लद्दाख: चीन पर नजर रखने के लिए उत्तरी सेक्टर में तैनात किए जाएंगे नौसेना के मिग-29K विमान
लद्दाख: चीन पर नजर रखने के लिए उत्तरी सेक्टर में तैनात किए जाएंगे नौसेना के मिग-29K विमान
- LAC पर निगरानी में नौसेना की बड़ी भूमिका
- डोकलाम विवाद के दौरान हुआ था इस्तेमाल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को देखते हुए भारत लगातार एलएसी पर अपनी ताकत बढ़ा रहा है। पूर्वी लद्दाख में पहले ही भारतीय नौसेना के P-82 निगरानी विमान लगातार मंडरा रहे हैं और अब समुद्री फाइटर जेट MiG-29K को भी उत्तरी सेक्टर में तैनात करने का फैसला लिया गया है।
प्रधानमंत्री ने सेना के तीनों अंगों- आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में आपसी समन्वय कायम करने का निर्देश दिया। वहीं सीडीएस विपिन रावत ने देश की उत्तरी या पश्चिमी सीमाओं पर एयरफोर्स के साथ-साथ नौसेना के युद्धक विमानों को भी तैनात रखने का विजन दिया है। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक सरकारी सूत्रों ने कहा कि मिग-29के फाइटर एयरक्राफ्ट को उत्तरी सेक्टर में भारतीय नौसेना के बेस पर तैनात करने की योजना बनाई जा रही है। इनका इस्तेमाल पूर्वी लद्दाख सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अभियानों को अंजाम देने के लिए किया जा सकता है।
डोकलाम विवाद के दौरान हुआ था इस्तेमाल
डोकलाम विवाद के दौरान इन निगरानी विमानों का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया गया था। भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद के बीच भारतीय नौसेना अहम भूमिका निभा रही है। नौसेना के विमानों का एलएसी पर चीनी गतिविधियों और उनकी स्थिति पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। भारतीय नौसेना के बेड़े में 40 से ज्यादा मिग-29के फाइटर जेट हैं जिन्हें एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य पर तैनात किया गया है। भारत ने रूस से ये विमान करीब एक दशक पहले खरीदे थे। इनकी एयर फोर्स बेस पर तैनाती के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मौदी के निर्देशों का इंतजार किया जा रहा है।
LAC पर निगरानी में नौसेना की बड़ी भूमिका
भारतीय नौसेना चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के साथ जारी विवाद के बीच एलएसी पर निगरानी रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सीमा के आसपास चीनी गतिविधियों पर नजर रखने में नौसेना के विमानों की मदद ली जा रही है। 2017 में डोकलाम में हुए विवाद के वक्त भी नौसेना के निगरानी विमानों का जमकर इस्तेमाल किया गया था। भारतीय नौसेना के पास 40 से ज्यादा मिग-29के युद्धक विमानों का एक बेड़ा है जो विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर तैनात हैं। ये गोवा में नौसेना का फाइटर बेस आईएनएस हंस से नियमति उड़ान भरते हैं। भारतीय नौसेना ने एक दशक पहले ये विमान रूस से खरीदे थे।
निगरानी के लिए DRDO ने सेना को भारत ड्रोन दिए
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने भारतीय सेना को स्वदेश में विकसित "भारत" ड्रोन उपलब्ध कराए हैं। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ये ड्रोन अधिक ऊंचाई वाले इलाकों और पर्वतीय क्षेत्रों में सटीक निगरानी सुनिश्चित करेंगे। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक रक्षा सूत्रों ने कहा, "पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चल रहे विवाद को देखते हुए भारतीय सेना को सटीक निगरानी के लिए ड्रोन की आवश्यकता थी। इस जरूरत को पूरा करने के लिए डीआरडीओ ने सेना को भारत ड्रोन उपलब्ध कराए हैं।" ये ड्रोन डीआरडीओ की चंडीगढ़ स्थित प्रयोगशाला ने विकसित किए हैं। इस ड्रोन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) से लैस किया गया है जिससे यह दोस्तों और दुश्मनों के बीच फर्क करके उसी हिसाब से काम कर सके। इसके अलावा इन्हें इस तरह से तैयार किया गया है कि ये बहुत ज्यादा ठंडे मौसम में भी काम कर सकने में सक्षम हैं। इसके साथ ही यह अत्याधुनिक नाइट विजन सुविधा से भी लैस है। यह घने जंगल में छिपे इंसानों का पता लगा सकता है। यह ड्रोन अभियान के दौरान रियल टाइम वीडियो ट्रांसमिशन उपलब्ध कराता है। ऐसे में सीमा पर भारत के लिए यह ड्रोन बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
भारतीय नौसेना ने अमेरिका के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास
बता दें कि कोरोना वायरस महामारी और अपनी विस्तारवादी नीति के कारण चीन पूरी दुनिया के निशाने पर है। लद्दाख में चीन से सीमा विवाद के बीच भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के एक बेड़े ने अमेरिकी नौसेना के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार के पास सोमवार से समुद्र में युद्धाभ्यास शुरू किया है। अमेरिकी बेड़े की आगुआई एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस निमित्ज कर रहा है जो परमाणु क्षमता से लैस है। इस मिलिट्री एक्सरसाइज में तीन अमेरिकी वॉरशिप भी शामिल हैं। अधिकारियों ने बताया कि भारतीय नौसेना के चार अग्रणी युद्धपोतों ने ‘पासेक्स’ अभ्यास में भागीदारी की। यह कवायद ऐसे वक्त हुई जब अमेरिकी कैरियर स्ट्राइक ग्रुप दक्षिण चीन सागर से हिंद महासागर क्षेत्र से गुजर रहा था। USS निमित्ज दुनिया का सबसे बड़ा युद्धपोत है और दोनों सेनाओं के बीच इस अभ्यास की अहमियत इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि यह ऐसे वक्त हुआ है जब पूर्वी लद्दाख और दक्षिण चीन सागर में चीन की सेना आक्रामक रुख अपनाए हुए है।