ज्ञानवापी मामले पर मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, कोर्ट ने माना मामला सुनने योग्य
ज्ञानवापी मस्जिद मामला ज्ञानवापी मामले पर मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, कोर्ट ने माना मामला सुनने योग्य
- कोर्ट ने ज्ञानवापी मामला सुनने योग्य माना
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है। ये मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका माना जा रहा है। कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले को सुनने योग्य माना है और इसी आधार पर मुस्लिम पक्ष की याचिका रद्द कर दिया गया है। मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया था कि ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन कोर्ट ने साफ मना कर दिया और कहा कि इस याचिका पर सुनवाई संभव है।
याचिका खारिज होने की वजह?
याचिका खारिज को लेकर बीते 14 नवंबर को सिविल जज सीनियर डिविजन महेंद्र कुमार पांडे की अदालत ने सुनवाई की थी। जिसके बाद फैसला को सुरक्षा कर लिया गया था। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया था कि जिला जज की अदालत में श्रृंगार गौरी मामला केवल पूजा को लेकर था। जबकि इस केस में ज्ञानवापी मस्जिद के टाइटल को लेकर है। इसलिए मुस्लिम पक्ष को पूरी उम्मीद थी कि मुकदमा कोर्ट खारिज कर देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कोर्ट में आगे भी मामले पर सुनवाई जारी करने जा रहा है।
हिंदू पक्ष की मांग
ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने चार प्रमुख मांगे रखी थीं। उन मांगों में तत्काल प्रभाव से भगवान आदि विश्वेश्वर शंभू विराजमान की नियमित पूजा शुरू करना, ज्ञानवापी परिसर में मुसलमानों का प्रवेश रोकना, ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को देना, मंदिर के ऊपर बने विवादित ढांचे को हटना शामिल है।
हालांकि, इन मांगों को कोर्ट मानती है या नहीं लेकिन आज के फैसले हिंदू पक्ष को राहत देना वाली है। कोर्ट इस मसले पर सुनवाई करने जा रहा है। मुस्लिम पक्ष चाहता था कि सुनवाई ना हो लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है। खासबात यह है कि ज्ञानवापी मामले पर एक तरफ जहां वाराणसी के फॉस्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई होगी, तो दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में भी महत्वपूर्ण सुनवाई होने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट में भी होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शित को लेकर एक याचिका दायर की गई है। याचिका भी ज्ञानवापी मामले से ही जुड़ी हुई है। उस मामले में केंद्र को सुप्रीम कोर्ट में आगामी 12 दिसंबर तक अपना जवाब दाखिल करना है। उसके अगले माह यानी जनवरी में कोर्ट इस पर सुनवाई करेगा। द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा 3 कहती है कि धार्मिक स्थलों को उसी रूप में संरक्षित किया जाएगा, जो मौजूदा वक्त में 15 अगस्त 1947 के दरम्यान था। अगर ये सिद्ध भी हो जाता है कि मौजूदा धार्मिक स्थल को मुगलकाल में तोड़कर बनवाया गया था। फिर भी उसके वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। खैर, अब इस मामले पर सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं।