दया याचिका अभी राष्ट्रपति के समक्ष लंबित है। पवन ने अभी तक दया याचिका दायर नहीं की है, जो उसका अंतिम संवैधानिक उपाय है।
चारों दोषियों की अभी यह है स्थिति
- मुकेश सिंह और विनय शर्मा के सभी विकल्प समाप्त।
- अक्षय सिंह की सिर्फ दया याचिका राष्ट्रपति के पास विचाराधीन।
- पवन गुप्ता के पास सुधारात्मक और दया याचिका का विकल्प।
जेल प्रशासन व गृह मंत्रालय ने लगाई याचिका
बता दें कि तिहाड़ जेल प्रशासन व गृह मंत्रालय ने शनिवार को चारों दोषियों के खिलाफ जारी मौत के वारंट पर रोक लगाने वाली निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। गृह मंत्रालय की दलील में कहा गया था कि उक्त चार दोषियों ने अपनी पुनर्विचार याचिका, उपचारात्मक (क्यूरेटिव) याचिका व दया याचिका को एक के बाद एक अलग-अलग दाखिल की है। इसका कारण यह है कि दोषी उन्हें मिली फांसी की सजा को अधिक समय तक टालना चाह रहे हैं। याचिका में कहा गया था कि दोषियों ने जानबूझकर देरी करके अपनी पुनर्विचार/उपचारात्मक/दया याचिका दायर करने का फैसला किया है, ताकि मृत्यु के वारंट के निष्पादन में देरी हो सके।